कांग्रेस शासन में भी पा गए थे ऊँची पहुँच से नियुक्ति
इस बार भी फिट बैठ गई थी गोटी लेकिन जुगाड़ पर अचानक फिर गया पानी
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति का एक और मामला सामने आया है। अपने ताल्लुकातों का फायदा उठाते हुए एक सीए (Chartered Accountant) ने बेहद अहम शुल्क नियामक समिति में अपना नाम शामिल करा लिया था। लेकिन जब मुख्यमंत्री को इसकी भनक लगी तो उन्होंने इस पर तत्काल ही रोक लगा दी है।
निजी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की फीस तय करने के लिए सरकार एक शुल्क नियामक समिति का गठन करती है। इसमें दो शिक्षाविदों के साथ ही एक सीए की भी नियुक्ति की जाती है। पिछले साल इस कमेटी के गठन की प्रक्रिया शुरू की गई। कई शिक्षाविद् और कुछ सीए ने आवेदन मांगे गए। शिक्षाविद् एक ही आया लिहाजा उनका साक्षात्कार नहीं हो सका। लेकिन नौ सीए ने इसके लिए आवेदन किए। स्क्रीनिंग कमेटी ने इन सभी का साक्षात्कार किया। इसमें पंकज गर्ग के नंबर सबसे ज्यादा थे। लेकिन जब फाइनल नाम आया तो एक मंत्री ने अच्छे अंकों को पाने वाले को दरकिनार करते हुए सुदर्शन शर्मा को सदस्य नामित कर दिया। लेकिन यहाँ चर्चा यह भी है कि गर्ग और शर्मा दोनों की साझेदारी में काम करते हैं ।
ये महाशय कांग्रेस सरकार की समय में बनी कमेटी में भी सदस्य रहे थे। उस वक्त भी इनकी कार्यप्रणाली खासी चर्चा में रही थी। बताया जा रहा है कि एक सदस्य के तौर सीए संबंधित कालेज या विवि की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट तैयार करता है। इसी रिपोर्ट के आधार पर कमेटी शुल्क तय करती है। पिछली कमेटी की ओर से तय किए गए शुल्क आज तक चर्चाओं में हैं।
बताया जा रहा है कि साक्षात्कार में दूसरे नंबर रहने वाले सीए को सदस्य बनाने की जानकारी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के पास भी पहुंची। उन्होंने तत्काल ही उच्च शिक्षा विभाग के इस फैसले पर रोक लगा दी। बताया जा रहा है कि कमेटी गठन के लिए नए सिरे से आवेदन मांगे गए हैं।