UTTARAKHAND

दोहरी चाल से राज्य को क्यों छलनी करने पर तुले हो महाराज !

असली वजह :  टिहरी महोत्सव तो बहाना था मुख्यमंत्री के कार्यक्रम का बहिष्कार जो  करना था 

क्यों खिलखिलाते हुए फोटो शूट किये जा रहे हैं महाराज ?

राजेंद्र जोशी
महाराज को समझना बहुत ही टेढ़ी खीर है। इनके राजनीतिक जीवन के बारे में कहा जाता है कि यह कब कहां और क्यों पलटी मार दे, कुछ भी कहना मुश्किल है। कांग्रेस में रहते हुए महाराज ने उस दौरान अपनी हरीश रावत की सरकार के खिलाफ वो पलटी मारी और भाजपा में शामिल हो गए। इससे पहले भी स्व. नारायण दत्त तिवारी की सरकार के दौरान भी महाराज उनको इसी तरह परेशान किया करते थे ऐसा राजनीतिक जानकारों का कहना है। लेकिन हरीश रावत को गच्चा देने के बाद वे चाहते थे कि भाजपा इन्हें मुख्यमंत्री बनाए लेकिन भाजपा हाईकमान ने उत्तराखंड के दिग्गज नेता व संघ पृष्ठभूमि के लोकप्रिय नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया। उसके बाद से इन्होंने जो काम कांग्रेस की सरकारों के लिए किया ,वही काम अब यह भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए कर रहे हैं।
अगर इनके द्वारा किए गए कार्य से जनता को लाभ मिलता तो निसंदेह उस कदम की प्रशंसा होती लेकिन इनकी दोहरी चालें सरकार के लिए कम और राज्य के लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित हो रही हैं। जब भी मुख्यमंत्री के द्वारा जनहित में कोई कार्य किया जा है तो इनके द्वारा अजीबोगरीब बयान देकर मृत पड़े विपक्ष को मुद्दा देने का कार्य किया जा रहा है। बड़ी अजीब बात यह है कि पूरे देश में अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस अब अपने पुराने नेता सतपाल महाराज जैसे नेताओं के बयान पर राजनीतिक रोटियां सेक रही है।

टिहरी महोत्सव को लेकर गलत बयान जारी करना

टिहरी महोत्सव को लेकर सतपाल महाराज की टिप्पणी या बयान बाजी को सिरे से खारिज किया जा सकता है। इस महोत्सव की तैयारी बहुत लंबे समय से हो रही थी। इस महोत्सव को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन ने बहुत मेहनत की थी। लेकिन दुर्भाग्यवश चमोली में आई प्राकृतिक आपदा से सभी उत्तराखंड वासियों का ह्रदय दुखी हुआ लेकिन राहत की बात यह रही कि सरकार की तत्परता खासकर मुख्यमंत्री के द्वारा लगातार राहत और बचाव कार्यों को लेकर की गई कार्यवाही से बड़ी जनहानि होने से बच गई। प्राकृतिक आपदाओं से लड़ा नहीं जा सकता लेकिन बचाव और राहत कार्यों से हम इन प्राकृतिक आपदाओं के जख्मों को भर जरूर सकते हैं। एक तरफ तो पर्यटन मंत्री होने के नाते उत्तराखंड सुरक्षित है, का नारा सतपाल जी महाराज के द्वारा दिया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ टिहरी महोत्सव को लेकर उनकी बयान बाजी से टिहरी जिले में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने की सरकार की कोशिशों पर पानी फेरने का काम हुआ है।

कम से कम अपने बयान पर तो टिके रहते महाराज

टिहरी महोत्सव को लेकर उन्होंने बहुत बड़ा बयान दिया कहा कि उनका मन दुखी है टिहरी महोत्सव में वह भाग नहीं ले सकते मृत आत्माओं को लेकर भी उन्होंने अपना मन दुखी होने की बात कही लेकिन दुर्भाग्यवश अपने और अपने परिवार के द्वारा निजी आयोजनों में शिरकत करना वह नहीं छोड़ रहे हैं। महाराज जी अगर मन इतना ही दुखी है तो क्यों शादी ब्याह शिरकत की जा रही है और होटलों में खाना खाने का आपका मन कैसे कर रहा है। इस राज्य से आप की क्या दुश्मनी है जो आप राज्य के विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। आपकी कथनी और करनी में अंतर क्यों नजर आ रहा है? और क्यों खिलखिलाते हुए फोटो शूट किये जा रहे हैं महाराज ?
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ सतपाल जी महाराज मंच शेयर करने से बचते रहे हैं। डोबरा चांठी पुल का उद्घाटन हो या सूर्यधार परियोजना हो या ऋषिकेश का जानकी देतु का लोकार्पण अन्य किसी भी पर्यटन विभाग की योजनाओं का शिलान्यास या कोई भी ऐसा कार्यक्रम जो सिंचाई विभाग, संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित मंच हो। मुख्यमंत्री से स्वयं को ऊपर समझने वाले सतपाल जी महाराज, मुख्यमंत्री के द्वारा लगातार पर्यटन और सिचाई विभाग में किए जा रहे कार्यों में रोड़ा अटकाते आ रहे हैं। मुख्यमंत्री की घोषणाओं को कैबिनेट मंत्री खारिज तो नहीं कर सकता है तो उसकी खुन्नस उनके कार्यक्रमों का बहिष्कार करके निकाल रहे हैं।

कुर्सी के लिए लड़ाई में राज्य का कर रहे नुकसान

सतपाल जी महाराज के द्वारा पिछली कांग्रेस सरकार में भी महत्वकांक्षा के चलते पार्टी छोड़ी गई थी। त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने के बाद बहुत कोशिश करने पर भी जब सफलता नहीं मिली तो सरकार के ढाई साल पूरा होने पर भी महाराज जी के द्वारा सत्ता परिवर्तन की खबरें उड़ाई गई।लेकिन हाईकमान ने इसे सिरे से खारिज कर दिया तो आगामी चुनाव में पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के साथ सांठगांठ कर मुख्यमंत्री को असहज करने के कार्यों को अंजाम देने लगे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जब मुख्यमंत्री द्वारा लगातार राज्य के हित में बेहतरीन फैसले लिए जा रहे हैं और पर्यटन गतिविधियों से राज्य की आय बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। तो आखिर एक पर्यटन मंत्री होने के नाते यह राज्य के दुश्मन क्यों बन रहे हैं। क्या इन्हें सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी दिखती है? पद के लालच में एक तरफा व्यक्तिगत दुश्मनी निभा रहे आध्यात्मिक गुरु सतपाल जी महाराज क्या उत्तराखंड की जनता के साथ न्याय कर पा रहे हैं।

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