सीएम त्रिवेंद्र पर भरोसे का नतीजा : प्रवासियों में से 70 फीसदी लोगों ने बना लिया है उत्तराखण्ड में ही रहने का मन
रिवर्स पलायन : ‘ऐसा पहली बार हुआ है सत्रह-अठरा सालों में
पलायन आयोग के गठन के साथ ही आयोग की रिपोर्ट के आधार पर रिवर्स पलायन की योजनाएं भी
कोविड की वजह से घर लौटे प्रवासियों को अब यह भरोसा होने लगा है कि सरकार की मदद से शुरू किया जा सकता है स्वरोजगार
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में पलायन एक गंभीर समस्या रही है। ये मर्ज वर्षों पुराना है। कहा गया कि पृथक पर्वतीय राज्य बनने से इसका समाधान हो जाएगा। वर्ष 2000 में राज्य बना। सरकारें आई और गईं लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने पलायन के निदान पर गौर नहीं किया। वर्ष 2017 में त्रिवेन्द्र सरकार वजूद में आई तो इस पर फोकस किया गया। पलायन आयोग के गठन के साथ ही आयोग की रिपोर्ट के आधार पर रिवर्स पलायन की योजनाएं भी गिनाई गईं। अब जाकर ये कोशिशें परवान चढ़ने लगी हैं। कोविड की वजह से घर लौटे प्रवासियों को यह भरोसा होने लगा है कि सरकार की मदद से स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है। इसी भरोसे का नतीजा है कि प्रवासियों में से 70 फीसदी ने उत्तराखण्ड में ही रहने का मन बना लिया है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही पलायन का मर्ज समझने के लिए राज्य में पहली बार पलायन आयोग का गठन किया। पलायन आयोग का गठन महज खानापूर्ति साबित न हो, इसलिए इसका मुख्यालय भी पहाड़ में ही यानि पौड़ी में बनाया गया। बीते तीन सालों में पलायन आयोग 13 जिलों में से सात जिलों की चरणबद्ध तरीके से अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर चुका है। जिसके सकारात्मक नतीजे भी अब दिखने लगे हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की कमी जैसी प्रमुख समस्याओं की ओर आयोग ने अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की तो सरकार ने भी इन्हें गंभीरता से लिया और अब इन पर तेजी से अमल भी होने लगा है।
राज्य सरकार द्वारा प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री सौर ऊर्जा योजना व ग्रोथ सेंटरों की स्थापना समेत तमाम ऐसी योजनाएं शुरू की जो स्वरोजागर शुरू करने का जरिया बनीं। इन योजनाओं से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्टार्ट अप योजना को भी और अधिक बल मिला। दरअसल, ये योजनाएं कोविड काल से उपजे हालातों को देखते हुए तात्कालिक तौर पर बनाई गई थीं लेकिन अब राज्य के पर्वतीय जिलों में यही योजनाएं पलायन को रोकने का आधार बनने लगी हैं। गांव में ही रोजगार मिलने लगा तो कोविड काल में वापस लौटे लोगों ने भी बड़े शहरों में छोटा-मोटा काम करने का मोह त्याग यहीं पर अपनी नई पारी शुरू करने का निर्णय लिया।
आज प्रदेश में कई स्थानों पर युवाओं द्वारा शुरू किए गए छोटे-छोटे उद्यम दूसरों के लिए भी नजीर बन रहे हैं। वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए राज्य सरकार ने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप में हिमालयन अस्पताल जैसे बड़े संस्थानों से हाथ मिलाकर पहाड़ की सेहत में सुधार का काम प्रारंभ किया है। इसके अलावा पशुधन की गुणवत्ता में सुधार, कृत्रिम गर्भाधान केंद्रों की संख्या बढ़ाने, दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भी सरकार ने कदम बढ़ाए हैं। होम स्टे योजना से लेकर स्थानीय स्तर पर एडवेंचर स्पोर्ट्स सरीखे नए आयोजन कर सरकार स्थानीय युवाओं को रोजगार देकर उन्हें गांव में ही रोकने का प्रयास कर रही है। कोशिशें धरातल पर दिखने लगी हैं। सरकार रिवर्स पलायन की जिक्र और फिक्र करती नजर आ रही है।