UTTARAKHAND

!!विश्व संस्कृत दिवस:-संस्कृत भाषा सनातन आत्मा की अभिव्यक्ति!!

!!विश्व संस्कृत दिवस:-संस्कृत सनातन की सनातन आत्मा की अभिव्यक्ति!!

संस्कृत भाषा न केवल भाषा है, बल्कि भारत की सनातन आत्मा की अभिव्यक्ति भी है’ संस्कृत भाषा हमे वेदों की परम्परा,भारतीय इतिहास एवं परिष्कृत ज्ञान-विज्ञान का अमर संदेश की याद दिलाता है!….

संस्कृत भाषा हमारी भारतीय संस्कृति की धड़कन और सभ्यता के मूल में समाई भाषा है,यह न केवल संचार का माध्यम है ,बल्कि सनातन सृष्टि का आधार भी है। ‘संस्कृत भाषा केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की सनातन आत्मा की अभिव्यक्ति है’ कहते हैं संस्कृत भाषा में निहित सत्य हमें भारतीय इतिहास, वेदों की परंपरा, परिष्कृत ज्ञान-विज्ञान और विश्व को दिए गए अमर संदेश की याद दिलाता है। विश्व संस्कृत दिवस, कल 9 अगस्त,2025 को मनाया गय, संस्कृत दिवस मनाने के पीछे का उद्देश्य भारतीय सनातन आत्मा के उद्भव, विस्तार और पुनरुद्धार का संकल्प भी है। संस्कृत दिवस मनाने के पीछे का आग्रह यह भी है,कि हम संस्कृत को केवल स्मृतियों में न बांधे बल्कि इसे लोकभाषा के रूप में दैनिक व्यवहार में भी लाए,ताकि यह देववाणी पुनः भारत की सांस्कृतिक पहचान का गौरव बने।

संस्कृत का प्राचीन इतिहास को देखें तो संस्कृत का उदय और वैश्विक संस्कृति पर प्रभाव लगभग 3,500 वर्ष पूर्व पुराना है। वैदिक सभ्यता के निर्माण काल में इसकी ऋचाएं गूंजती थी। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, उपनिषद, ब्राह्मण, आरण्यक, स्मृति, पुराण, महाकाव्य, नाटक, अलंकार, इन सबका मूल आधार देववाणी संस्कृत ही रही है। संस्कृत की उच्च स्थिति न केवल भारत तक ही सीमित रही, बल्कि यह भाषा प्राचीन काल में दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया के अभिजात्य वर्ग के शासन,दर्शन और साहित्य की अभिभाज्य भाषा बनी रही। अगर हम भारतीय दर्शन की बात करें तो संस्कृत के बिना भारत का काव्य,तंत्र,विज्ञान,चिकित्सा,गणित,नीतिशास्त्र,व्याकरण, सभी शून्य हो जाता। विविध भाषाओं के विकास में संस्कृत भाषा जननी मानी जाती है, संस्कृत भाषा से ही देश की अनेक बोलियों,भाषाओं ने जन्म लिया।

वैदिक ज्ञान, दर्शन और विज्ञान में संस्कृत का अवदान योगदान वेद और वेदांगों के माध्यम से हुआ।ऋषि-मुनियों द्वारा रचित वेद केवल धार्मिक या आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि समाजशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित, राजनीति, मंत्रशास्त्र, खगोल, वनस्पति, भौतिक विज्ञान जैसी अनेक शास्त्रशाखाओं की वैज्ञानिक दृष्टि से व्याख्या करते हैं। कणाद के परमाणुवाद से लेकर चरक-सुश्रुत के आयुर्वेद, पिंगल के छंदशास्त्र, पतंजलि के योगसूत्र, भास्कराचार्य के गणित, आर्यभट्ट के खगोल, पाणिनि के व्याकरण, सब विद्वत्ता इसी भाषा की कोख से जन्मी। संस्कृत न केवल बौद्धिक चिंतन की भाषा थी बल्कि संवाद और स्वतंत्र चिंतन को भी प्रोत्साहित करती थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में भारतीय वैदिक ज्ञान,दर्शन छात्रों के विकास में सरकारें लागू करने जा रही हैं।

संस्कृत भाषा के साहित्यिक सौंदर्य की बात करें तो काव्य शैली,नाटक,गद्य,कथा,उपन्यास,अलंकार,दोहे,छंद, गीत, भजन,श्लोक, हर विधा में असंख्य ग्रंथ संस्कृत भाषा में रचित हैं। कालिदास,भवभूति,बाणभट्ट,आद्यशंकराचार्य, महर्षि माघ, श्रीहर्ष, जयदेव,भारवि,नागार्जुन,विष्णु शर्मा, भर्तृहरि,दंडी स्वामी ,भवभूति, ये सब संस्कृत साहित्य के मनीषी और महानायक रहे हैं,संस्कृत काव्यशास्त्र (अलंकार-शास्त्र) और नाट्यशास्त्र (भरतमुनि) ने विश्वभर में अपनी अलग छाप छोड़ी।

