पार्टी हाईकमान के हाथ में हरीश व किशोर के चुनाव लड़ने का फैसला
देहरादून। मुख्यमंत्री हरीश रावत व पीसीसी चीफ किशोर उपाध्याय 2017 में चुनाव लड़ेंगे या नहीं इस पर संशय बरकरार है। वैसे इसका पफैसला पार्टी हाईकमान को करना है। लेकिन यह भी संभव है कि पार्टी हाईकमान इन्हें चुनाव न लड़वाकर चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंपे। वैसे कुछ समय पूर्व पीसीसी चीफ किशोर हाईकमान से मुख्यमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष को चुनाव लडने की बजाए लड़ाने की जिम्मेदारी सौंपे जाने का आग्रह कर चुके हैं। ताकि दोनों ही पूरी ताकत के साथ पार्टी की सत्ता में वापसी सुनिश्चित कर सकें।
बताया जा रहा है कि यह मामला अभी पार्टी हाईकमान के पास विचाराधीन है और जल्द ही इस पर फैसला होने की उम्मीद है। वहीं यदि सूत्रों की माने तो हरीश रावत और किशोर को यदि चुनाव न भी लड़ाया गया तो वे इसका कोई विरोध नहीं करेंगे। दोनों ही नेता चुनाव न लड़ने में खुद का फायदा समझ रहे हैं। हरीश यदि चुनाव नहीं लड़ते हैं तो वे एक टिकट अपने परिजन (पुत्री अनुपमा रावत अथवा पुत्र आनन्द रावत, वीरेन्द्र रावत) के लिए आसानी से दिलवा सकते है। दूसरा फायदा उन्हें यह होगा कि उन्हें ऐसे में उन्हें अपने चुनाव जीतने की फिक्र नहीं रहेगी और वे सभी 70 विधानसभा सीटों पर फ्री माइंड होकर ध्यान दे सकते हैं।
यदि कांग्रेस की सरकार नहीं तो फिर वे मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार रहेंगे और सीएम बनने पर आसानी से उपचुनाव जीत सकते हैं। किशोर को भी चुनाव न लड़ने के फायदे होंगे। दरअसल, अभी तक के जो हालात हैं, उन्हें देखकर यह कहा जा जा रहा है कि किशोर की परम्परागत सीट टिहरी से पीडीएफ कोटे के कैबिनेट मंत्री दिनेश धनै को कांग्रेस टिकट दे सकती है। ऐसे में किशोर को किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ने का रिस्क उठाना पड़ेगा। लेकिन यदि हाईकमान किशोर को चुनाव लड़ने से इंकार करता है तो किशोर को आगामी लोकसभा चुनाव में टिहरी से टिकट दिये जाने का ठोस आश्वासन मिल सकता है। दूसरा फायदा यह भी रहेगा कि किशोर टिहरी से अन्यत्र सीट से चुनाव लड़ने के रिस्क से बच जाएंगे। बहरहाल जो भी हो हरीश और किशोर के चुनाव लड़ने या न लड़ने का फैसला पार्टी हाईकमान को करना है, जिस पर सभी की नजर टिकी हुई है ।