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आखिर सरकार ने कर्नल कोठियाल को क्यों किया नज़र अंदाज़ ?

सेना के जवानों और मजदूरों में रोष 

कोठियाल के बुलंद हौंसले के बलबूते हुई केदारनाथ यात्रा शुरू

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

रुद्रप्रयाग । यह विडम्बना नहीं है तो और क्या है कि जिस सेना को शासन-प्रशासन आपातकाल में याद करते हैं उसे ही जब मतलब निकल जाता है तो भूल जाते हैं। कश्मीर में जब बाढ़ आई तो सेना वहां देवदूत बन गई, लेकिन आज कश्मीर में सेना के इन जवानों पर पत्थरबाजी होती है। इसी तरह से उत्तराखंड में जब केदारनाथ आपदा आई तो सेना के देवदूतों ने एक लाख से भी अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने का काम किया।

जब सरकार के सभी विभागों ने आपदा में बुरी तरह से उजड़ चुके केदारनाथ तक पहुंचने का रास्ता तलाशने में ही हाथ खड़े कर दिये तो देश के वीर सपूत कर्नल अजय कोठियाल ने साहस, कठिन परिश्रम, विषम परिस्थितियों से जूझने का हौसले से केदारनाथ को दोबारा से आबाद करने का काम किया, लेकिन जब केदारपुरी बस गई तो अब शासन-प्रशासन उनको भूल गया है। तीन मई को जब बाबा केदारनाथ के कपाट खुले तो इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे तो कर्नल कोठियाल को यहां आने का निमंत्रण तक नहीं दिया गया। इससे केदारपुरी बसाने का काम कर रहे सेना के जवानों व मजदूरों में खासा रोष है। यही नहीं केदारघाटी के कई प्रमुख लोगों ने भी कर्नल कोठियाल की इस उपेक्षा की निंदा की है। उनका मानना है कि केदारनाथ आपदा के बाद यदि सेना के अलावा कोई और विभाग केदारनाथ बसाने का काम अपने हाथ में लेता तो सात-आठ साल तक बाबा केदारनाथ की यात्रा संभव ही नहीं हो सकती थी। उन्हें गौरीकुंड से केदारनाथ पैदल मार्ग बनाने में ही बरसों लग जाते।

यह कर्नल कोठियाल का हौसला और बाबा केदार के प्रति अगाध श्रद्धा थी कि उन्होंने करोड़ों हिंदुओं की आस्था के इस तीर्थ को कुछ ही महीनों में बसा दिया। यह कर्नल कोठियाल ही थे जो कि माइनस सात डिग्री और केदारनाथ में छह फीट बर्फ के होते हुए भी पुनर्निर्माण कार्य कराते रहे। उनकी दिन-रात की इस अथक मेहनत और जज्बे का सम्मान किया जाना चाहिए था। हालांकि सीएम त्रिवेंद्र रावत ने केदारपुरी बसाने का सारा श्रेय उन्हें ही दिया है और कहा कि कर्नल कोठियाल को निमंत्रण देने की जरूरत नहीं थी वो स्वयं ही सारा कार्य देख रहे हैं।

उधर, कर्नल कोठियाल ने कहा कि उस दिन वह किसी कार्य में व्यस्त थे इसलिए नहीं आ सके, लेकिन वास्तविकता यह है कि सेना को अच्छे समय में नेता और अफसर दोनों ही भुला देते हैं। जब पारा सिर से ऊपर हो तो सबको यही सेना याद आती है, चाहे वो सरहद का मामला हो या आंतरिक आतंकवाद की समस्या या फिर कोई आपदा। आखिर शांति काल में नेता अपने इन वीर जांबाजों को क्यों भूल जाते हैं? कर्नल कोठियाल इसके उदाहरण हैं, लेकिन यह भी सर्वविदित है कि करोड़ों भारतीय कर्नल कोठियाल के ऋणि रहेंगे कि उन्होंने केदारपुरी बसाने का असंभव सा कार्य किया है। यदि कर्नल कोठियाल यह जिम्मेदारी नहीं लेते तो केदारपुरी में किसी भी नेता के पहुंचने के आसार नहीं होते।

कर्नल कोठियाल के नाम ये हैं हैं उपलब्धियां …….

कर्नल कोठियाल एवरेस्ट को 2 बार फतह कर चुके हैं इसके अलावा कई अन्य चोटियों को भी फतह कर चुके हैं।
कर्नल अजय कोठियाल 4th गढ़वाल राइफल्स के कमांडेंट अफसर रह चुके हैं।
कर्नल अजय कोठियाल को सेना में उनके विशिष्ठ सेवा को देखते हुए विसिष्ठ सेवा मेडल दिया गया है।
कर्नल अजय कोठियाल को बहादुरी के लिए शांतिकाल का दूसरा सर्वोच्च सम्मान कीर्ति चक्र मिला है।
कर्नल अजय कोठियाल को बहादुरी के लिए शांतिकाल का तीसरा सर्वोच्च सम्मान शौर्य चक्र मिला है।
अजय कोठियाल ने उस मिशन का नेतृत्व किया जिसने सेना के इतिहास में पहली बार पर्वत से उतरने के लिए स्की का प्रयोग किया। कर्नल और उनकी टीम त्रिशूल पर्वत से स्की करके नीचे उतरे।
कर्नल के युथ फाउंडेशन ने पिछले 2 सालों में युवाओं को सेना के लिए निशुल्क प्रशिक्षित किया जिसमे हज़ारों युवा सेना में भर्ती हो चुके हैं। उनका यह भी मानना है कि इन शिविरों के माध्यम से युवाओं को प्राकृतिक आपदा प्रबंधन के लिए बेहतर प्रशिक्षित किया जा सकता है और रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन नहीं होगा। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के युवाओं में योग्यता है की वो भारतीय सेना का अंग बने उन्हें सही दिशा मिलनी चाहिए।

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