एक नेता जी ऐसे भी…बनते सुदामा, जेब में जमाना
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
पिछली सरकार में भी जहां उनकी पार्टी विपक्ष में थी तब भी इन नेताजी की तूती सर चढ़ कर बोली और साहब ने पूरे रसूख के साथ पांच साल सियासत की। जहां विपक्ष में शीर्ष नेता अपने वर्चस्व को बचा रहे थे वहां नेताजी राजप्रासाद का आनन्द ले रहे थे।
जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के एक ऐसे विलक्षण और प्रतिभा के धनी राजनीतिज्ञ की जिन्हें राजनीति में मिला भी अचानक, छिना भी अचानक। मगर इस बार भाग्य ने उनका उस तरह साथ नहीं दिया जिस तरह उन्हें अवसर मिले थे। नेताजी फिर भी इस टांग खींचू राजनीति में अपनी जगह बनाए हुए हैं और मजबूती के साथ उन्होंने अपना वजूद भी तैयार कर रखा है।
जिस तरह एक मिथक है कि जो भी पार्टी गंगोत्री से चुनाव जीती है प्रदेश में उसी की सरकार बनी है, उसी तरह इन महानुभाव के साथ भी इस नये राज्य में सम्पन्न हुये विधानसभा चुनावों में यह भी एक मिथक बन गया है कि जो भी पार्टी उनकी विधानसभा से जीती है वह विपक्ष में बैठती है। नेताजी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ कि नेताजी की पार्टी की जब-जब सरकार आई तब-तब वह सत्ता में कुर्सी पाने से वंचित हो गए, इसे उनका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि इस बार विधान सभा नहीं पंहुचे ऐसे माकूल मौकों पर उनकी विधानसभा की जनता ने उन्हें नकार दिया।
नेताजी ने फिर भी अपना स्थान कायम रखा है । चर्चाओं में रहना, अपनी भाव-भंगिमाओं से जनता के बीच में जगह बनाए रखना, अपने को संघर्षशील बताना नेताजी का शगल है मगर नेताजी की राजनैतिक दुकान कभी बंद नहीं हुई । हर हाल में उन्होंने अपने को प्रासंगिक बनाए रखा हुआ है, चाहे कोई उन्हें पूछे अथवा न पूछे।
पिछली सरकार में भी जहां उनकी पार्टी विपक्ष में थी तब भी उनकी तूती सर चढ़ कर बोली और साहब ने पूरे रसूख के साथ पांच साल सियासत की। जहां विपक्ष में शीर्ष नेता अपने वर्चस्व को बचा रहे थे वहां नेताजी राजप्रासाद का आनन्द ले रहे थे। संसाधनों के ढेर पर बैठ नेताजी सरकार के लिए कभी नुकीले नहीं हुये जबकि सरकार के कारनामों का कच्चा-चिट्ठा उनके पास रहा। सत्तादल के मंत्री विधायकों से ज्यादा नेताजी की सुनवाई का ऊपर से इशारा था। सत्ता के गलियारों से निराश परदेशी नेताजी की चौखट पर राहत पा जाते थे। उनके साबू टाइप सिपहसालार की रात बारह बजे भी राजदरबार में सीधी, बेरोकटोक आवाजाही रही। लेकिन नेताजी ने अपने सियासी दांत नाखून कभी बाहर भी नहीं निकाले।
यह नेताजी का ही कमाल है कि नेता जी ने अपने हाईकमान और प्रत्यक्ष रुप से रिपोर्टिंग पदाधिकारियों और वरिष्ठ नेताओं को अपनी शहद वाणी की चासनी में डुबाकर अपने अनुकूल बनाये रखा। नेताजी का प्रभाव ही है कि वह विपक्ष में रहकर भी शासन-सत्ता के चोटी के लोगों से अपने ‘मित्रों’ के कष्टों का हरण आसानी से करवा लेते थे।
किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया और चुनाओं में उनकी विधानसभा का मिथक बना रहा मगर नेताजी जो कि बहुत कुछ पाने से चूक गए थे उन्होंने अपनी उपयोगिता का दर्जा बनाए रखा आज भी पूरी ताकत से सरकार में छोटे से बड़े संत्री से मंत्री तक हुक्म बजा रहे हैं और वह भी सत्तासीन महानुभाव के बगल गीर बनकर । बदले राजनैतिक हालातों में मुखिया के हितैषी के रूप में दिखकर पूरे प्रदेश को प्रभावी संदेश दे रहे हैं।
नेताजी के जानने वाले बताते हैं कि जबसे उन्होंने राजनीति शुरू की है तब से अपने को गरीब, निर्धन, संसाधन हीन और सुदामा बताने में उन्होंने काफी उर्जा खर्च की है और इस इमेज को बनाने में एक हद तक सफल भी रहे हैं। इसका लाभ भी उन्हें मिला है। जबकि सच्चाई कोसों दूर है भले वे अपने को सुदामा बतायें किन्तु उनकी जीवनशैली द्वारकाधीश जैसी है। उनका रहन-सहन, पहनावा, खानपान और जीवनशैली अभिजात्य वर्ग को भी मात करती है। नेताजी और उनके खासमखास सलाहकार जो अंगरक्षक से लेकर हितैषी तक की भूमिका में रहते हैं उनकी गतिविधियां दून से दिल्ली तक चर्चाओं में है।
नेताजी ने इस सरकार में भी कुछ ना पा कर भी बहुत कुछ पाने का वातावरण बनाया हुआ है। शासन-सत्ता में उनके बेरोकटोक आदेश अठखेलियां खिलते हैं। संभव-असंभव कार्य को चुनौती देना उनके बाएं हाथ का खेल है। नेताजी अपने भविष्य के लिए भी जागरुक हैं जिसका उन्होंने छोटे से बड़े स्तर का अनेक भूमिकाओं में अपना खाका खींचा हुआ है। सभी प्रोजेक्टों पर वे कार्य भी कर रहे हैं।
सार्वजनिक रूप से अपने को चुका हुआ, निपटा हुआ बताकर सहानुभूति बटोरने में माहिर नेताजी अचानक हाईकमान तक अपने तंत्रों को इतना मजबूत कर चुके हैं कि कब अपने कद और जिम्मेदारी को लेकर कौन सा बड़ा आश्चर्यजनक धमाका करेंगे कोई नहीं जानता जिससे उनके हम उम्र प्रतिस्पर्धी भी चारों खाने चित्त होंगे । नेताजी की छोटी राजधानी से बड़ी राजधानी तक की गोपनीय यात्रायें और मुलाकातें जारी हैं। सुविधा के अनुसार मित्र शत्रु बनाने के कारण वर्तमान समय पूरी तरह उनके अनुकूल चल रहा है।
नेताजी का दरबार निरंतर गुलजार है मिठाई, गुलदस्ते और उपहार लिए याचक उनकी चरण वंदना करते नज़र आते हैं और वह अपनी क्षमता और प्रभाव से उनके कष्टों के निवारण का प्रयास भी करते हैं अगर परिस्थितियां नेताजी के पूर्ण अनुकूल होती तो नेताजी की चारों दिशाओं में उनकी जय जयकार करते हुए उनका अश्वमेघ का घोड़ा चारों दिशाओं में दौड़ रहा होता। विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाए रखना कोई नेता जी से सीखे और अगर कोई दुखी निराश टुटा हुआ हो तो नेताजी से प्रेरणा भी ले सकता है और समस्याओं का समाधान भी।