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कुल्लू का दशहरा यूँ ही देश -दुन‍िया भर में मशहूर नहीं

  • राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने किया कुल्लू दशहरा मेले का उद्घाटन
  • माता श्री मंगला ने कुल्लू पहुंचकर दशहरा उत्सव की दी शुभकामनाएं 
  • माता श्री ने कहा  हिमाचल को हर सम्भव दिया जाएगा  सहयोग
  • माता मंगला जी एवं श्री भोलेजी महाराज का हुआ भव्य स्वागत
  • न रावण दहन, न राम और न उसकी लीला, फ‍िर भी ख्यातिप्राप्त  दशहरा 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

कुल्लू (हिमाचल प्रदेश)। देश-दुनिया में विख्यात अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा महोत्सव का आगाज शुक्रवार को भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा के साथ हो गया। कुल्लू का यह ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव इस बार 25 अक्टूबर तक मनाया जाएगा। 250 से ज्यादा देवी-देवता और हजारों लोग इस देव महाकुंभ में शिरकत कर रहे हैं । दोपहर तीन बजे रथ मैदान से सभी देवी-देवता अठारह करड़ू के सौह (ढालपुर मैदान) के अस्थायी शिविरों में विराजमान हुए। सात दिन तक यहां देव कारज में शिरकत करेंगे और श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देंगे। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने भगवान रघुनाथ ने रथयात्रा में शिरकत करने के साथ ही इस विशाल मेले का उद्घाटन किया । इस बार इस ख्यातिप्राप्त मेले में हंस फाउंडेशन की श्री माता मंगला देवी भी शिरकत कर रही हैं उन्हें हिमाचल के मुख्यमंत्री ठाकुर ने आमंत्रित किया है। 

  • बुराई सत्य एवं अच्छाई के समक्ष स्थापित नहीं हो सकती – आचार्य देवव्रत

राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने अपने सम्बोधन में कहा कि दशहरा हर्ष और उल्लास से मनाया जाने वाला विजय का पर्व है, जो विश्व को यह शिक्षा देता है कि बुराई चाहे कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, परंतु सत्य एवं अच्छाई के समक्ष स्थापित नहीं हो सकती, पाप का अंत होना तय होता है। वह अधिक समय तक अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर सकता उक्त विचार हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कुल्लू दशहरा के उद्घाटन समारोह में व्यक्त किए।

राज्यपाल ने प्रदेश की जनता को विजयादशमी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि कुल्लू दशहरा यहां समूची घाटी में बसे ग्रामीण लोगों की देव आस्था एवं सामाजिक प्रतिष्ठा का ही प्रतीक नहीं, बल्कि यहां की सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक सदभाव का आइना और व्यापार का भी प्रमुख केंद्र है। 17वीं शताब्दी से शुरु हुए कुल्लू दशहरा उत्सव का स्वरूप आज इतना वृहद हो गया है कि इसमें रोजाना हजारों-लाख लोग शिरकत करते हैं, जिनमें कुल्‍लू ही नहीं, देश-विदेश के पर्यटक और देव संस्कृति पर अध्ययन करने वाले हजारों शोधार्थी भी शामिल हैं।
हम सब सौभाग्यशाली है कि हम ऐसी लोक परंपराओं के बीच मौजूद है जिन्हें जानने समझने पूरी दुनिया इस देव भूमि में आती है। मैं यहाँ आए सभी अतिथियों और श्रद्धालुओं का धन्यवाद करता हूं कि आप सब आज हमारे साथ इन खुबसूरत लोक सांस्कृतिक परंपराओं का आनंद ले रहे हैं और इस देवभूमि में मौजूद देवी-देवताओं का आशीर्वाद हमें मिल रहा है।  इस मौके पर विशेष तौर पर कुल्लू दशहरा पहुंचे माताश्री मंगलाजी एवं भोलेजी महाराज जी का राज्यपाल आचार्य देवव्रत, हिमाचल प्रदेश के वन एवं परिवहन मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने अभिवादन किया।

