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सचिवालय के अनुभागों से लेकर सचिव तक कोई भी नहीं लगा पायेगा चलती फाइलों पर ब्रेक

अब विशेष फ़ाइल पर नहीं लगेंगे पंख और न रुक ही सकेगी कोई सामान्य ही कोई फ़ाइल 

देना होगा हर फ़ाइल का हिसाब , समयबद्ध रूपसे चलेगी हर फ़ाइल  

राजेंद्र जोशी 
देहरादून : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कुछ फाइलों की तेज़ गति और कुछ की माध्यम गति और यहाँ तक कुछ फाइलों को सचिवालय की फाइलों के चट्टों के भीतर दबाए जाने से खासे नाराज हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र अब शासन के सभी सचिवों से उनके विभागों से जुडीे अनुभागों की फाइलों का लेखा.जोखा ले रहे हैं और इस दौरान जिन अनुभागों में फाइलों पर कार्यवाही का रिकॉर्ड अच्छा नहीं होगा, वहां तैनात सभी अनुभाग कार्मिकों को एक सिरे से हटाने और उनकी जगह नए की तैनाती का अभियान चलेगा।
गौरतलब हो उत्तराखंड सचिवालय में एक ऐसा मामला सामने आया जिसमें मुख्यमंत्री के अनुमोदन के आदेश होने के बाद भी सचिवालय कार्मिकों ने 14 महीने तक उस फाइल को ही गायब कर डाला। मामले की जानकारी जब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को मिली तो उन्होंने इस पर खासी नाराज़गी व्यक्त की और सचिव लोकनिर्माण विभाग को ऐसे मामले में तुरंत कार्रवाही करने के आदेश दे डाले जिसपर सचिव के आदेश पर लोक निर्माण विभाग के एक अनुभाग के अनुभाग अधिकारी से लेकर कंप्यूटर आपरेटर तक को हटाना पड़ा और उनके स्थान पर दूसरे कार्मिकों को अनुभाग में स्थानांतरित करना पड़ा। यह उत्तराखंड सचिवालय का राज्य स्थापना के बाद से अब तक का पहला मामला है जिसके लिए सरकार को विशेष आदेश निकालना पड़ा।
उल्लेखनीय है कि किसी भी प्रदेश में शासन और प्रशासन का सर्वोच्च कार्यालय सचिवालय होता है। जहां राज्य सरकार की नीतियों को सचिवालय में रखा गया है। राज्य प्रशासन को एक सुविधा में रखकर विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को विभाजित किया गया है। अक्सर सरकार की नीतियों और योजनाओं की फाइलें इन विभिन्न  विभागों के मंत्रालयों से लेकर अनुभागों तक में अटक कर रह जाती रही हैं। ऐसी कई फाइलें यहां फ़ाइलों के चट्टों की शोभा बढ़ाती हैं जिनका कोई पूछने वाला नहीं होता वहीं दूसरी तरफ वे फाइलें सरपट ऐसे दौड़ती नज़र आती हैं जैसे कि इन पर कोई पंख लगे हों, इतना ही नहीं कुछ फाइलें तो यहां जेट की रफ़्तार से भी ज्यादा तेज़ दौड़ती हैं कहा जाता हैं इन फाइलों में जेट फ्यूल भरा होता है। लेकिन आम साधारण लोगों की कुछ फाइलें ऐसी भी होती है जिनमें फाइल से सम्बंधित व्यक्ति न तो पंख ही लगा सकता है और न वह उसमें जेट फ्यूल ही डाल सकता है लिहाज़ा ऐसी फाइलें या तो खुद ही थककर अनुभागों में फाइलों के लगे चट्टे में समा जाती है या फाइल को लेकर चलने वाले व्यक्ति के चप्पल और जूते इतने घिस जाते हैं कि वह अपनी फ़ाइल के बारे में सोचना ही बंद कर देता है और थक हारकर अपने घर जा बैठता है।
गौरतलब हो कि प्रदेश में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से पहले मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूरी ने सचिवालय में फाइलों की गति को नियंत्रित करने और उनको यथा समय नियत स्थान तक पहुँचाने का एक टाइम फ्रेम तय किया था उससे पहले भी सूबे में फाइलों की अनियंत्रित गति से प्रदेशवासी परेशान थे। लेकिन अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने फाइलों पर कार्यवाही की स्थिति और समय के भीतर फाइलों को उसके गंतव्य तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है ताकि फाइलों के चक्कर में किसी प्रदेशवासी का समय और पैसा बर्बाद न हो।उनका साफ़ कहना है इस जांच के दौरान जिन अनुभागों में फाइलों पर कार्यवाही का रिकॉर्ड अच्छा नहीं होगा, वहां तैनात कार्मिकों को स्थानांतरित करने का अभियान चलाया जायेगा। मुख्यमंत्री के इस ऐलान के बाद सचिवालय में ख़लबली मची हुई है, सबसे ज्यादा वे अनुभाग डरे हुए हैं जहाँ सबसे ज़्यादा फाइलों के अटकने या अटकाए जाने की मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव तक शिकायतों का अम्बार लगा हुआ है। 

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