पांच राज्यों में मिले जनादेश से यह स्पष्ट हो गया कि लोग शांति और विकास के पक्षधर हैं। भारतीय राजनीति में सेवा का अवसर गंवा देने वाले तथा गलती करने वालों नेताओं के लिए जगह कम होती चली जायेगी।
कमल किशोर डूकलान
भारतीय राजनीति का यह दौर भाजपा के लिए सुखद रूप से ऐतिहासिक है। देश के सबसे महत्वपूर्ण सूबे उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली जीत कुशल राजनीतिक प्रबंधन की एक बेहतरीन मिसाल है। जमीन से लेकर टेबल तक और रणनीति से लेकर वोट की राजनीति तक जो घटा है, वह अपने आप में विपक्षी दलों के लिए एक अध्ययन का विषय है।
भाजपा को साफ तौर पर पता था कि महामारी की वजह से देश कैसी समस्याओं से गुजर रहा है और समस्याओं की तेज तलवार पर एक पार्टी कैसे,कितने समय तक टिक सकती है? मणिपुर, गोवा, उत्तराखंड की चर्चा छोड़ भी दें, तो अकेले उत्तर प्रदेश का हाथ से निकल जाना भाजपा के लिए क्या मायने रखता, इसे नरेंद्र मोदी के केंद्रीय और योगी आदित्यनाथ के राज्य नेतृत्व ने बहुत बेहतर ढंग से समझा था, तो नतीजे सामने हैं।
उत्तर प्रदेश का चुनाव सभी पार्टियों के लिए एक प्रकार से अग्नि-परीक्षा की तरह था, पर इन पार्टियों की मेहनत में कमी रह गई। हो सकता है, विपक्षी पार्टियों ने कड़ी मेहनत की हो,लेकिन सच यह है कि समग्रता में भाजपा अपनी मेहनत से बहुत आगे निकल गई है।
राम, शिव और कृष्ण से जुड़े इस प्रदेश में भाजपा स्वयं अपने लिए भी नया इतिहास लिख चली है। जीत के इस सिलसिले से पार्टी को भविष्य के लिए बहुत बल मिलने वाला है। सत्ता-विरोधी सामान्य लहर के बावजूद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मिले 40 प्रतिशत से ज्यादा मत और गोवा, मणिपुर के सम्मानजनक मत को अगर हम देखें,तो पाएंगे कि लोग भाजपा से संतुष्ट हैं। तुलनात्मक रूप से भाजपा ऐसी पार्टी है, जो आज अपनी योजनाओं के साथ गरीबों के साथ खड़ी है।
करोड़ों नौकरियों के खत्म होने,बेरोजगारी बढ़ने,महंगाई और सत्ता की कुछ खामियों के बावजूद भाजपा को लोग तरजीह दे रहे हैं, तो बाकी पार्टियों को ईमानदारी से सबक लेना चाहिए। यह मुश्किल दौर गवाह है कि आम लोग मदद की बाट जोह रहे हैं, पंजाब में जो सरकार यह काम नहीं कर पाई, वह चली गई। वहां आम आदमी पार्टी की ऐसी सरकार आ रही है, जिसके दावों पर लोगों को विश्वास है। आम आदमी पार्टी ने गोवा और उत्तराखंड में भी जोर लगाया था, लेकिन वहां लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ही अपना सच्चा हितैषी देखा। इन नतीजों की एक व्यंजना यह भी है कि जीतेगा वही, जो मुसीबत में आम लोगों के साथ खड़ा दिखेगा।
नतीजों के बाद अनेक सुखद सवाल भी उभरने लगे हैं। क्या बार-बार अपने क्षेत्र या अपने लोगों के बीच जाने की राजनीति लौट आई है? क्या कोई बड़ा कदम उठाकर लोगों को रिझाने-दिखाने की राजनीति लौट आई है? क्या अपने ठोस विचारों या नीतियों पर बहुत आलोचना के बाद भी टिके रहने की राजनीति होने लगी है? क्या समाज को यह संदेश चला गया है कि कोरी सांप्रदायिकता या उसका भय काम नहीं आएगा, सरकार के साथ मिलकर विकास करते चलने में ही परिवार और समाज की भलाई है? पश्चिम बंगाल में मिली सीटों से भाजपा का जो उत्साह बढ़ा था, उसका असर उत्तर प्रदेश चुनाव में दिख गया है, मानो कसर पूरी हो गई हो।
अब जनता का एजेंडा और साफ हुआ है, वह अपना फायदा देखने लगी है। उसे अपने छोटे-छोटे हितों की ज्यादा चिंता है, वह किसी मुगालते में नहीं है। निस्संदेह, भाजपा के नेतृत्व की जिम्मेदारी अब और बढ़ गई है, लोग शांति और विकास के पक्षधर हैं। अब गलती करने वाले या सेवा का मौका मिलने पर गंवा देने वाले नेताओं के लिए जगह कम होती चली जाएगी।