Uttarakhand

24 घंटे में 116 जगह लगी आग 992 हेक्टेयर जंगल हुआ स्वाहा

  • जंगलों की आग ने गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में मचाई तबाही
  • आग से अब तक लगभग 16,56,628 रुपये का नुकसान
  • आग से बचाने को 1437 क्रू स्टेशन, 174 वाच टावर से निगरानी 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून: हर साल धधकते रहते हैं जंगल हर साल जंगलों को बचाने की वन विभाग करता है कसरत लेकिन उसके बाद भी आखिर क्यों बेबस हो जाता है वन विभाग। उत्तराखंड के जंगलों की यही नियति बन चुकी है और वर्षों से यही तस्वीर सामने भी आती रही है। पहाड़ों से लेकर सूबे के तराई के जंगलों तक के धधकते जंगलों की कुछ ऐसी ही तस्वीर सामने आ रही है।

एक जगह जंगल में आग बुझती नहीं कि दूसरे में भड़क उठती है। ऐसा नहीं इस आग से केवल पेड़ पौधे ही जल रहे हैं, इस आग से जंगली जानवरों की जान पर भी बन आयी है, उनके सामने खुद को बचाने की समस्या है, तो वहीं कई जंगलों में पक्षियों के अंडे और जानवरों के छोटे-छोटे बच्चे तक आग का शिकार हो चुके हैं। वहीं बीते दो सप्ताह के दौरान तो आग ने तमाम जंगलों में विकराल रूप धारण किया है।

इस अवधि में ही जंगलों में आग की 623 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जबकि 15 फरवरी से 30 अप्रैल तक 88 घटनाएं हुई थीं। इसके साथ ही इस फायर सीजन में अब तक वनों में आग की घटनाओं की संख्या 711 पहुंच चुकी है, जिसमें लगभग 992 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इस बीच अल्मोड़ा के मानीला के जंगल में भड़की आग से वहां रखा हजारों कुंतल लीसे के टिन खाक हो गये हैं। यही नहीं, पौड़ी, चमोली, अल्मोड़ा, नैनीताल और चंपावत जिलों में दो दर्जन से अधिक स्थानों पर अभी भी आग भड़कने की सूचना है।

वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो राज्य में अब तक आग की कुल 711 घटनाओं में आग को काबू पाने को लेकर चलाए गए अभियान के दौरान छह वनकर्मी भी झुलस चुके हैं, जबकि गढ़वाल क्षेत्र में आग से छह वन्यजीवों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा अधिक भी हो सकता है। आग की बढ़ती घटनाओं ने फिलहाल विभाग के आला अफसरों की मुसीबत बढ़ा दी हैं। आंकड़ों के मुताबिक कुमाऊं मंडल में अब तक जहां कुल 447 जगहों पर आग लगने की घटनाएं हुई हैं। गढ़वाल में यह आंकड़ा 226 तक पहुंच गया है। राज्य के वन्यजीव अभयारण्यों में आग लगने की 36 घटनाएं हो चुकी हैं। वन पंचायतों व सिविल सोयम क्षेत्रों में 153 जगहों पर आग लग चुकी है। इस तरह की घटनाओं का आंकड़ा 711 तक पहुंच गया है। वनाग्नि से अब तक 992.465 हेक्टेयर जंगल जल चुका है। वहीं 984 बड़े पेड़ आग की भेंट चढ़ चुके हैं। इस आग से अब तक लगभग 16,56,628 रुपये का नुकसान होना बताया जा रहा है। 

सबसे बड़ा सवाल वन विभाग की कार्यशैली पर उठता है कि जब फायर सीजन शुरू होने से पहले सभी कदम उठाए गए थे तो घटनाओं पर तुरंत नियंत्रण क्यों नहीं हो पा रहा। ऐसा नहीं कि केवल इसी साल प्रदेश के जंगलों में आग लगी हो बीते हर सालों में इस तरह की घटनाएं सामने आती रही हैं कई स्थानों पर तो जंगल पांच-छह दिन तक सुलगते रहे। ग्रामीणों के सहयोग से जैसे-तैसे जंगलों में फैली आग पर काबू पाया जा सका। ऐसे में महकमे की तैयारियों पर भी सवाल उठना लाजिमी है। इस बीच खबर है कि अल्मोड़ा, नैनीताल, पौड़ी, चंपावत जिलों में कई जगह सोमवार को भी जंगल धधकते रहे।

दूसरी ओर वन विभाग के आला अधिकारियों के अनुसार जंगलोें को आग से बचाने के लिए वन निदेशालय में अत्याधुनिक नियंत्रण कक्ष स्थापित कर दिया गया है। जंगलों में लगी आग पर तत्काल काबू पाया जा सके इसके लिए पूरे राज्य में 1437 क्रू स्टेशन की व्यवस्था की गई है। सभी क्रू स्टेशन में सात कर्मचारियों की तैनाती की गई है। इसके अलावा राज्य में 174 वॉच टावर स्थापित किए गए हैं। जंगलों में लगी आग की तत्काल जानकारी के लिए प्रभागीय मास्टर कंट्रोल रूम, रेंज कार्यालयों, क्रू स्टेशन और फील्ड स्टाफ  को वायरलेस मुहैया कराए गए हैं। वहीं आग की घटनाओं की जानकारी आनलाइन मुहैया कराने की भी व्यवस्था की गई है।इसके अलावा फारेस्ट सर्वे ऑफ  इंडिया से एसएमएस द्वारा फायर अलर्ट प्राप्त करने की सुविधा शुरू की गई है। जंगलों में आग न लगे या लगने की स्थिति में तत्काल इस पर काबू पाया जा सके। इसके लिए सभी 40 प्रभागीय वनाधिकारियों के मुख्यालयों में मास्टर कंट्रोल रूम की स्थापना की गई है। 

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