UTTARAKHAND

वीरांगना तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित होंगीं प्रदेश की 21 महिलायें

वीरांगना तीलू रौतेली ने 15 से 20 वर्ष की उम्र में जीते थे दुश्मनों से सात युद्ध 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

22 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी किया जाएगा सम्मानित 

देहरादून : झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई के बाद तीलू रौतेली उत्तराखंड की ऐसी वीरांगना है जो महज 15 साल की उम्र में रणभूमि में कूदने वाली वीरांगना थीं। वीरांगना तीलू रौतेली की वीरता की कहानियों को सुनकर आज भी उत्तराखंड की बेटियां उन्हें अपना प्रेरणाश्रोत मानती हैं क्योंकि पहाड़ पर रहने वाली हर उत्तराखंडी महिला आज भी वीरांगना तीलू रौतेली की तरह संघर्षशील है।
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि वीरांगना तीलू रौतेली ने सात साल तक दुश्मन राजाओं को कड़ी चुनौती दी। बताया गया है कि वीरांगना तीलू रौतेली ने मात्र 15 की उम्र से 20 साल की आयु प्राप्त करने तक सात युद्ध लड़े। ऐसी वीरांगना की जयंती पर प्रदेश सरकार की ओर से समाज में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओं को हर साल पुरस्कृत किया जाता रहा है।
इस बार वीरांगना तीलू रौतेली की जयंती पर प्रदेश सरकार राज्य की 21 महिलाओं को तीलू रौतेली राज्य स्तरीय पुरस्कार से नवाज़ने जा रही है। महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या ने वर्ष 2019-20 के लिए दिए जाने वाले इन पुरस्कारों के नामों की घोषणा करते हुए बताया कि इस दौरान अच्छा काम करने वाली 22 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया जाएगा।
महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्यमंत्री रेखा आर्या ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाली महिलाओ के नामों की घोषणा करते हुए बताया कि आठ अगस्त को इन महिलाओं को सम्मानित किया जाएगा। जिसमें अल्मोड़ा से प्रीति भंडारी, शिवानी आर्य, बागेश्वर से गुंजन बाला, चंपावत से जानकी चंद, चमोली से शशि देवली, देहरादून से उन्नति बिष्ट, संगीता थपलियाल, गीता मौर्या, हरिद्वार से पुष्पांजलि अग्रवाल, नैनीताल से कंचन भंडारी, मालविका माया उपाध्याय, पिथौरागढ़ से सुमन वर्मा, शीतल पौड़ी गढ़वाल से मधु खुगशाल टिहरी गढ़वाल से कीर्ति कुमारी, रुद्रप्रयाग से बबीता रावत, सुमती थपलियाल, ऊधमसिंह नगर से ज्योति उप्रेती अरोड़ा, मीनू लता गुप्ता, चंद्रकला राय और उत्तरकाशी से हर्षा रावत शामिल हैं।
उन्होंने बताया इस दौरान 22 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया जाएगा। जिसमें अल्मोड़ा से नीता गोस्वामी, गीता देवी, बागेश्वर से पुष्पा, चंपावत से हेमा बोरा, चमोली से अंजना रावत, देहरादून से हयात फातिमा, सुधा, सीमा, हरिद्वार से पूनम, सुमनलता यादव, असमा, नैनीताल से गंगा बिष्ट, समारेज, निर्मला पांडे, पिथौरागढ़ से चंद्रकला, पौड़ी से अर्चना देवी, रोशनी, रुद्रप्रयाग से सुशीला देवी, टिहरी गढ़वाल से लक्ष्मी देवी, ललिता देवी, उत्तरकाशी से कुसुम मेहर और बीना चौहान शामिल हैं।
