उत्तराखंड की ‘जरूरत’ हैं नेगी ‘दा’…
योगेश भट्ट
देहरादून : बुधवार की रात एक समाचार ने उत्तराखंडी समाज के मन में उत्तराखंड से लेकर देश-दुनिया में अचानक बेचैनी फैला दी। खबर थी लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की अचानक तबियत बिगड़ने की। उन्हें हृदयघात हुआ था। जैसे ही खबर अस्पताल से बाहर निकली तो सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक हलकों में बेचैनी बढ गई। इसके बाद शुरू हुआ अफवाहों का दौर।
इन अफवाहों के चलते एक बात साफ हो गई कि नरेंद्र सिंह नेगी उत्तराखंडी जनमानस के अतर्मन में गहरे समाए हुए हैं। सरकारें भले ही उन्हें आज तक उचित सम्मान नहीं दे पाईं, मगर प्रदेशवासियों के दिलों में उनके लिए जो आदर है, वह विरलों को ही मिलता है। नरेंद्र सिंह नेगी महज एक लोकगायक नहीं हैं। उनका बहुत बड़ा व्यक्तित्व है। पहाड़ के प्रति उनका लगाव, प्रतिबद्धता, समर्पण एवं जिजीविषा से हर कोई वाकिफ है। पिछले चार दशकों से वे निरंतर अपनी लेखनी और सुरीले कंठ से पहाड़ की हर पीड़ा को, हर सुख- दु:ख को स्वर देते आ रहे हैं।
यही वजह है कि आज वे पहाड़ का प्रतिनिधि चेहरा हैं। कहा भी जाता है कि यदि किसी व्यक्ति को पहाड़ के बारे में कुछ जानना-समझना हो तो नरेंद्र सिंह नेगी की रचनाओं को जानना ही पर्याप्त है. राज्य बनने से पहले से ही नरेंद्र सिंह नेगी अपने गीतों के माध्यम से पहाड़ की हर हलचल को, हर जरूरत को हर सवाल को आवाज देते रहे हैं। चाहे पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरुक करने की बात हो या फिर महिलाओं की कठिन जीवन शैली, पलायन का मुद्दा हो या रोजगार का सवाल। विकास का मुद्दा हो या फिर जल जंगल और जमीन को लेकर सुलगते सवाल, नरेंद्र सिंह नेगी ने उत्तराखंड से जुड़े हर छोटे-बड़े मुद्दे पर जनभावनाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से व्यक्त किया है।
राज्य आंदोलन के दौर में आए उनके गीतों को कौन भुला सकता है भला? ‘हिटण लग्यां छिन बैठण कू जगा नीं, बाटा भर्यां छिन सकड़ों मा लगा नीं, बोला कख जाणा छिन तुम लोग, उत्तराखंड आंदोलन मां…’ यह वो गीत था जिसे सुन कर प्रदेशभर की जनता अलग राज्य के समर्थन में सड़कों पर उतर गई थी। राज्य बनने के बाद भी नेगी जी की लेखनी और गला उतराखंड के सवालों को हमेशा आवाज देते आए हैं।
राज्य बनने के बाद प्रदेश में जिस तरह की राजनीतिक शून्यता आई है, जिस तरह की निराशा पैदा हुई है, जिस तरह की विकल्पहीनता उत्पन्न हुई है, उसे नेगी जी से बेहतर किसने बयान किया है? नेगी जी के होने के मायने इस बात से भी समझे जा सकते हैं कि राज्य बनने के बाद से अब तक सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कोई भी पहल बिना उनकी सहभागिता के मूर्त रूप नहीं ले पाई है। कुछ पहलों में वे खुद आगे बढ कर आए तो कुछ में उनकी सहभागिता सुनिश्चित की गई।
सच बात तो यह है कि प्रदेश आज भी जिस भटकाव के दौर में है, उससे बाहर निकलने के लिए नेगी जी जैसे जनपक्षधर व्यक्तित्व की मौजूदगी बेहद जरूरी है। जनता के पास अपना दु:ख-दर्द, अपनी पीड़ा, अपनी खुशी, अपनी उम्मीदें साझा करने के लिए नरेंद्र सिंह नेगी का कोई विकल्प नहीं है। ऐसे में सभी की यही कामना है कि हम सबके प्यारे, गढरत्न नरेंद्र सिंह नेगी जल्द स्वस्थ हो जाएं। उम्मीद है वे जल्द स्वस्थ होकर हमारी भावनाओं को आवाज देने के लिए फिर से तैयार मिलेंगे।