एक हजार को भुनाने में मशगूल सतपाल महाराज
एक हजार रुपये से उस लोक कलाकार का सम्मान हुआ कि अपमान ?
प्रेम पंचोली
कोरोना काल के दौरान से लेकर अब तक राज्य के लोक कलाकारों को मंच नही मिल रहा है। जबकि सरकारी और अन्य आयोजन आरम्भ हो चुके हैं। यह रवैया लोक कलाकरों के प्रति राज्य के संस्कृति मंत्री की जबावदेही पर सवाल खड़ा कर रहा है। कुछ लोगो का आरोप है कि लोक कलाकारों प्रति सरकार और संस्कृति मंत्री की जिम्मेदारी बता रही है कि वे इन कलाकारों को सिर्फ ठुमके लगाने तक ही सीमित रखते हैं। यही वजह है कि कोरोना संकट में लोक कलाकारों के प्रति संस्कृति मंत्री ने भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया है।
ज्ञात हो कि कोरोना संकट के दौरान संस्कृति मंत्री ने संस्कृति विभाग को आदेश दिए कि वे लोक कलाकारों को आर्थिक पैकेज देना चाहते हैं। इस पर विभाग ने कई दौर में वर्चुवल बैठकें की हैं। जिसका नतीजा यह निकला कि जो कलाकार या सांस्कृतिक संस्था संस्कृति विभाग में अनुबंधित थे उन्हें विभाग के कार्यालय में अपना बैंक खाता संख्या, आधार कार्ड, पेन कार्ड अविलंब भेजने के फरमान जारी किए गए। ताज्जुब हो कि जैसे विभाग से यह जानकारी हासिल हुई, तुरंत संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने मीडिया में आकर यह बताया कि एक समय के लिए प्रति कलाकार रुपये एक हजार आर्थिक सहायता दे रहे हैं।
इधर लोक कलाकारों में इस दौरान भारी आक्रोश पैदा हो गया। मगर वे क्या कर सकते, उन्होंने तो अपनी जानकारी संस्कृति विभाग को पूर्व में ही प्रेषित कर दी थी। आश्चर्य यह है कि इन लोक कलाकरों के गीत व नृत्य जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को खूब भाते हैं, पर इनकी वास्तविक समस्या इन्ही के विभाग के मंत्री तक ने नही सुनी और ना समझने की कोशिश की और ऐसे में ये कलाकार भूखे पेट ही थिरकने को मज़बूर हैं।
इधर कहा जा रहा है कि जितना अच्छा वक्तव्य कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज देते है उसके विपरीत उनकी गतिविधियां दिखाई दे रही है। वे अपने विभाग से सम्बंधित लोक कलाकरों की आवाज तक नहीं सुन पा रहे हैं । फकत वे मीडिया की सुर्खियों में इन कलाकारों के मार्फत ही बने रहना चाहते हैं।
उल्लेखनीय यह है कि सतपाल महाराज एक अंतराष्ट्रीय कथा वक्ता भी हैं, संत है और मौजूद समय मे संस्कृति मंत्री भी हैं। फलस्वरूप इसके कोरोना संकट में महाराज ने राज्य के लोक कलाकारों बावत, प्रति कलाकार एक हजार रुपये की एक समय के लिए आर्थिक सहायता स्वीकृत की है। जो लोक कलाकरों को प्राप्त भी हुई है। प्रश्न इस बात का है कि क्या एक हजार रुपये में उस कलाकर का पुनर्वास हो गया है ? क्या उस कलाकार ने एक हजार रुपये में एक माह या उससे अधिक का राशन अपने परिवार के लिए भर पाया होगा, जो उसके परिवार के लिए पूरा हो गया हो? उदाहरण स्वरूप एक हजार रुपये से कच्छा बनियान भी कोई खरीद पाए गनीमत है। ऐसा लोक कलाकारो का कहना है। वे इस आर्थिक सहायता से अपनी तोहीन समझ रहे हैं। कलाकार सवाल खड़ा कर रहे हैं कि सतपाल महाराज अपने दिल पर हाथ रखकर बताएं कि एक हजार रुपये से उस लोक कलाकार का सम्मान हुआ कि अपमान?
काबिलेगौर हो कि यह वही लोक कलाकार है जो सत्तापक्ष, विपक्ष व आमजन के मध्य अपनी प्रस्तुतियों से समा बांधे रखते है। यही नही राजनेताओ व विशेष लोगों की अगुवाई में दिनभर भूखे प्यासे रहते है। मगर संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को तनिक भी अहसास नही हुआ कि यदि लोककलाकारों को आर्थिक पैकेज दे रहे है तो कमसे कम वह कलाकार अपने व परिवार के लिए छः माह का राशन तो भर ले?
लोक कलाकरों का कहना है कि यदि संस्कृति मंत्री चाहते तो प्रति लोक कलाकार को रूपये एक लाख की आर्थिक सहायता दे सकते थे। यदि वे ऐसा करते तो उनके मंत्रालय का लगभग 10 करोड़ रुपये खर्च होता। जो एक कैबिनेट मंत्री के लिए काफी सुलभ है। और तो और उनका यह फैसला इतिहास में दर्ज होता।