  • अपने अंदर छिपे रावण को जलाना होगा  : माता श्री मंगला जी 

इस अवसर पर हिमाचल के वन, परिवहन युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री श्री गोविंद सिंह ठाकुर ने वात्सल्य की प्रतिमूर्ति, दिन- दुःखियों की मसीहा, समाज सेवा को समर्पित परमपूज्य श्री भोले जी महाराज व पूज्य माता श्री मंगला जी का कुल्लू  घाटी में पधारने पर स्वागत अभिनंदन किया। इस मौके पर करुणामयी माता श्री मंगला ने प्रदेशवासियों को कुल्लू के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि हंस फाउंडेशन द्वारा देशभर में गरीब व जरूरतमंद लोगों का शिक्षा व स्वास्थ्य  के क्षेत्र में जिम्मा उठाया है। माता श्री मंगला जी ने कहा की हाल ही में हंस फॉउंडेशन द्वारा ठाकुर कुंज लाल दामोदरी ठाकुर मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट के सहयोग से निःशुल्क मेडिकल चिकित्सा शिविर का आयोजन किया था। जिसमें 610 मरीजों के सवास्थ्य की निःशुल्क जांच की थी। उन्होंने कहा कि हंस फाउंडेशन द्वारा हिमाचल को हर सम्भव सहयोग दिया जाएगा। इस मौके पर माताश्री मंगलाजी ने मंच पर आसानी महामहिम राज्यपाल एवं अतिथियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि हर वर्ष दशहरे के दिन हम रावण को जलाते हैं और खुशियां मनाते हैं, लेकिन रावण के पुतले जलाने मात्र से रावण मरेगा नहीं, जब तक हम अपने अंदर छिपी रावण वृत्ति को दूर नहीं करेंगे तब रावण हर क्षण हमारे भीतर से बाहर आता ही रहेगा और हमें परेशान करता रहेगा। इसलिए हमें अपने भीतर छीपी रावण की वृत्ति को हटाना होगा।

लोक परंपरा के साथ खड़े होने के बने गवाह : माता श्री 

माताश्री मंगलाजी ने कुल्लू दशहरा में निमंत्रण देने के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार और कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर का आभार प्रकट करते हुआ कहा कि हम भगवान रघुनाथजी एवं माता भुवनेश्वरी से देश में सुख-शांति-समृद्धि की कामना करते हैं। उन्होंने कहा आज हम सब उस लोक परंपरा के साथ खड़े होने के गवाह बन रहे है, जिसे पूरी दुनिया में पूजा जाता है। जिसे पूरी दुनिया देखने-समझने आती है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी परंपराएं केवल भारत में ही देखने को मिलती है। आप इस दशहरे के महत्व को समझें तो यह दशहरा पर्व, परंपरा, रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है तब इस घाटी में उत्सव के रंग बिखरने लगते। हम इस लोक उत्सव में आएं आप सभी दर्शनार्थियों को इस लोक पर्व की बधाई देते हैं।

माता मंगला जी एवं श्री भोलेजी महाराज जी के आने से जनता हुई धन्य :ठाकुर 

इस मौके पर हिमाचल प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी, माताश्री मंगला जी एवं श्री भोले जी महाराज जी का स्वागत करते हुए कहा कि आज हिमाचल प्रदेश की जनता धन्य हो गई है कि उनके लोक उत्सव पर्व में महामहिम राज्यपाल जी और समाजसेवी माता मंगला जी एवं श्रीभोलेजी महाराज जी के साथ हजारों की संख्या में प्रबुद्धजन शामिल हुए हैं। श्री ठाकुर ने बताया कि माताश्री मंगलाजी एवं भोलेजी महाराज जी अपनी संस्था हंस फाउंडेशन एवं हंस कल्चर सेंटर दिल्ली के माध्यम से निरंतर हिमाचल में गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को सेवाएं दे रहे हैं और यह हम सब के सौभाग्य की बात है हमारे लोक सांस्कृतिक देव उत्सव के मौके पर माताश्री मंगलाजी एवं भोलेजी महाराज जी का आशीष हम सब को मिल रहा है। इसके हम हिमाचल प्रदेश की जनता की तरफ से आपका आभार प्रकट करते हैं।

