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मोदी मंत्रिमंडल में उत्तराखंड से किसको मिलेगी जगह ?

  • उत्तराखंड से संसद में पहुंचे हैं एक से एक अनुभवी सांसद
  • मोदी सरकार में कोई रहा राज्यमंत्री तो कोई रहा सूबे का मुख्यमंत्री

राजेन्द्र जोशी

उत्तराखंड से वर्तमान में पांच लोकसभा सदस्य भारी मतों से विजयी होने के बाद लोकसभा में पहुँच गए हैं वहीं राज्यसभा में बीते साल उत्तराखंड से एक राज्य सभा सांसद उच्च सदन के सदस्य हैं। मोदी मंत्रिमंडल में किसको मिलेगी जगह और किसके आठ लगेगी मायूसी यह तो आने वाले दिनों में ही पता चल पायेगा, लेकिन इस समय सबसे बड़ा सवाल उत्तराखंड राज्य का है जिसने ऐतिहासिक मतों से विजयी बनाकर पांचों लोकसभा सीटों से भाजपा के पांचों प्रत्याशियों को प्रचंड बहुमत के साथ लोकसभा में पहुँचाया है।

अब देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री के पद पर दूसरी बार मोदी की ताजपोशी के बाद उनके पिछले कार्यकाल के दौरान बतौर केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे निर्विवाद रहे अजय टम्टा को एक बार फिर मोदी मंत्रिमंडल में स्थान मिलता है या नहीं, या फिर बाज़ी किसी और नेता के हाथ लगती है। अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा सीट से दूसरी बार भाजपा विजयी अजय टम्टा को भाजपा ने शुरूआती दिनों में कांग्रेसी नेता प्रदीप टम्टा के विकल्प के रूप में खड़ा किया। इससे पहले वे गंगोलीहाट से विधायक रहे थे। सादगी पसंद अजय टम्टा उत्तराखंड भाजपा के दलित नेता के रूप में भी जाने जाते हैं वैसे उन्होंने उत्तराखंड के दलित समुदाय के लोगों के उन्नयन के लिए अपनी पिछली पारी में अनेक कार्य किये हैं। भाजपा संगठन के केंद्रीय नेतृत्व में अच्छे संपर्कों के चलते वे पिछली बार मोदी सरकार में वस्त्र मंत्रालय में राज्यमंत्री का कार्यभार संभाल रहे थे।

वैसे यदि देखा जाय तो उत्तराखंड से नवनिर्वाचित लोकसभा पहुंचे सदस्यों में अजय भट्ट और तीरथ सिंह रावत ही पहली बार लोक सभा पहुंचे हैं, जबकि इससे पहले डॉ. रमेश पोखरियाल ”निशंक” दूसरी बार लोकसभा पहुंचे हैं।वे 1991 से लेकर वर्ष 2012 तक पाँच बार उत्तर प्रदेश एंव उत्तराखण्ड की विधानसभा में विधायक रहे हैं। पहली बार वर्ष 1991 में वे कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र से अविभाजित उत्तरप्रदेश में रहते हुए लखनऊ विधानसभा पहुंचे थे। उत्तरप्रदेश में रहते हुए वे जहाँ पर्वतीय विकास मंत्री, संस्कृत एवं धर्मस्व मंत्री और उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में वित्त और स्वास्थ्य मंत्री सहित वर्ष 2007 में खण्डूरी के बाद मुख्यमंत्री रहे हैं। जहां तक राजनीतिक वरिष्ठता और अनुभव की बात है तो डॉ. निशंक उत्तराखंड के सबसे ज्यादा अनुभवी नेताओं में शुमार होते हैं।

उत्तराखंड की टिहरी लोकसभा सीट से तीसरी बार विजयी श्रीमती माला राज्य लक्ष्मी शाह को महिला होने का लाभ भाजपा में मिलता रहा है, क्योंकि भाजपा के पास टिहरी लोकसभा सीट से महिला और जिताऊ और कोई प्रत्याशी उनके सामने नहीं टिकता है यही कारण है कि भाजपा को उन्हें तमाम विरोध के बाद भी प्रत्याशी बनाना पड़ता है। हां तिहरी लोकसभा सीट पर वर्ष 1952 से लेकर आज तक बीच के कुछ वर्षों को यदि छोड़ दिया जाय तो टिहरी राज परिवार का ही कब्जा रहा है। जहाँ तक भाजपा कार्यकर्ताओं से उनकी नजदीकियां की बात की जाय तो शायद ही वे अपने ही लोकसभा में किसी सामान्य कार्यकर्ता को नाम से जानती होंगी। अब तक भाजपा की लहर और मोदी मैजिक के चलते ही वे लोकसभा क्त पहुँच पायी हैं अभी तक उनके खाते में कोई ऐसा विशेष कार्य शायद ही होगा जिसका वे खुद ही उल्लेख कर सकें।

