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आंगनबाड़ियों को ‘बचपन’ के रंगों से संवारती एक कलेक्टर



स्कूल शुरू करने से पहले बच्चा मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत हो जाए, स्कूल उसे ‘कैद’ और पढ़ाई ‘बोझ’ न लगे, ऐसी संवेदना सिर्फ एक मां की ही हो सकती है। यही संवेदनशील मां अगर जिले की कलेक्टर भी हो तो आंगनबाड़ियों में बचपन मुस्कुराने-खिलखिलाने लगता है।
आंगनबाड़ी में बचपन का यह रंग राज्य में कलेक्टर स्वाति भदौरिया का अभिनव प्रयोग है, जो व्यवस्था से ही नहीं बल्कि संवेदनाओं से भी जुड़ा है। आम धारणा जब यह बनती जा रही हो कि नौकरशाह बेलगाम और संवेदनहीन हैं, ऐसे वक्त में राज्य के कुछ युवा नौकरशाह ऐसे भी हैं जो अपने नवाचारों और संवेदनशीलता के चलते खासे लोकप्रिय बने हुए हैं।
अपनी इसी कार्यशैली के चलते वह आज जिले में आम लोगों के बीच खासी लोकप्रिय हैं। वह एक संवेदनशील और नवाचारी अधिकारी हैं तो सख्त प्रशासक भी हैं। अपनी विशिष्ठ कार्यशैली के चलते युवाओं के लिए वह ‘पीपुल्स आफिसर’ यानी जनता की अधिकारी के नाम से मशहूर तेलांगाना कैडर की आईएएस अफसर स्मिता सभरवाल की तरह ‘आइकन’ बन चुकी हैं।
बचपन से जुड़े आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए जिला प्रशिक्षण संस्थान से बकायदा एक पाठयक्रम तैयार कराया गया। आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों के साथ संवाद करने वाली सहायिकाओं को प्रशिक्षण दलाया गया। धीरे-धीरे ये आंगनबाड़ी केंद्र एक प्रीस्कूल की तर्ज पर काम करने लगे हैं। इन केंद्रों में बच्चे ही नहीं उनके अभिभावक भी खुश हैं। केंद्रों पर बकायदा पेरेंट्स टीचर मीटिंग आयोजित की जाती है।
बता दें कि यह वही चमोली जिला है जहां से यूपी के विधायक अमन मणि त्रिपाठी और उनके साथियों को बैरंग लौटा दिया गया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ के पिता का पितृ कर्म करने के नाम पर लॉकडाउन तोड़ते हुए वह बदरीनाथ जाने की कोशिश में थे। कलेक्टर स्वाति के दो टूक मना करने के बाद ही अपर मुख्य सचिव का पत्र लिए घूम रहा अमन मणि कर्णप्रयाग से आगे नहीं बढ़ पाया।Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur.