मुश्किल में योगी सरकार, उनके ही केस की फाइल पहुंची उनके पास !
2015 में दी गई थी अखिलेश सरकार को अर्जी
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के सामने एक मुश्किल स्थिति आ गई है। गृह विभाग के पास यूपी पुलिस की एक अर्जी दो साल से लटकी है जिनमें योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के चार अन्य के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के मामले में केस शुरू करने की अनुमति मांगी गई है। योगी आदित्यनाथ के अलावा गोरखपुर से बीजेपी विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल का नाम भी इस फाइल में है।
पुलिस ने योगी और चार अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया था। जिसमें उन पर जाति और धर्म के आधार पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। पुलिस ने गृह विभाग में अर्जी देकर उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल करने की अनुमति मांगी थी। यूपी की क्राइम ब्रांच सीआईडी की ओर से अखिलेश यादव सरकार को यह अर्जी 2015 में दी गई थी।
छेड़छाड़ के बाद भड़की थी सांप्रदायिक हिंसा
इस केस में 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर और आसपास के जिलों में भड़की सांप्रदायिक हिंसा का भी जिक्र है। यह हिंसा एक रात पहले एक स्थानीय कार्यक्रम में डांस करने आई महिलाओं से बदसलूकी के बाद भड़की थी। लोगों ने आरोपियों का पीछा किया लेकिन वे मुहर्रम के जुलूस में शामिल हो गए और उन्हें पकड़ा नहीं जा सका था। उस दौरान एक पक्ष के लोगों ने फायरिंग की जिससे मुहर्रम के जुलूस में शामिल एक शख्स की मौत हो गई। दो समूहों के बीच भड़की हिंसा में राजकुमार अग्रहरि नाम के शख्स की मौत हो गई।
‘योगी के भाषणों के वीडियो मौजूद’
गोरखपुर के पूर्व जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट परवेज परवाज (62) ने इस घटना के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने मना कर दिया। हाईकोर्ट के दखल के बाद 26 सितंबर 2008 को पुलिस ने इस मामले में शिकायत दर्ज की। एफआईआर के मुताबिक, योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवक की मौत का बदला लेने के लिए भड़काऊ भाषण दिया। परवेज ने दावा किया कि उनके पास योगी के भाषणों के वीडियो मौजूद हैं। उन्होंने दावा किया कि ये भाषण कर्फ्यू के दौरान दिया गया था।
अखिलेश सरकार ने CB-CID को ट्रांसफर किया केस
परवेज ने आरोप लगाया कि गोरखपुर में भड़की हिंसा के पीछे योगी, अग्रवाल, शुक्ल, पूर्व मेयर अंजू चौधरी और पूर्व बीजेपी एमएलसी वाईडी सिंह के नेता भी मौजूद थे। दिसंबर 2008 में अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर परवेज की एफआईआर को चुनौती दी थी जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पर रोक लगा दी थी। बाद में मामले की सुनवाई आगे बढ़ी और दिसंबर 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर के संबंध में हाईकोर्ट के फैसले को सही पाया और जांच के आदेश दिए। उस वक्त अखिलेश यादव सरकार सत्ता में आ चुकी थी और मामला सीबी-सीआईडी को ट्रांसफर कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा केस का स्टेटस
परवेज के वकील फरमान नकवी ने कहा, ‘केस को फिर शुरू करने के लिए हमने इलाहाबाद हाईकोर्ट में साल 2015 में अपील की। अर्जी पर आदेश देने से पहले कोर्ट ने सरकार से केस के स्टेटस को लेकर जवाब मांगा। 20 फरवरी 2017 को दिए गए हलफनामे में सरकार ने बताया कि सीबी-सीआईडी ने पहले ही चार्जशीट दायर करने को लेकर अर्जी दी है, जो कि फिलहाल राज्य सरकार के पास रुकी हुई है।
रिपोर्ट में पांचों आरोपियों के खिलाफ केस की बात
10 मार्च 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने मामले में ऐसा हलफनामा दिया है। जिसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार से इस मामले में जवाब मांगा था कि वह इस मामले में विस्तार से जानकारी दे। मामले की जांच करने वाले सीबी-सीआईडी इंस्पेक्टर चंद्र भूषण उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने योगी समेत पांचों आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की रिपोर्ट दी। फिलहाल अब उपाध्याय रिटायर हो चुके हैं। सीबी-सीआईडी के अधिकारी इस मामले में बयान देने से बच रहे हैं।
2015 में दी गई थी अखिलेश सरकार को अर्जी
पुलिस ने योगी और चार अन्य के खिलाफ आईपीसी की धारा 153-ए के तहत केस दर्ज किया था। जिसमें उन पर जाति और धर्म के आधार पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। पुलिस ने गृह विभाग में अर्जी देकर उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल करने की अनुमति मांगी थी। यूपी की क्राइम ब्रांच सीआईडी की ओर से अखिलेश यादव सरकार को यह अर्जी 2015 में दी गई थी।