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प्रेस यूनियन और तथाकथित पत्रकारों की खुलती पोल से सहमे उत्तराखंड के पत्रकार…

पत्रकार अपनी ही बिरादरी के पत्रकारों को सरकार द्वारा विज्ञापन दिए जाने पर ऐसे बिदके कि बात दूर तक जाने लगी

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
देहरादून : अभी कुछ दिन पूर्व सूचना विभाग के द्वारा विज्ञापन निर्गत करने को लेकर कुछ पत्रकारों ने बहुत हल्ला मचाया। सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार को आड़े हाथ लेते हुए अचानक पत्रकारों के हितों की बात होने लगी। उत्तराखंड के पत्रकारों को लगा कि हमारे नेता सही कह रहे है। हमें भी विज्ञापन मिलना चाहिए या मिलेगा। लेकिन इस विरोध के बीच इन पत्रकारों ने अपने लिए भी मुख्यमंत्री से 10-10 लाख रुपये के विज्ञापन की मांग की डाली। इस बीच विरोध करने वाले पत्रकारों के द्वारा लिए गये विज्ञापन धनराशि भी प्रकट होने लगी।
लाखों रुपये के विज्ञापन लेने वाले यह पत्रकार अपनी ही बिरादरी के पत्रकारों को सरकार द्वारा विज्ञापन दिए जाने पर ऐसे बिदके कि बात दूर तक जाने लगी। सवाल उठा कि लाखों रुपये के विज्ञापन और मल्टी एडीशन के नाम पर गोरखधंधा कर रहे यह पत्रकार दूसरे लोगों के विज्ञापन लेने पर कैसे विरोध कर रहे है? चुपचाप विज्ञापन लेकर लाखों रुपये सूचना विभाग से ऐंठ चुके यह पत्रकार भाईजी लोग कब तक पूरे प्रदेश के पत्रकारों का बेवकूफ बनाते रहेंगे?
यूनियन बनाओ माल कमाओ….
हां जी यूनियन बनवा लो और करो पत्रकारों के नाम पर राजनीति… अपने पीछे पत्रकारों की भीड़ दिखाओ और सरकार से विज्ञापन मांगो। इन पत्रकारों की यूनियन से जुड़े पत्रकारों को पता ही नही है कि उनके आका इनकी भीड़ दिखाकर वर्षों से लाखों रुपये का विज्ञापन ऐंठ चुके है। विज्ञापन ऐंठते-ऐंठते यह इतने ऐंठ चुके है कि आज तक इन्होंने अपनी यूनियन के पत्रकारों को ढैला भर का भी विज्ञापन नही दिलाया है। अरे मै तो भूल गया कि इन यूनियन के सदस्यों को तो पता ही नही कि विज्ञापन कैसे मिलते है? अध्यक्ष और महामंत्री या फिर एक या दो सक्रिय सदस्य ही मलाई खा रहे होते है।
एक अध्यक्ष ऐसा भी जिसके एक नही दो नही 6-6 एडिशन ……  उस पर एक न्युज पोर्टल और बहुत कुछ। एक साप्ताहिक का 30 हजार सर्कुलेशन वो भी 4 पेज का अखबार। सांध्य दैनिक, दैनिक के नाम पर लाखों रुपये के विज्ञापन। किसी को भनक तक नही। सूचना की नई नियमावली लागू होने से पहले रातो रात सूचना विभाग के ही कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की बदौलत अखबार जिला ट्रांसफर। महाशय ने 6 के 6 अखबार बचा लिये। जबकि सूचना विभाग की नई नीति ऐसे ही लोगों पर लागू होने थी। अपनी यूनियन के एक भी सदस्य के मदद नही की। जबकि सूचना की सूचीबद्धता समिति के महाशय सदस्य रहे। मदद मागंने पर पत्रकारों को दुत्कारा ही नही गया बल्कि गाली-गलौच भी की गई। एक सांस्कृतिक समिति के पदाधिकारी होने का हवाला देकर समिति के एकाउंट से मुख्यमंत्री राहत कोष में धनराशि दी। लेकिन कुटील राजनीति दिखाते हुए अपने अखबारों के लिए उसकी ऐवज में मुख्यमंत्री से विज्ञापन की मांग कर डाली। तर्क दिया कि मैने अपनी समिति से मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसे दिलवाये है।