इस मौके पर बंजारा के विधायक सुरेंद्र शौरी, आनी के विधायक किशोरी लाल, कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह, कुल्लू के पूर्व विधायक राज महेश्वर सिंह, कुल्लू देव-देवता कारदार संघ के अध्यक्ष जयचंद ठाकुर और कुल्लू के उपायुक्त और अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव समिति के उपाध्यक्ष युनूस खान सहित देश-विदेश आए लाखों दर्शक मौजूद थे।

गौरतलब हो कि यहां के प्रसिद्ध दशहरे में न इस दशहरे में रावण का वध या दहन होता है और न ही रामलीला का आयोजन। यहां शुरू होता है तो देव म‍िलन का समागम, देव संस्कृति की झलक और कुल्‍लू की उस परंपरा व संस्कृति का नजारा, ज‍िसे देखने के ल‍िए भारत ही नहीं व‍िदेशों से भी लोग पहुंचते हैं। हिमालय की पर्वत मालाओं में बसे हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में देव मिलन का समागम कुल्लू दशहरा, यूं ही अंतरराष्ट्रीय उत्सव नहीं बन गया। इसके पीछे ये सब आयाम हैं, जिन्होंने इस समारोह को पहले राज्य, फिर राष्ट्रीय और अब अंतरराष्ट्रीय उत्सव बना दिया है।

कुल्लू दशहरा यहां समूची घाटी में बसे ग्रामीण लोगों की देव आस्था एवं सामाजिक प्रतिष्ठा का ही प्रतीक नहीं, बल्कि जिला की सांस्कृतिक विरासत, सामाजिक सदभाव का आइना और व्यापार का भी प्रमुख केंद्र है। 17वीं शताब्दी से शुरु हुए कुल्लू दशहरा उत्सव का स्वरूप आज इतना वृहद हो गया है कि इसमें रोजाना हजारों-लाख लोग शिरकत करते हैं, जिनमें कुल्‍लू ही नहीं, देश-विदेश के पर्यटक और देव संस्कृति पर अध्ययन करने वाले हजारों शोधार्थी भी शामिल हैं। किसी जमाने में महज खाद्यान्न, फल, सूखे मेवे, पशु एवं वस्त्र कारोबार से शुरु हुआ यह मेला आज करोड़ों का व्यापार करने वाला उत्सव बन गया है।

विदेशी सांस्कृतिक दलों भी करते हैं शिरकत

इसी के साथ विदेशी सांस्कृतिक दलों के कार्यक्रमों ने इस मेले को अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा दिलाया। कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा ऐतिहासिक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक विचारधारा का अनूठा संगम है और व्यापारिक दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। देश की आजादी के बाद हिमाचल गठन के साथ ही घाटी के इस सदियों पुराने मेले को राज्य स्तरीय उत्सव बना दिया गया था, जबकि वर्ष 1970 में इसे राष्ट्रीय स्तर का दर्जा मिला। इसके बाद 1973 में रोमानिया के सांस्कृतिक दल ने यहां आकर कार्यक्रम प्रस्तुत किया, जिसके अगले दो-तीन सालों तक रूस के कलाकार भी आए और तब से लेकर अब तक यहां हर वर्ष कई देशों के कलाकार आ रहे हैं। ऐसे में कुल्लू के दशहरा उत्सव को अंतरराष्ट्रीय मेला कहा जाने लगा और अब प्रदेश सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय उत्सव का दर्जा देने की अधिसूचना भी जारी कर दी है।

