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भजन तेरा बहुत हो गया भ्रष्टाचार, अब जीरो टॉलरेंस सरकार का होगा तुझ पर वार
राधा रतूड़ी के नेतृत्व में पूर्व सचिव सुरेंद्र सिंह रावत करेंगे जांच !
लगभग चार सौ पृष्ठों की संकलित पुस्तक में हैं भ्रष्टाचार के कारनामें
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड के अस्तित्व में आने से लेकर और या यूँ कहें कि पूर्ववर्ती उत्तररदेश शासन के दौरान से लेकर आज तक शायद ही उत्तराखंड सहित उत्तरप्रदेश के अधिकारियों में ऐसा एक अधिकारी होगा जिसपर भ्रष्टाचार के मामलों के फेहरिस्त के संकलन पर कोई किताब बनी होगी। मगर ऐसा उत्तराखंड के 19 वें साल पूरा होने पर हुआ है।
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उत्तराखंड के पेयजल निगम के एमडी भजन सिंह पर बीते दिनों प्रेस क्लब में दिल्ली सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम त्रिपाठी की पत्रकार वार्ता के दौरान वितरित पुस्तक चर्चाओं में है। अधिवक्ताओं का कहना है कि वे इस मामले को लेकर उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करेंगे क्योंकि उत्तराखंड पेयजल निगम में भ्रष्टाचार अब सिर से ऊपर जा चुका है और अब तक की सरकारों ने ऐसे मगरमच्छ को पेयजल निगम के भ्रष्टाचार के तालाब में पनपाया ही नहीं बल्कि उसका लालन-पालन भी किया। यही कारण है कि पेयजल निगम का एमडी भ्रष्टाचार का ”भस्मासुर” बन चुका है।
मामले का संज्ञान लेते हुए जीरो टॉलरेंस पर काम कर रही त्रिवेंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार के कारनामों पर संकलित 400 पृष्ठों की इस पुस्तक का संज्ञान लेते हुए पेयजल निगम के भस्मासुर की जांच का मन बनाया है। सरकार के सूत्रों के अनुसार अपर मुख्यसचिव राधा रतूड़ी की अगुवाई मैं 400 पेज के इस भ्रष्टाचार के ग्रंथ में समाहित सभी मामलों की जांच सचिव रहे सुरेंद्र सिंह रावत करेंगे।
गौरतलब हो कि देवभूमि मीडिया डॉट कॉम पेयजल निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल बीते 2017 से खोलता रहा है इस दौरान पेयजल निगम के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा देवभूमि मीडिया डॉट कॉम के प्रबंध सम्पादक को धमकियाँ ही नहीं बल्कि एमडी पेयजल निगम द्वारा मानहानि का नोटिस तक डराने के लिए दिया गया ताकि वे हमारा मुंह बंद कर सकें लेकिन हमने सच्चाई का साथ दिया और पेयजल निगम के एमडी ने के काले कारनामों को तब से लेकर अब तक प्रकाशित किया और अब आगे भी करते रहेंगे।
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मामले में पहली जांच प्रशासनिक भ्रष्टाचार की शुरुआत सबसे पहले निगम की महाप्रबंधक की कुर्सी से ही शुरू होगी। विभागीय जानकारी और चर्चाओं के अनुसार एमडी ने सबसे पहले अपनी ही कार्य संचालन नियमावली में ही परिवर्तन करवाकर ‘’भस्मासुर’’ की तरह अजेय शक्तियां खुद ही प्राप्त कर ली यानि जब तक सेवानिवृत होने का समय न आ जाय वे कुर्सी से चिपके रह सकते हैं। जबकि इससे पूर्व के जितने भी एमडी हुए हैं वे सब या तो तीन वर्ष तक के लिए एमडी के पद पर रहते थे अथवा सेवानिवृति तक यानि कार्यकाल या उम्र में से जो भी पहले पूरा होता था उसी समय तक वे एमडी की कुर्सी पर बैठ सकते थे। इनमें भी कई उदाहरण ऐसे हैं कुछ तो उम्र पूर्ण होने के कारण मात्र दो या ढाई साल में ही एमडी की कुर्सी से विदा हो गए।
वहीँ दूसरा मामला सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाला है। जहाँ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने वेतन के धन से नमामि गंगे योजना में करोड़ों रुपये दान कर रहे हैं वहीँ पेयजल निगम के इस एमडी पर नमामि गंगे योजना में ही 700 करोड़ के घोटाले का आरोप लगा है। जिसमें जगजीतपुर शिवराज प्लांट , हरिद्वार सीवरेज प्लांट आदि के घोटाले शामिल हैं। इसी पुस्तक में नमामि गंगे परियोजना के अंतर्गत 180 करोड़ के घोटाले की जानकारी जो सूचना के अधिकार से प्राप्त की गयी है मय दस्तावेज प्रकाशित है।