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”भ्रम-भेड़ियों ”से आखिर भाजपा को कब मिलेगी निजात !

  • मोदी लहर में गोते मारते हुए मौज काट रहे ऐसे भ्रम-भेड़िये 
राजेन्द्र जोशी 
देहरादून : भारतीय राजनीति में  संवेदनशील मुद्दों को हवा देकर जब राजनीतिक लहर के चलते सत्ता परिवर्तन होती है तो जो दल सत्ता रूढ़ होता है तो उसको बहुत बड़ी गलत फहमी होती है कि यह सब उसके संगठन के कारण हुआ है जबकि सत्य तो यह है कि आम जनता  विकल्प के रूप में दूसरे दल का चयन करती है। इस विकल्प की राजनीति के बल पर कोई कहे की यह उसके  बल पर हुआ है तो यह उसका भ्रम है। सत्ता का यही भ्रम अब टूटता दिखता है।
अब  मी -टू अभियान के एक लंबी फेहरिस्त में संघ प्रचारक से भाजपा संगठन के कर्ता-धर्ता बन कर रौब दाब व प्रचारक के त्याग तपस्या की हनक दिखा कर अपने चाल चरित्र और चेहरे अब बेनकाब  होते देख रहे हैं । उत्तराखण्ड राज्य के लिए यह सबसे बड़ी शर्मनाक घटना है कि जो संघ प्रचारक से प्रदेश व राष्ट्रीय  राजनीति में संगठन के कर्ता -धर्ता बन कर अब  मी -टू  अभियान के हिस्से के रूप में बेनकाब हो रहे हे उनको बचाने के लिये जो पैरोकार है अब वह भी बेनकाव हो सकते हैं।
महारानी माला राज्य  लक्ष्मी शाह जो सांसद है उन्होंने बीते दिनों मजाक ही मजाक में जब  यह सवाल भाजपा की एक बैठक में कर  कहा कि उन्हें तो  संघ से  भाजपा के राष्ट्रीय नेता व उत्तराखण्ड प्रभारी  शिवप्रकाश जी से उनसे डर लगता है कि कहीं  वे उनका टिकट न काट दे । यह बात उतनी ही सही है जितनी  मी -टू के आरोप। वहीं बीते दो साल पूर्व के राज्यसभा चुनाव के दौरान भाजपा को अलविदा कह चुकी एक महिला नेता को रात 12 बजे एक राष्ट्रीय नेता द्वारा अपने आवास में बुलाने का मुद्दा भी अब कहीं मी-टू का हिस्सा न बन जाए और ये नेता एक बार फिर चर्चा में न आ जायं इसमें कोई शक नहीं ! 
वैसे भी मी -टू मामले में निशाने पर आये रंगीन मिज़ाज़ और शौकीन राज्य के संगठन महामंत्री  संजय को  शिकायतों के बाद भी अनदेखी कर बनाये रखने में शिवप्रकाश का हाथ बताया जाता रहा है।शिव प्रकाश पर भी अभी-अभी पश्चिम बंगाल में एक युवती द्वारा मी-टू के संगीन आरोप हैं। भले ही भाजपा के नेता इस मामले को पश्चिम बंगाल की राजनीतिक प्रतिद्वंदता से जोड़कर शिव प्रकाश सहित अन्य दो आरोपियों को क्लीन चिट देने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन कहीं न कहीं इस मामले की आंच भी उन तक पहुंचनी भी तय है क्योंकि मामला अभी कोलकाता न्यायालय में विचाराधीन है।
वहीं भाजपा में ”तू मेरी ढक में तेरी ढकता हूँ ” का यह खेल अब कब तक चलेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन इतना तो तय है कि अब पार्टी के नाम पर भगवा लबादा ओढ़े ऐसे  ”भ्रम-भेड़ियों ”से पार्टी को अपने आपको बचाने के लिए काफी जदोजहद करनी पड़ सकती है। वहीं जमीनी कार्यकर्ताओं के समर्पण और उनकी पीठ पर मौज कर रहे ऐसे भ्रम-भेडियों से  क्या भाजपा उबर पायेगी यह भी  एक यक्ष प्रश्न बन गया है। मोदी लहर को अपनी बताकर और मोदी लहर में गोते मारते हुए मौज काट रहे ऐसे भ्रम -भेडियो को अब  निष्ठावान कार्यकर्ताओं से लेकर देश व प्रदेश जनता भी पहचान चुकी है ।

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