सरकार ऐसे अफसरों पर भरोसा क्यों?
सरकार की ऐसे अफसरों पर मेहरबानी क्यों ?
योगेश भट्ट
जब से प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी है, तब से, नौकरशाहों में सबसे चर्चित नाम वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ओमप्रकाश का है। ओमप्रकाश इस लिए चर्चाओं में हैं क्योंकि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उन्हें अपर मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया है। मुख्यमंत्री के बेहद करीबी और भरोसेमंद माने जाने वाले ओमप्रकाश को इसके चलते वर्तमान में सबसे ताकतवर ब्यूरोक्रेट का दर्जा मिला है।
बहरहाल बात यह है कि जबसे ओमप्रकाश को यह दर्जा मिला है तब से ही उनसे जुड़े तमाम विवादित प्रकरणों को लेकर देहरादून से दिल्ली तक सियासी गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं हैं। सच बात यह है कि ओमप्रकाश संभवत: पहले ऐसे अफसर हैं, जिनका पावर में आने के बाद भी विरोध हो रहा है। जितनी चर्चाएं और बातें उनको लेकर हो रही हैं, उतनी तो सूबे से सबसे विवादित अफसर माने जाने वाले राकेश शर्मा को लेकर भी नहीं हुईं।
कृषि सचिव रहते हुए सामने आए ढेंचा बीज घोटाले से लेकर साल 2012 में हरिद्वार में हुए ओनिडा अग्निकांड तथा हाल के दिनों में भ्रष्टाचार के आरोपी मृत्युंजय मिश्रा पर की गई मेहरबानियों के चलते ओमप्रकाश विवादों में हैं। आज हालत यह है कि उन्हें संरक्षण देने के आरोप में प्रदेश के राजनीतिक नेतृत्व पर तक सवाल उठने लगे हैं। ओ
मप्रकाश का सबसे ज्यादा विरोध ओनिडा अग्निकांड की घटना को रफादफा करने में उनकी संदिग्ध भूमिका के चलते होता रहा है। उन्हें प्रदेश का सबसे ताकतवर नौकरशाह बनाए जाने के बाद ओनिडा कांड में उनकी भूमिका को लेकर कानाफूसी तो खूब होती रही मगर खुल कर सामने आने को कोई भी तैयार नहीं था। लेकिन अब इस मामले के हाईकोर्ट में पहुंचने के बाद उस दर्दनाक घटना की परतें खुलने लगीं हैं।
मसला दरअसल बेहद संवेदनशील है। फरवरी 2012 में हरिद्वार स्थित ओनिडा कंपनी की फैक्ट्री में भीषण अग्निकांड हुआ जिसमें 11 लोग जिंदा जल गए थे। ओमप्रकाश उस वक्त प्रमुख सचिव, गृह के पद पर कार्यरत थे। अग्निंकांड की जांच शुरू हुई तो फैक्ट्री प्रबंधन की भारी लापरवाही और चूक सामने आई। जांच में यह तथ्य सामने आया कि फैक्ट्री में न तो अग्निशमन के कोई इंतजाम थे और ना ही अग्निशमन विभाग की एनओसी ली गई थी।
शुरुआती जांच पड़ताल के बाद पुलिस ने मजबूत साक्ष्यों के आधार पर जब फैक्ट्री के मालिक गुड्डू मीरचंदानी के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज किया तो गृह विभाग के स्तर से मामले में हस्तक्षेप किया गया। हैरत की बात देखिए कि कहां तो मीरचंदानी की गिरफ्तारी की तैयारी थी, लेकिन पूरा दबाव बना कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
इसके लिए मुकदमा दर्ज करने का आदेश देने वाले हरिद्वार के तत्कालीन एसएसपी के तबादले से लेकर जांच अधिकारी को बदलने तक का प्रपंच किया गया। और इसके बाद मुकदमे से फैक्ट्री प्रबंधन का नाम निकाल दिया गया। बाद में जब इस पर पीड़ितों ने सवाल उठाए तो पुलिस की ही एक जांच में जांच अधिकारी बदलने पर भी सवाल उठा। इतना ही नहीं पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा पर भी संदेह जताया गया। इस प्रकरण में प्रमुख सचिव के अलावा आईपीएस अधिकारी केवल खुराना की भूमिका पर भी सवाल उठे।
प्रमुख सचिव गृह ओम प्रकाश के ‘मंसूबों’ को उन्होंने ही प्रभारी डीआईजी रहते ‘परवान’ चढ़ाया। अभी तक इस सब को लेकर कोई भी मुंह खोलने को तैयार नहीं था। लेकिन इस अग्निकांड में अपना इकलौता बेटा खोने वाले एक व्यक्ति की याचिका के बाद यह प्रकरण फिर जीवित हो उठा है। हाईकोर्ट ने सरकार तथा सीबीसीआईडी के साथ ही इन दो अफसरों को भी नोटिस भेजा है।
पीड़ित परिवार सीबीआई जांच की मांग कर रहा है l उम्मीद की जा रही है कि अब एक बार फिर मामले की परतें उघड़ेंगी। जिस आईपीएस अधिकारी केवल खुराना का नाम इस प्रकरण में है, उनकी पोस्टिंग को लेकर भी कुछ दिन पहले तक चर्चाओं का बाजार गर्म था। हालांकि इस मामले के उठने के बाद उनकी मन पंसद पोस्टिंग की उम्मीद कम ही है।
बड़ा सवाल यह है कि अहम ओहदों पर रहकर इस तरह का ‘खेल’ ‘खेलने’ वाले अफसर क्या भरोसे के लायक हैं? ओनिडा कांड को रफा-दफा किए जाने के बाद तो साफ है कि यह जुगलबंदी किसी भी हद तक जाकर कैसे-कैसे कारनामों को अंजाम दे सकती है। यह जुगलबंदी राज्य के लिए कितनी खतरनाक है इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। सवाल उठता है कि सब कुछ जानते समझते हुए भी सरकार ऐसे अफसरों पर मेहरबानी क्यों दिखाती है? ऐसे अफसरों पर भरोसा क्यों करती है?