कुल्लू दशहरा का है प्राचीन इतिहास

कुल्लू घाटी का परिदृश्य 17वीं शताब्दी के मध्य में बदल गया, जब एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रभु राम अयोध्या से यहां आए और कुल्लू में शैव मत के साथ ही वैष्णव मत का भी उदय हुआ। कहा जाता है कि 1650 के दौरान कुल्लू के राजा जगत सिंह को ब्रह्म हत्या का शाप लग गया, जिससे उन्हें कोढ़ हो गया और कोई भी औषधी उन्हें स्वस्थ नहीं कर पाई। ऐसे में एक बाबा पयहारी ने उन्हें बताया कि अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ की मूर्ति यहां लाकर यदि राजा उसके चरणामृत का सेवन व स्नान करेंगे तो लाभ होगा।

इस पर पंडित दामोदर को वहां से मूर्ति लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। बताया जाता है कि बड़े जतन से जब मूर्ति को चुराकर हरिद्वार पहुंचे तो वहां उन्हें पकड़ लिया गया। उस समय ऐसा करिश्मा हुआ कि जब अयोध्या के पंडित मूर्ति को वापस ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गई कि कइयों के उठाए से नहीं उठी और जब यहां के पंडित दामोदर ने उठाया तो मूर्ति फूल के समान हल्की हो गई। ऐसे में पूरे प्रकरण को स्वयं भगवान रघुनाथ की लीला जानकार अयोध्या वालों ने मूर्ति को कुल्लू लाने दिया।

सबसे पहले इस मूर्ति का पड़ाव मंडी-कुल्लू की सीमा पर मकड़ासा में हुआ, जिसके बाद इसे मणिकर्ण के मंदिर में स्थापित किया गया। बाद के समय में रघुनाथ की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया गया और उनके आगमन में राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, जिन्होंने भगवान रघुनाथ को सबसे बड़ा मान लिया। साथ ही राजा ने भी अपना राजपाठ त्याग कर भगवान को अर्पण कर दिया और स्वयं उनके मुख्य सेवक बन गए, यह परंपरा आज भी कायम है, जिसमें राज परिवार का सदस्य रघुनाथ जी का छड़ीबरदार होता है। पुराने समय से ही यहां का दशहरा अपनी विशिष्ट परंपरा के साथ मनाया जाता है।

  •  ढालपुर मैदान हुआ देवमय 
  • कुल्लवी नाटी का वर्ड रिकार्ड

वर्ष 2015 में दशहरा स्थल ढालपुर मैदान में लगभग 13 हजार महिलाओं ने पारंपरिक परिधान में सैकड़ों वाद्य यंत्रों पर कुल्लवी नाटी की, जिसे गिनिज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में स्थान मिला। हालांकि कुल्लवी नाटी और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम दशहरे में आरंभ से होते आ हैं, जिसे पहले देवताओं के शिविर के सामने किया जाता था, लेकिन जैसे-जैसे आयोजन बढ़ता गया, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का स्तर भी शिखर चूमता रहा। आज उत्सव के दौरान बाकायदा सात सांस्कृतिक संध्याएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें बालीवुड के नामचीन कलाकार ही भाग नहीं लेते, बल्कि विदेशी कलाकार भी यहां के ओपन थियेटर कलाकेंद्र में अपनी प्रस्तुतियां देते हैं।