अब बात करते हैं पहली बार लोकसभा की देहलीज पर कदम रख रहे तीरथ सिंह रावत और अजय भट्ट की. दोनों ही नेता अपने छात्र जीवन से विद्यार्थी परिषद् से लेकर अब भाजपा में लंबा सफ़र टी करके पहुंचे हैं. तीरथ सिंह रावत विद्यार्थी परिषद् के अध्यक्ष होने के दौरान वर्ष 1996 में अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौरान उत्तरप्रदेश विधानपरिषद् के सदस्य चुने गये थे. उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद वे भाजपा के अंतरिम सरकार में शिक्षा मंत्री बने। वर्ष 2018 में भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी संगठनात्मक अनुभव को देखते हु उन्हें हिमाचल राज्य का प्रभारी बना दिया। इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की पहल पर उन्हें पौड़ी लोकसभा से खंडूरी के चुनाव लड़ने से मना किये जाने के बाद उनको टिकट दिया गया और वे भारी मतों से विजय प्राप्तकर लोकसभा पहुंचे हैं. भाजपा संगठन के नेताओं से लगातार संगठन कार्यों में रहने के कारण उनकी नजदीकियां रही हैं. अब देखना यह होगा कि उनको इस नजदीकी का कितना लाभ मिलेगा।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में लम्बी पारी खेलने वाले अजय भट्ट मोदी लहर में विधानसभा चुनाव हारने के बाद मोदी मैजिक के चलते ही लोकसभा चुनाव जितने वाले कुमायूं मंडल के वे नेता हैं जिन्होंने ने कांग्रेस में राजनीती के लम्बे अनुभव रखने वाले और केंद्र में मंत्री रहे और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत को भारी मतों से पटखनी दी है। अविभाजित उत्तरप्रदेश में विधायक रहने के बाद उत्तराखंड की अंतरिम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे अजय भट्ट की रानीखेत सीट के लिए उत्तराखंड में मिथक बन गया था कि जब-जब अजय भट्ट विजयी होते हैं तो भाजपा विपक्ष में होती है और जब वे हारते हैं तो पार्टी सत्तासीन हो जाती है। लेकिन इस बार अजय भट्ट यह मिथक तोड़ते हुए प्रदेश में भाजपा सरकार के होते हुए केंद्र में भी प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार में लोकसभा चुनाव जीतकर संसद की देहलीज में कदम रखा है। अब यह देखना होगा भाजपा का केंद्रीय संगठन उनके राजनीतिक सफ़र को कितनी अहमियत देता है। वहीं अजय भट्ट का पलड़ा सबसे भारी दिखाई दे रहा है, इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि अजय भट्ट की जीत पूरे उत्तराखण्ड में सबसे बड़ी हुई है। इसके अलावा अजय भट्ट का कुमाऊं से होना और खासकर ब्राह्मण समाज से होना भी उनके पक्ष में जा रहा है। उत्तराखण्ड की राजनीति में एक पहलू भाजपा और कांग्रेस दोनों में समान दिखाई देता है। राज्य के दो अलग-अलग क्षेत्रों के प्रतिनिधित्व का ध्यान। मौजूदा समय में ठाकुर समाज के त्रिवेन्द्र सिंह रावत गढ़वाल से आते हैं। ऐसे में राज्य के किसी नेता को जब कोई बड़ा पद देने की बात आएगी, तो पार्टी गढ़वाल को बैलेंस करने के लिए उस नेता का चुनाव कुमाऊं से करेगी। अजय भट्ट इस लिहाज से भी फिट बैठते हैं। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पार्टी अध्यक्ष के नाते उनका कार्यकाल अभी तक शानदार रहा है और उन्हीं के नेतृत्व में 2017 में पार्टी ने विधानसभा के चुनाव में सबसे बढ़िया प्रदर्शन किया था।

अब बात करते हैं भाजपा के उस सूरमा की जिसके कंधों पर भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के मीडिया सहित प्रचार प्रसार का दायित्व ही नहीं बल्कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित प्रधानमंत्री मोदी की मिडिया से लेकर भारी-भरकम चुनाव कार्यक्रम की जिम्मेदारी निभाने वाले राज्य सभा में उत्तराखंड से सांसद अनिल बलूनी की। इस चुनाव में भाजपा के मीडिया हेड होने के नाते बलूनी ने बेहतरीन ढ़ंग से पार्टी के लिए मीडिया को मैनेज किया। इसका इनाम उन्हें मिल सकता है। अनिल बलूनी अचानक और यूँ ही सुर्खियों में नहीं आये वे इससे पहले कोटद्वार विधानसभा चुनाव के दौरान चर्चाओं में आये थे। उनके बाद भाजपा की केन्द्रीय टीम में तमाम दायित्वों का बखूबी निर्वहन करते हुए वे आज भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सबसे ज्यादा करीबी लोगों में से एक हैं उनके यहाँ तक का सफ़र तमाम उतार चढावों वाला रहा है। अपने काम के प्रति सजगता और विश्वसनीयता उनकी अमूल्य निधि है जिसके दम पर वे आज भाजपा के मुख्य लोगों में शुमार हैं। उत्तराखंड में उनके द्वारा बिना हो हल्ले के अस्पतालों में आईसीयू की स्थापना का श्रेय उन्ही को जाता है। इतना ही नहीं पलायन की मार झेल रहे राज्य में उन्होंने गांवों को सरसब्ज करने का जो बीड़ा उठाया है वह काबिलेतारीफ है। ऐसा नहीं कि मोदी के नए मंत्रिमंडल केवल लोकसभा से ही सांसदों को लिया जायेगा जैसा कि पहले भी होता रहा है राज्यसभा से भी सांसदों को मंत्रिमंडल में उनकी योग्यता के आधार पर शामिल किया जाता रहा है। ऐसे में यदि बलूनी को भी शामिल किया जाता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।

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