Uttarakhand

अल्मोड़ा जिले के जंगल को आग ने सबसे ज्यादा झुलसाया इस बार

  • करोड़ों के बजट के बाद भी आग बुझाने में वन विभाग नाकाम!
  • जंगलों में आग लगने के दौरान  वन महकमा हाथ क्यों करता है खड़े ?
  • आग से बेफिक्र वन विभाग के अधिकारी विदेश यात्राओं में मस्त

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून । उत्तराखंड  राज्य के अस्तित्व में आने से पूर्व से ही सूबे के जंगल गर्मियों के आते ही धधकने लगते हैं।  ऐसा नहीं कि इस बार ही प्रदेश के जंगल आग की चपेट में आये हैं।  आग लगने की यह घटनाएं काफी पुरानी है लेकिन हर साल फायर सीजन आने से पहले सूबे  का वन महकमा करोड़ों रुपये का बजट जंगलों की आग बुझाने के लिए बजट सत्र के दौरान वन विभाग विधान सभा से पारित भी करवाता रहा है , अब सबसे विचारणीय पहलू यह है कि आखिर इतना पैसा जाता कहाँ है जबकि जंगलों में आग लगने के दौरा वन महकमा हाथ खड़े कर देता है। ले-देकर एक बार फिर ग्रामीणों की मदद से जंगलों की आग बुझाई जाती रही है।

इस बार भी जंगलों में आग लगी हुई है और कुमायूं मंडल के अल्मोड़ा जिले में अब तक सबसे अधिक 515.7 हेक्टेयर जंगल आग से बुरी तरह झुलस चुका है। वहीं नैनीताल जिले का 243.24 हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ा चुका है। उत्तरकाशी जिले में  7.2 हेक्टेयर तो ऊधमसिंहनगर जिले का 16.2 हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़ चुका है। राज्य के बाकी जिलों में 32 से लेकर 190 हेक्टेयर क्षेत्र में वन संपदा तबाह हुई है।

क्षेत्रवार जंगल की आग का अब तक का नुकसान का आकलन यदि किया जाय तो गढ़वाल मंडल में आग से नुकसान की 401 घटनाएं हुई हैं इससे लगभग 405.76 हेक्टेयर जंगल का नुक्सान आग से हुआ है जिसकी क्षति 610581.5 रूपये आंकी गयी है। वहीं कुमायूं मंडल में आग की 800 घटनाएं रिकॉर्ड की गयी है इस आग से लगभग 1102.765 हेक्टेयर जंगल का 2112492 रुपयों के नुकसान का आकलन किया गया है। जहां तक वन्यजीव परिरक्षण की बात की जाय तो आग की  56घटनाओं में  84.41 हेक्टेयर जंगल और 79057 रूपये के नुकसान का आकलन किया गया है। 

प्रदेश के वन विभाग ने आग की विकराल स्थिति को देखते हुए हाई अलर्ट तो अवश्य जारी कर दिया है, लेकिन उसके मातहत अधिकारी जंगलों की आग से बेफिक्र विदेश यात्राओं में मस्त हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है वन विभाग के आला अधिकारी  सूबे के जंगलों की सुरक्षा के प्रति कितने संवेदनशील हैं। मगर हाई अलर्ट के बावजूद जंगलों की आग थमने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में अब वन विभाग का एक मात्र सहारा इंद्रदेव ही बाकी बचा हुआ है कि वे कब बारिश करते हैं और वनों की आग बुझाते हैं। 

गौतलब हो कि हर साल मई और जून में सूबे के जंगल अधिक धधकते हैं। हालांकि, इस बार 15 फरवरी को फायर सीजन शुरू होने से लेकर अप्रैल तक मौसम ने खूब साथ दिया। नियमित अंतराल में बारिश होने का ही नतीजा रहा कि 30 अप्रैल तक राज्यभर में आग की सिर्फ 88 घटनाएं हुई थीं। इसके बाद मौसम ने तेवर दिखाए और पारे ने जब उछाल मारी तो जंगलों के सुलगने का क्रम उछाल के साथ ही तेज हो गया। प्रदेश में अब तक जंगल की आग की 1257 घटनाएं हो चुकी हैं। आग से अल्मोड़ा में सर्वाधिक 515 हेक्टेयर और उत्तरकाशी में सबसे कम 7.2 हेक्टेयर वन क्षेत्र को क्षति पहुंची है।

वन विभाग केआंकड़ों के अनुसार जंगल की आग से अब तक अल्मोड़ा जिले का 515.7 हेक्टेयर,  नैनीताल जिले का 234.24 हेक्टेयर, पौड़ी जिले का 190.5 हेक्टेयर, चंपावत जिले का 126.735 हेक्टेयर, पिथौरागढ़ जिले का 125.1 हेक्टेयर,  टिहरी जिले का 120.76 हेक्टेयर, देहरादून जिले का 93.4 हेक्टेयर, बागेश्वर जिले का 65.7 हेक्टेयर, रुद्रप्रयाग जिले का 37.75 हेक्टेयर, चमोली जिले का 32.5 हेक्टेयर,  हरिद्वार जिले का 16.15 हेक्टेयर, ऊधमसिंहनगर जिले का 16.2 हेक्टेयर और उत्तरकाशी जिले का 7.2हेक्टेयर वन अभी तक आग की भेंट चढ़ चुका है।

सबसे अधिक नुकसान वाले जिलों में अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी, चंपावत, पिथौरागढ़, देहरादून, बागेश्वर शामिल हैं। उधर, नोडल अधिकारी वनाग्नि प्रमोद कुमार सिंह का कहना है कि कुमाऊं में जंगल की आग की अधिक घटनाओं की वजह, वहां इस सीजन में वहां बारिश कम होना है। इसी कारण जंगल ज्यादा सुलग रहे हैं। आग पर नियंत्रण के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन जंगलों में आग लगने की घटनाओं पर क्यों काबू नहीं पाया जा सका है तो इसका जवाब वन विभाग के किसी अधिकारी के पास नहीं हैं। 

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