IFS संजीव चतुर्वेदी से आखिर क्यों नहीं चाहते जांच मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक!
- अपर मुख्य सचिव के रिश्तेदार से जांच कराये जाने पर उठे सवाल !
देहरादून : उत्तराखंड के तराई वाले इलाकों में दुर्लभ श्रेणी के वन्यजीव हत्याओं के मामलों में अगर वन विभाग के कुछ अधिकारियों की भूमिका की अगर जांच की जाए तो पता चलेगा कि पूरे देश में बाघों के संरक्षण का नेतृत्व करने वाले उत्तराखंड राज्य के आलाधिकारी किस तरह बाघों के संरक्षण के विषय पर कितने संवेदनहीन हैं। इतना ही नहीं वन्य जानवरों की सुरक्षा से जुड़े ये अधिकारी अब अपनी पोल खुलने की डर से वन्य जीवों की रक्षा के लिए बनाई गयी संस्थाओं और कुछ वन्य प्रेमियों को ही वन्य जीवों का दुश्मन मानने पर उतारू हैं। (हालाँकि यह जांच का विषय है) लेकिन वन महकमे के अधिकारी इस बात को लेकर हतप्रभ हैं कि मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक सूबे में वन्य जीवों (बाघों) के हो रहे शिकार की जांच आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी से क्यों नहीं कराना चाहते हैं।
2016 मार्च में उत्तराखंड एसटीएफ ने वन्यजीवों की खाल और हड्डियां बरामद की हरिद्वार के श्यामपुर गांव में पकड़े गए रामचंद्र की निशानदेही पर उसके गांव उत्तर प्रदेश के बिजनौर गांव में 32 गड्ढों में से बाघों की हड्डियां प्राप्त की। रामचंद्र ने बताया कि लंबे समय से वह लोग टाइगर पोचिंग में लिप्त हैं। प्राप्त खालो की जब जांच की गई तो वह खालें टाइगर कार्बेट रिजर्व क्षेत्र की पाई गई। यह जांच वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा की गई थी। जब सारे गड्ढों में मिली हड्डियों की जांच की गई तो पता चला यह हड्डियां 20 से 25 बाघों की हो सकती है रामचंद्र ने स्वयं भी स्वीकारा कि वह अनेक बाघों की पोचिंग इस क्षेत्र में कर चुका है।
समाचार पत्रों में जब यह मामला उछला वन्यजीव प्रेमियों ने इस विषय में चिंता की तो विभाग ने बाघ बचाने के अभियान के प्रति गंभीरता दिखाने के बजाय इस पूरेमामले को ही दबाने का प्रयास किया और जिन वन्यजीव प्रेमियों ने सरकार से इस विषय में जानकारी मांगी तो उन्हें धमकाया जाने लगा। इसके पहले शिकार और मेरी वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव मेहता जो कि आई ऑफ दि टाइगर संस्था के प्रतिनिधि है और लंबे समय से बाघ बचाओ आंदोलन से जुड़े हैं उनके द्वारा निरंतर हर स्तर पर पत्र व्यवहार करने पर हेड ऑफ द फॉरेस्ट (प्रमुख वन संरक्षक) जयराज ने उन्हें सहयोग करते हुए इस मामले की तह तक जाने का प्रयास किया, किंतु मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक दिग्विजय सिंह खाती द्वारा राजीव मेहता को सहयोग करने के बजाए जान से मारने की धमकी ही नहीं दी गई बल्कि उनकी संस्था को वन क्षेत्र में जाने से प्रतिबंधित किया गया और स्वयं राजीव मेहता पार्क में घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया गया जो की पूर्णता है गैरकानूनी था।
यह सब इसलिए किया गया कि श्री मेहता ने देश की सभी वन्य जीव से जुड़ी संस्थाओं प्रधानमंत्री कार्यालय उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कार्यालय राज्य के वन मंत्री आदि सभी से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा था ताकि पुराने मामलों की जांच हो सके और तेजी से लुप्त हो रहे बाघों के संरक्षण के लिए एक ठोस रणनीति बन सके इसी संबंध में मेहता ने 2017 में उच्च न्यायालय नैनीताल में एक जनहित याचिका दायर की याचिका दायर होते ही दिग्विजय सिंह खाती ने मेहता को निशाने पर ले लिया।
