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मुंबई से उत्तराखंड प्रवासी ने सरकार को लिखी चिट्ठी, आपको बताते हुए हो रहा है दुख : …

चिट्ठी में कहा कि, मुंबई में बसा पहाड़ अब भावनात्मक रूप से बिखरने और ध्वस्त होने लगा है

अन्य प्रदेशों से ट्रेनें चल रही हैं, मुंबई से अब तक एक भी ट्रेन न चलाने की वजह क्या है?

क्या अब ट्रेन की उम्मीद में उत्तराखंड सरकार की ओर देखना मृगतृष्णा के सिवाय कुछ नहीं

क्या अब भी मुंबई से उत्तराखंड के लिए विशेष ट्रेन चलने की उम्मीद रख सकते हैं, जरूर अवगत कराइएगा

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

मुंबई कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लॉकडाउन में सरकार देशभर से प्रवासियों को उत्तराखंड ला रही है। पर मुंबई से कोई स्पेशल ट्रेन उत्तराखंड के लिए रवाना नहीं हुई। मुंबई में फंसे उत्तराखंड प्रवासियों की पीड़ा जाहिर करने हुए मुबंई कौथिग फाउंडेशन से जुड़े पत्रकार केशर सिंह बिष्ट ने कुछ संभावनाएं, कुछ आशंकाएं जाहिर करते हुए सरकार को भावुक करने वाला पत्र लिखा है।
बिष्ट ने चिट्ठी में कहा है कि आज तक जीवन में जिन्हें भी पत्र लिखा, शुरुआत इसी वाक्य से की ‘आपको बताते हुए हर्ष हो रहा है’। पहली बार लिख रहा हूँ कि ‘आपको बताते हुए दुख हो रहा है’ कि मुंबई में बसा पहाड़ अब भावनात्मक रूप से बिखरने और ध्वस्त होने लगा है।
महोदय, दर्द की इंतेहा हो गई है और हम सरेबाज़ार लुट गए हैं।
भावनात्मक रूप से उत्तराखंड सरकार की बेरुखी, आर्थिक रूप से होटल मालिकों, निजी संस्थानों की अवहेलना और घर वापसी पर ट्रेवल एजेंसियों के मनमाने किराये ने कहीं का नहीं छोड़ा।
अब जिनके पास शाम को भोजन का दाना तक नहीं, उनकी एक अदद ट्रेन की दम तोड़ती उम्मीद और घर वापसी की बुझती लौ से छा रहे घने अंधियारे में अब कहने को कुछ बचा नहीं।
फिर भी जो बचा है, वह कह देते हैं-
महोदय, सूरत से दो, अहमदाबाद से दो, पुणे से एक , गोवा से एक, हैदराबाद से एक ट्रेन चलाने के बावजूद मुंबई से अब तक एक भी ट्रेन न चलाने की वजह क्या है?
अगर मुंबई को सबसे संक्रमित शहर मान कर यहां से प्रवासियों को उत्तराखंड नहीं आने देना परोक्ष कारण था, तो फिर अब तक बसों व निजी छोटे वाहनों से प्रदेश में मुंबई के हज़ारों प्रवासियों को आने की इजाज़त कैसे दी गई?
उम्मीद है यह ट्रेन के यात्रा खर्च का मसला भी नहीं रहा होगा, क्योंकि किसी और राज्य के वासियों की तरह प्रवासी उत्तराखंडियों ने कभी इस बात पर शोर नहीं मचाया कि उत्तराखंड सरकार हमें मुफ्त में यात्रा कराए। प्रवासी कल भी अपने खर्च से यात्रा करने तैयार थे, और आज भी हैं।
क्या हम यह मान कर चलें कि अब ट्रेन की उम्मीद में उत्तराखंड सरकार की ओर देखना मृगतृष्णा के सिवाय कुछ नहीं?
क्या हमें उम्मीद छोड़ देनी चाहिए कि विशेष ट्रेन का अधिकार हैदराबाद, पुणे, सूरत, अहमदाबाद व किसी भी दूसरे शहर को है, पर मुंबई को नहीं? यह सवाल तब और भी गंभीर हो जाता है जब कोरोना के संपूर्ण काल में मुंबई से दूसरे राज्यों के लिए विशेष ट्रेन का परिचालन खूब हुआ।
क्या मुंबई के उन भूख से रोते-बिलखते-तड़पते प्रवासी परिवारों के प्रति उत्तराखंड सरकार की कोई जवाबदेही नहीं है, जिनके पास बस के सफ़र के लिए सात-आठ हज़ार तो छोड़िए, घर में सुबह-शाम के राशन तक की घोर तंगी है।
क्या अदद ट्रेन चलाने के लिए हमें राजनीतिक रसूखवाले लोगों के आगे नतमस्तक होकर मदद की याचना करनी होगी?
क्या हम मान कर चलें कि पलायन को लेकर चिंता मात्र एक मुद्दा भर था?
यह सारे सवाल सिर्फ इसलिए कि प्रवासियों के इतिहास में मुंबई की भूमिका सबसे मुखर रही है और लगभग एक सदी की यात्रा में मुंबई के प्रवासियों ने उत्तराखंड की ग्रामीण व्यवस्था को नए आयाम दिए हैं। भरण-पोषण से लेकर उत्तराखंड की सामाजिक व आर्थिक उन्नत्ति को नया आयाम दिया और उत्तराखंड आंदोलन के दौरान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उत्तराखंड के प्रति इतनी गहरी आत्मीयता के बाद आज संकट की इस कठिन घड़ी में उन्हें यह एहसास कराना कि वे उत्तराखंड की व्यवस्था में कोई मायने नहीं रखते, कितना उचित है…इस विषय पर आपकी राय जानने की उत्सुकता रहेगी।
अंत में
क्या अब भी मुंबई से उत्तराखंड के लिए विशेष ट्रेन चलने की उम्मीद रख सकते हैं, जरूर अवगत कराइएगा !
धन्यवाद  !

devbhoomimedia

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