भुवनेश्वरी माता की पताका फहराने से शुरू हुई रथयात्रा

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का मुख्य आकर्षण भगवान रघुनाथजी की रथयात्रा माता भुवनेश्वरी की पताका लहराए जाने के बाद ही शुरु होती है। कहा जाता है कि बरसों पहले कुल्लू के एक राजा ने दशहरा मेले के लिए माता को ढालपुर में लाने के लिए अपने दूत भेजे। यह लोग जबरदस्ती भेखली मंदिर से माता का रथ लेकर आने लगे और अभी यह आधे रास्ते तक ही पहुंचे थे कि राजमहल में हर तरफ से सांप ही सांप निकलने लगे और छोटा सा सरवरी नाला नदी का रूप लेकर महल के प्रांगण तक पहुंच गया। राजा ने पुजारियों से इसका कारण जाना तो पता चला कि मां भुवनेश्वरी का प्रकोप है, जिस पर राजा की ओर से माफी मांगी गई और वचन दिया कि माता को उनकी मर्जी के बिना कभी दशहरा मेले में नहीं लाया जाएगा। इसके बाद से ही परंपरा चल पड़ी कि जब भुवनेश्वरी माता का रथ मंदिर से श्राण बेहड़ तक आएगा और गुर पताका लहराकर नरसिंघे की ध्वनि करेंगे तो ही ढालपुर मैदान से रथयात्रा शुरु होगी।

 

 

माता हिडिंबा राजपरिवार की थी दादी

मनाली में स्थापित माता हिडिंबा कुल्लू राजपरिवार की दादी हैं, जिनके आने के बाद से ही दशहरा उत्सव एवं रथयात्रा की विधिवत तैयारियां शुरु होती है। विजय दशमी की सुबह माता अपने रथ अथवा पालकी में सवार होकर जैसे ही रामशीला पहुंचती है तो राजपरिवार का सदस्य उनके स्वागत के लिए वहां पहुंचता है। उन्हें ससम्मान राज महल लाकर पूजा-अर्चना की जाती है और माता वहां राजा को आशीर्वाद देती है, जिसके बाद आगे का आयोजन शुरु होता है। मान्यता है कि कुल्लू राजवंश के प्रथम शासक विहंगमणिपाल को एक बुजुर्ग औरत के भेष में माता हिडिंबा ने ही शासन बख्शा था।

यहां नहीं जलते रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ के पुतले 

आश्विन मास की दशमी से शुरु होने वाले कुल्लू के दशहरे की सबसे बड़ी बात कि यहां देश के अन्य हिस्सों की तरह रावण, कुंभकर्ण एवं मेघनाथ के पुतले नहीं जलाए जाते। यही नहीं कुल्लू में रामलीला का मंचन भी नहीं किया जाता। कुल्लू घाटी का यह प्राचीन उत्सव दशहरे के दिन से शुरु होता है, जिसके सातवें दिन लंका बेकर में पशु बलि के साथ तीन झाड़ियों को जलाया जाता है और इन्हें ही रावण, कुंभकर्ण व मेघनाथ का प्रतीक माना जाता है।

ललचाते हैं परंपरागत व्यंजन

दशहरे के दौरान जगह-जगह लगे व्यंजनों के स्टॉल भी लोगों को खूब ललचाते हैं। घाटी के अपने पकवान हैं, जो यहां सालों से बनते आए हैं, जो क्षेत्र में सर्दी के लिहाज से पकाए जाते थे और आज परंपरा बन गई है। इनमें प्रमुख रूप से गेहूं के आटे को खट्टा करके बन की तरह सिडू बनाया जाता है, जिसके अंदर स्वाद के हिसाब से अखरोट, मूंगफली, अफीमदाना का मीठा या नमकीन पेस्ट भरा जाता है।

हथकरघा वस्त्र हैं कुल्लू दशहरे की शान

कुल्लू हथकरघा उत्पादन, यहां के अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव की विशेष शान है, जो यहां के बाशिंदों के हुनरमंद हाथों से तैयार किए जाते हैं। हालांकि कुल्लू घाटी सहित प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर ऊनी वस्‍त्रों का उत्‍पाद बहुत पुराना है, लेकिन 20वीं सदी में यहां सुनियोजित तरीके से व संगठित रूप में हथकरघा उद्योग विकसित हुआ। इसमें शॉल के अलावा यहां की कुल्लवी टोपी, मफलर, मोजे व स्टॉल भी हथकरघा के विशेष उत्पाद हैं।

देखिये माता श्री मंगला जी ने क्या कहा हिमाचल के कुल्लू में ……

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