इतिहासकार बताते हैं कि तीलू रौतेली का वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था। जिनका जन्म आठ अगस्त 1661 को ग्राम गुराड़,चौंदकोट (पौड़ी गढ़वाल) के भूप सिंह रावत (गोर्ला रावत) और मैणावती रानी के हर हुआ था। तीलू ने अपना बचपन बीरोंखाल के कांडा मल्ला गांव में बिताया था।उनके पिता भूप सिंह रावत गढ़वाल नरेश फतह शाह के दरबार में सम्मानित थोकदार थे।तीलू के दो भाई भगतु और पत्वा थे। तीलू की 15 वर्ष की आयु पूरी होने से पहले ही उनके पिता ने उनकी सगाई चौंदकोट के थोकदार भूम्या सिंह नेगी के पुत्र भवानी सिंह नेगी के साथ बड़े ही धूमधाम से की ।
गुरु शिब्बू पोखरियाल ने 15 वर्ष की होने पर तीलू ओ घुड़सवारी और तलवारबाजी में पारंगत कर दिया था,इस दौरान गढ़ नरेशों और कत्युरी राजाओं के बीच आपसी दुश्मनी चल रही थी। कत्यूरी नरेश धामदेव ने जब खैरागढ़ पर आक्रमण किया तो गढ़ नरेश मान शाह वहां की रक्षा की जिम्मेदारी तीलू के पिता भूप सिंह रावत को सौंपकर स्वयं चांदपुर गढ़ी आ गए। भूप सिंह रावत ने डटकर आक्रमणकारियों का मुकाबला किया परन्तु इस युद्ध में उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को ही नहीं गँवाया बल्कि तीलू के मंगेतर भी इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए। डाला।
कुछ ही दिनों बाद कांडा गांव में कौथिग लगने पर युद्ध की घटना से बेखबर तीलू कौथिग में जाने की जिद करने लगी तो उनकी मां ने रोते हुए तीलू को ताना मारा कि तीलू तू कैसी है रे तुझे अपने भाइयों की याद नहीं आती, तेरे पिता का बदला अब कौन लेगा जा रणभूमि में जा और अपने भाइयों की मौत का बदला ले, तू ले सकती है क्या ? फिर क्या खेलना क्या कौथिग की जिद , मां के मर्माहत वचनों को सुनकर उसने कत्यूरी राजाओं से प्रतिशोध लेने तथा खैरागढ़ सहित अपने नजदीकी क्षेत्रों को आक्रमणकारियों से मुक्त कराने का संकल्प लिया ।
शस्त्रों और सैनिकों से लैस बिंदुली नाम की घोड़ी और अपनी दो सहेलियों बेल्लु और देवली को लेकर वह युद्ध के मैदान में जा धमकी । पुरुष के वेश में तीलू ने छापामार युद्ध कर सबसे पहले खैरागढ़ को आक्रमणकारी कत्यूरियों से मुक्त कराया।खैरागढ़ से आगे बढ़कर उन्होंने उमटागढ़ी पर विजय प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने दलबल के साथ सल्ट महादेव पर विजय प्राप्त की यहां से भिलंग भौंण की तरफ निकल पड़ी ।परन्तु दुर्भाग्य से इस दौरान तीलू की अंगरक्षक सहेलियों को यहां अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। कुमाऊँ में जहां बेल्लु शहीद हुई उस स्थान का नाम बेलाघाट और जहां देवली शहीद हुई उस स्थान का नाम देघाट है।
सराईखेत के सातवें युद्ध में तीलू ने कत्यूरी योद्धाओं को गाज़र -मूली की तरह काट डाला और अपने पिता और भाइयों की मौत का बदला लिया। यहां अपर उनकी घोड़ी बिंदुली शत्रुओं के आक्रमण का शिकार हो गयी। वापसी में घर की ओर लौटते हुए एक दिन तल्ला कांडा शिविर के पास ही पूर्वी नयार नदी के किनारे जब तीलू पानी पी रही थी तभी शत्रु सैनिक के धोखे से तीलू पर तलवार से प्रहार कर दिया और वह वीरगति को प्राप्त हो गयीं।
कहा जाता है तीलू के शरीर से निकले बलिदानी रक्त से नयार नदी का रंग लाल हो गया। तभी से तीलू की याद में आज भी कांडा गांव और वीरोंखाल क्षेत्र के लोग हर साल कौथिग का आयोजन कर तीलू रौतेली के निशान के साथ उनकी प्रतिमा का पूजन करते हैं ।

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