वहीँ मार्च 2018 में हरिद्वार रेंज की दूधिया बीट में गुलदार की खाल हड्डियां और मांस मिलने की सूचना मुखबिर ने दी। वहीँ वन्य जीव विभाग ने जांच करने के बजाय सूचना देने वाले अमित धनगर को ही राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन ने उल्टे गिरफ्तार कर दिया और उसका उत्पीड़न मारपीट करके सादे पेपर में उसके अंगूठे के निशान ले लिए जबकि धनगर साक्षर है पार्क प्रशासन द्वारा रेंजर स्तर के अधिकारी कोमल सिंह को इस प्रकरण का जांच अधिकारी बनाया गया जो कि गैरकानूनी है।
विभाग के उच्च पदस्थ अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार इस तरह के मामलों की जांच सहायक वन संरक्षक अधिकारी या उससे ऊपर के अधिकारी को दी जाती है। लेकिन मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक दिग्विजय सिंह खाती ने अपने विश्वस्त कोमल सिंह जो सूबे के एक अपर मुख्य सचिव पद पर बैठे अधिकारी का रिश्तेदार बताया जाता है को जांच अधिकारी बनाकर पूर्व में राजाजी टाइगर रिजर्व के उप वन संरक्षक वैभव सिंह द्वारा बनाई गई रिपोर्ट को फाड़ कर अत्यंत जूनियर कोमल सिंह को जांच करने हेतु कहा गया। वहीँ अब चर्चित कोमल सिंह ने निर्देशित जांच की दिशा को आगे बढ़ाते हुये पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लेपर्ड पोचिंग में राजीव मेहता को ही दोषी दिखाने के लिए षड्यंत्र किया जा रहा है।
वहीँ स्वयं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के द्वारा मीडिया को दी गई जानकारी में इशारे इशारे में राजीव मेहता की भूमिका को दिखाने का प्रयास किया जा रहा है एक प्रतिष्ठित वन्यजीव प्रेमी जो बरसों से इस कार्य में संलिप्त है लंबे समय से वन्यजीवों के हितों के लिए संघर्ष कर रहा है को आरोपित बनाने का प्रयास बताता है कि यह प्रकरण बहुत गंभीर है और सरकार के बाघ संरक्षण के दावों की पोल खोलता है स्वयं मेहता ने इस विषय में उच्च स्तरीय जांच करने की बात की है। वहीँ मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने अपने प्रमुख वन संरक्षक व मंत्री के आदेश पर गठित जांच टीम को अवैध घोषित कर निरस्त करने वाले मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक की भूमिका की उच्च स्तरीय जांच किसी पीसीसीएफ रैंक के अधिकारी को जांच देने का निर्णय लिया है।
आश्चर्य का विषय है कि मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक दिग्विजय सिंह खाती ने अपने ही विभाग के मुखिया और विभागीय मंत्री के आदेशों को पलटते हुए उनके निर्णय को नकारने का प्रयास किया है जबकि प्रमुख वन संरक्षक ने जांच का उक्त निर्णय विभागीय मंत्री के आदेश पर लिया था उक्त प्रकरण के अखबार में उछलने के बाद और राजीव मेहता द्वारा इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की मांग के बाद प्रख्यात वन्यजीव प्रेमी और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर मांग की है कि इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच की जाए और इस पूरे प्रकरण में लिप्त जो गैर जिम्मेदाराना तरीके से इस प्रकरण को ले रहे थे, उन्हें तत्काल निलंबित किया जाए और प्रभावी जांच कर वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में मजबूत कदम उठाए जाएं। बहरहाल प्रमुख संरक्षक ने उक्त जांच संजीव चतुर्वेदी आई एफ एस के नेतृत्व में एक जांच कमेटी बनाई है जो इस प्रकरण की जांच करेगी भले ही दिग्विजय सिंह खाती इस कदम को भी गैरकानूनी बताने से अब भी नहीं चूक रहे हैं।