संस्कृत का साहित्य न केवल भाषा का सौंदर्य का हमें बोध देता है बल्कि समाज, संस्कृति,राजनीति,भौगोलिक दृष्टिकोण,आचार-विचार, आध्यात्मिकता तथा मानवता के परिष्कार का शाश्वत चिंतन भी प्रस्तुत करता है। संस्कृत का वैश्विक पुनरुद्धार के बारे में यह कहना उचित होगा कि संस्कृत, जो कभी केवल मंदिरों,यज्ञों या विद्वानों तक सीमित थी,आज फिर से भारतीय और वैश्विक मंचों पर नई पहचान बन रही है। आज देश की राज्य सरकारें देश और प्रदेश के गांव को संस्कृत जीवन का अंग बना रही है।

जर्मनी,अमेरिका,रूस,स्विट्जरलैंड आदि देशों के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। अमेरिका में संस्कृत हेतु विश्वविद्यालय भी स्थापित है और विश्वभर में संस्कृत से जुड़े शोध, जागरण व प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहे हैं।

विश्व संस्कृत दिवस केवल एक सांस्कृतिक अवसर नहीं, बल्कि भारतीय अस्मिता की पुनः स्थापना का प्रयत्न भी है। इसका मुख्य उद्देश्य आभार प्रकट कराने के साथ-साथ नई पीढ़ी को संस्कृत के महत्व से परिचित कराना भी है, व्यावहारिक व्यवहार में इसे स्थान देना, अनुसंधान को प्रोत्साहित करना और जन-जागरण के माध्यम से संस्कृत को भविष्य की भाषा बनाना है। संस्कृत दिवस उन आदि ऋषि-मुनियों को भी सम्मानित करना भी है,जिन्होंने हमारे वेद, उपनिषद एवं अट्ठारह पुराण,की रचना की और सनातन संस्कृति का मार्ग प्रशस्त किया। संस्कृत भाषा को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान प्राप्त है।

अगर उत्तराखण्ड की बात करें तो उत्तराखंड की सरकार ने संस्कृत भाषा को अपनी राजकीय भाषा घोषित किया। सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाएं, संस्कृत भारती, भारत सरकार की संस्कृत भारती अकादमी, नव्यशास्त्र परिषद, विश्व संस्कृत संगठन, एनसीईआरटी, यूजीसी, सीबीएसई तथा राज्य शिक्षा बोर्ड, सबने मिलकर इसके प्रसार हेतु पाठ्यक्रम, प्रशिक्षण, अनुवाद, पुरस्कार, सम्मेलन, प्रकाशन, परीक्षा इत्यादि की संरचना की है।

वैश्वीकरण, उपयोगितावाद, अंग्रेजियत, शिक्षा पद्धति की खामियां, रोजगार की प्राथमिकता, परिवार-सामाजिक परिवेश तथा तकनीक के विस्तार ने संस्कृत की सहज लोकप्रियता को सीमित किया है। विद्यालयों से लेकर उच्च संस्थानों तक, संस्कृत की पढ़ाई एक वैकल्पिक विषय के तौर पर ही होती है। यह मिथक है कि संस्कृत केवल पूजाघरों, श्लोकों अथवा मंत्रोच्चार में ही सीमित है।

संस्कृत भाषा को यदि हम अपनी शिक्षा, समाज, तकनीक, जीवनशैली में संस्कृत को केवल एक विषय न मानकर व्यवहार का अंग बनाएं, संवाद, अभिव्यक्ति और तकनीकी नवाचार के जरिये संस्कृत को पुनर्जीवन देना होगा। यह भाषा समकालीन भारत की आत्मा बन सकती है। यदि संस्कृत भाषा हमारी संवाद,अभिव्यक्ति और तकनीकी नवाचार के तरीके बनेंगे तो हम संस्कृत को फिर से दैनिक जीवन का भाग बना सकते हैं।

संस्कृत की यात्रा विचार, ज्ञान, कला, साहित्य, विज्ञान, अध्यात्म, दर्शन, संस्कृति, हर क्षेत्र से होकर गुजरती है। सतत प्रवाहमान, वैज्ञानिक, सौंदर्यपूर्ण, परिष्कृत और मंथनशील संस्कृत भारत के अतीत, वर्तमान और भावी संस्कृति को जोड़ने वाली जीवंत कड़ी है। संस्कृत भाषा केवल वृद्धों, विद्वानों या पुरोहितों की धरोहर न रहकर युवा पीढ़ी की ऊर्जा, नूतन भारत की प्रेरणा और विश्व की चेतना का माध्यम बन सकती है।

इस यात्रा में प्रत्येक व्यक्ति, संस्थान, समाज, सरकार, वैश्विक मंच, तकनीकी समुदाय, शिक्षक, विद्यार्थी, अभिभावक, और संस्कृत प्रेमी, सबका उत्तरदायित्व है कि वे केवल सांस्कृतिक गौरव की बात कर संतुष्ट न रहें बल्कि संस्कृत को लोक व्यवहार, शिक्षा, संवाद, नवाचार की धारा में उतारें। जब भारतवासी और विश्ववासी इसे पुनः अपना लेंगे, तब संस्कृत पुनः युगों तक भारत की सनातन आत्मा का उदघोष बन जाएगी।

ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर,सुमन नगर,बहादराबाद (हरिद्वार)

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