LITERATURE

जयंती पर विशेष : ख्यातिप्राप्त साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं मैं सुरबाला के
                           गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
                                बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
                                  पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
                                   चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                                         उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                                    जिस पथ जावें वीर अनेक
कमल किशोर डुकलान 
अपने विद्यार्थी जीवन में माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविताएं अनेकों बार पढ़ी। पिछले लम्बे समय से एक अध्यापक के रुप में भी हिन्दी शिक्षण में भी उनकी देशभक्ति से ओतप्रोत उक्त पंक्तियों को पढ़ते-पढ़ाते मैं भी और छात्र भी काफी भाव विभोर हो उठते हैं। पिछले वर्ष पुलवामा हमले के बाद मुझे ऐसा लगा कि शायद राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी जी ने इसी दिन के लिए इस कविता की रचना की गयी होगी। वास्तव में यह कविता कालजयी हो गयी है। हिन्दी साहित्य जगत के प्रखर कवि पंडित माखनलाल चतुर्वेदीजी का आज जन्मदिन है। माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म ४ अप्रैल १८८९ को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में हुआ था । क्यों न आज के दिन उन्हें याद करके भावभीनी सच्ची श्रद्धांजलि ज्ञापित की जाए।
पंडित माखनलाल चतुर्वेदीजी ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में जो सेवा की है वह किसी विरले कवियों में ही देखने को मिलती है। सन 1913 ई० में इन्होंने अध्यापक की नौकरी छोड़ कर पूर्ण रूप से पत्रकारिता, साहित्य और राष्ट्र की सेवा में लग गयें लोकमान्य तिलक के उद्घोष “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” को ये बहुत ही कर्मठता से अपने राष्ट्रीय आन्दोलन में उतार लिए थे.।. चतुर्वेदी जी ने खंडवा से प्रकाशित मासिक पत्रिका “प्रभा” का संपादन किया, इन्होंने अपने राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गांधी के द्वारा आहूत सन 1920 के “असहयोग आन्दोलन” में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी इन्हीं की थी। इसी तरह 1930 के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी गिरफ्तारी देने का प्रथम सम्मान इन्ही को मिला। राष्ट्र के प्रति समर्पित यह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 30 जनवरी 1938 ई० को परलोक वासी हो गया । इनका उपनाम एक भारतीय आत्मा है। राष्ट्रीयता माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा है।
चतुर्वेदी जी की सर्वाधिक रचनाओं में राष्ट्र के प्रति राष्ट्र प्रेम का भावना उल्लखित है। प्रारम्भ में इनकी रचनाएँ भक्तिमय और आस्था से जुडी हुई थी किन्तु राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सेदारी के बाद इन्होंने अपनी रचनाओं को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना आरम्भ कर दिया। इनकी रचनाएं हिमकिरीटीनी, हिम तरंगिणी, युग चर, समर्पण, मरण ज्वार, माता, रेणु लो गूंजे धरा, बीजुरी, काजल, आँज, साहित्य के देवता, समय के पाँव, अमीर इरादे-गरीब इरादे, कृष्णार्जुन युद्ध इत्यादि काफी प्रसिद्ध हुई।
स्वाधीनता के बाद जब मध्य प्रदेश नया राज्य बना था तब यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि किस नेता को इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी जाय? किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बनी। तीन नाम उभर कर सामने आये पहला पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, दूसरा पंडित रविशंकर शुक्ल, और तीसरा पंडित द्वारका प्रसाद मिश्रा । कागज़ के तीन टुकडो पर ये नाम अलग अलग लिखे गए। हर टुकड़े की एक पुडिया बनायी गयी। तीनो पुड़ियाये आपस में खूब फेंटी गयी फिर एक पुडिया निकाली गयी जिस पर पंडित माखन लाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था। इस प्रकार यह तय पाया गया कि वे नवगठित मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे। तत्कालीन दिग्गज नेता माखनलाल जी के पास दौड़ पड़े। सबने उन्हें इस बात की सूचना दी और बधाई भी दी कि अब आपको मुख्यमंत्री के पद का कार्यभार संभालना है। पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने सबको लगभग डांटते हुए कहा कि मैं पहले से ही शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते “देवगुरु” के आसन पर बैठा हूँ। मेरी पदावनति करके तुम लोग मुझे “देवराज” के पद पर बैठना चाहते हो जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है । उनकी इस असहमति के बाद रविशंकर शुक्ल को नवगठित प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।
भाषा और शैली की दृष्टि से माखनलाल पर आरोप किया जाता है कि उनकी भाषा बड़ी बेड़ौल है। उसमें कहीं-कहीं व्याकरण की अवेहना की गयी है। कहीं अर्थ निकालने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है , कहीं भाषा में कठोर संस्कृत शब्द हैं तो कहीं बुन्देलखण्डी के ग्राम्य प्रयोग। किंतु भाषा-शैली के ये सारे दोष सिर्फ एक बात की सूचना देते हैं कि कवि ने अपनी अभिव्यक्ति को इतना महत्त्वपूर्ण समझा है कि उसे नियमों में हमेशा आबद्ध रखना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ है। भाषा- शिल्प के प्रति माखनलाल जी बहुत सचेष्ट रहे हैं। उनके प्रयोग सामान्य स्वीकरण भले ही न पायें,उनकी मौलिकता में सन्देह नहीं किया जा सकता। ऐसे महान कवि एवं लेखक को शत – शत नमन।

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