यह भी एक रहस्य… जहां दूर-दराज के पत्रकारों को सूचना विभाग आने पर विभाग पानी भी नही पूछता है। वहीं ऐसे भी पत्रकार है जो सूचना विभाग के खर्च पर टैक्सियों में सफर करते है और आलीशान होटलों में रहने का खर्च भी सूचना विभाग वहन कर रहा है। तो है यूनियनों अध्यक्षों तूम जिन लोगों के नाम पर राजनीति करते हो इनके हितो की बात क्यो नही करते हो। जब कोई पत्रकार अपने संबंधों या अपनी कार्यशैली से सरकार से विज्ञापन लेता है तो आप क्यो उससे चिढ़ते हो। यह विज्ञापन आपने तो नही दिलाया है?
आज तक विज्ञापन आपने अकेले-अकेले ही खाया है। क्या सूचना विभाग का पट्टा अपने नाम कर लिया है। जो जिदंगीभर खुद ही विज्ञापन लेते रहोगे? सालों से अपनी यूनियन के अध्यक्ष की कुर्सी कब्जा कर रखी है। क्या आपकी यूनियन में चुनाव भी होते है? दूसरों को भी मौका मिलता होगा? या सूचना विभाग की मलाई खाते खाते अध्यक्ष की कुर्सी छोड़़ने का मन नही हो रहा है?
आगामी चुनाव में आपका खुलकर साथ देंगे  …. हर सरकार से विज्ञापन का लाभ लेने वाले है मठाधीशों तुम आज किस नियम और कायदे की बात करते हो? सरकार को बदनाम करने के लिए अपने ही पत्रकार साथियों को बदनाम कर रहे हो? अगर नैतिकता की बात कर रहे हो तो जून 2020 में आपने मुख्यमंत्री जी को सरकार के तीन वर्षों का गुणगान गाने के लिए 10 लाख रुपये का विज्ञापन देने के बावत पत्र क्यो लिखा? इतना ही नहीं पत्रकार यूनियन के इस कथित नेता ने तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को विज्ञापन की मांग करते हुए यहाँ तक लिख डाला है कि वे आगामी चुनाव में आपका खुलकर साथ देंगे। 
हमें तो तीन वर्षों में कोई विशेषांक नही मिला और चाहिए भी नही। लेकिन खुशी है कि आप लोगों से हटकर सामान्य और ईमानदार लोगों को विज्ञापन मिला। उम्मीद जगी कि पत्रकारिता में गुंडाराज को किसी मुख्यमंत्री ने तो आईना दिखाया। सरकार को ब्लैकमेल करने वाले पत्रकार बेनकाब होने लगे। उत्तराखंड सिर्फ देहरादून के पत्रकारों से ही नही बनता जनाब। 9 पर्वतीय जिले भी है। जिनके नाम पर आजतक आप लोगों ने सिर्फ राजनीति की और अपनी जेबे भरे है।
हकीकत यह है कि आज आप लोगों के कारण ही हमें विज्ञापन नही मिल रहे है। लाॅकडाउन में अखबार नही छप पा रहे है और अखबारी कागज नही मिल रहा है का हवाला सूचना महानिदेशक को आप लोगों ने ही लिखकर दिया है। ऐसे में सरकार विज्ञापन जारी ना करके सही तो कर रही है। जब आप लोगों के अखबार ही नही छप रहे है तो विज्ञापन क्यो? लेकिन आप लोगों ने पूरे प्रदेश के पत्रकारों का ठेका कब से ले लिया। हमारे तो अखबार निरन्तर छप रहे है। हम जिला सूचना कार्यालय में जमा भी करा रहे है। आप लोगों के कारण ही आज पूरे उत्तराखंड के पत्रकारों का नुकसान हो रहा है। अब हम जान चुके हैं कोई भी सरकार पत्रकारों के लिए बुरी नहीं होती।
आप जैसे तथाकथित पत्रकार जो सिर्फ अपने विज्ञापन देने पर ही खुश रहते हैं और यूनियन का गलत फायदा उठाते हैं जिन्हें दूसरे पत्रकारों के विज्ञापन लेने पर जलन होती है। ऐसे ही लोग जानबूझकर सरकार को दिग्भ्रमित करते हैं और अपने क्रियाकलापों के द्वारा सरकार का पत्रकारों के प्रति नजरिया भी बदलते हैं।

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