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धारा के विपरीत तैरने का कौन नेता कर रहा होगा प्रयास,लग रहे हैं कयास !

  • राहुल की रैली के लिए भीड़ जुटाने के लिए तो नहीं है प्रोपेगेंडा !

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के बयान कि राहुल गाँधी की देहरादून रैली में ”भाजपा का एक बड़ा नेता हो सकता है कांग्रेस में शामिल”  को लेकर राजनीति के गलियारों में कानाफूसी शुरू हो गयी है कि आखिर वो कौन नेता हो सकता है जो इस वक़्त जब देश में भाजपा और मोदी की जबरदस्त लहर चल रही है और विपक्ष किंकर्तव्यमूढ़  मुद्रा में है ऐसे में धारा के विपरीत तैरने का प्रयास करने का जोखिम ले रहा है।

प्रदेशवासी भी अब 16 मार्च का इंतज़ार कर रहे हैं जब उन्हें पता चलेगा कि आखिर वह नेता है कौन ? वहीं पार्टी सूत्रों के अनुसार कांग्रेस आलाकमान इस मुद्दे पर भाजपा के कुछ नेताओं के संपर्क में है। लेकिन, भाजपा से कौन नेता कांग्रेस में जाने को आतुर है इसका खुलासा करने से बचा जा रहा है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि खुद कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता इस मुद्दे को हवा दे रहे हैं जबकि भाजपा खेमे में इस तरह की कोई चर्चा तक नहीं हो रही है। इससे यह भी लगता है कांग्रेस राहुल की रैली के लिए भीड़ जुटाने के लिहाज तो कहीं इस तरह का प्रोपेगेंडा तो नहीं कर रही है। हालांकि पिछले दिनों पूर्व हल्द्वानी में राज्य प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह ने मीडिया से यह बात जरुर कही थी कि भाजपा का एक बड़ा नेता उनके संपर्क में हैं।

वहीं सत्ता के गलियारों से यह भी खबर बाहर आ रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के शासनकाल में वर्ष 2016 में कांग्रेस में हुए विभाजन के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में जब 18 मार्च को नौ कांग्रेसी मंत्री और विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। कहीं उनमें से तो कोई अब घर वापसी की तो नहीं सोच रहा है। वहीं एक अन्य चर्चा के अनुसार कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले ऐसे कुछ नेताओं को भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि उनकी उम्मीद थी जिस तरह से बैसाखियों के सहारे सरकार चला रहे विनम्र स्वभाव के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को डरा -धमकाकर अपने हिसाब से काम करते रहे थे , लेकिन अब वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत उनके काबू नहीं आ पा रहे हैं लिहाज़ा यह भी एक कारण हो सकता है भाजपा में अपनी दाल न गलती देख ऐसे कुछेक नेता ”लौट के बुद्धू घर को आये ” वाली कहावत तो चरितार्थ नहीं करने जा रहे ! 

गौरतलब हो कि तत्कालीन दौर में बहुगुणा के साथ विधानसभा सत्र के दौरान डॉ. हरक सिंह रावत, सुबोध उनियाल, अमृता रावत, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, डॉ. शैलेंद्र मोहन सिंघल, शैलारानी रावत, उमेश शर्मा काऊ और प्रदीप बत्रा भाजपा में शामिल हो गए थे। जबकि इनसे पहले कांग्रेस के बड़े नेताओं में शुमार सतपाल महाराज ने भाजपा का दामन थाम लिया था।लेकिन तब यह कयास लगाये जा रहे थे कि इन सब नेताओं का तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत से राजनीतिक समीकरण ठीक से नहीं बैठ पा रहा था इसलिए इन्होने भाजपा का दामन थामा। हालांकि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले हरीश रावत सरकार में कबीना मंत्री रहे यशपाल आर्य और उनके बेटे संजीव आर्य ने भी कांग्रेस छोड़ अचानक भाजपा का दामन थाम लिया था उस दौरान यह कयास लगाये जा रहे थे कि आर्य पिता -पुत्र के भाजपा का दामन थाम लेने के पीछे के कारण कुछ और ही थे।

अब लोकसभा चुनाव के सामने आते ही कांग्रेस पार्टी हरीश रावत सरकार के दौरान भाजपा द्वारा कांग्रेस को दिए गये घाव भरने के लिए पिछले एक साल से ‘कुनबा बढ़ाओ’ अभियान चला रही है। लेकिन उसे कोई ख़ास सफलता हालांकि नहीं मिल पायी है अलबत्ता कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ चुके ऐसे कई नेताओं की पार्टी में वापसी कर यह सन्देश देने की कोशिश जरुर की है कि ”सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते ” ऐसे भूले हुए नेताओं में पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण, हरेंद्र वोरा और महेश शर्मा ही पार्टी में वापसी कर पाए हैं। इतना ही  नहीं कांग्रेस ने इस दौरान भाजपा से कई चुनावों  के दौरान टिकट न मिल पाने से कुछ असंतुष्ट नेताओं जिनमें  हेम आर्य, राजेश्वर पैन्यूली और ज्योति सजवाण आदि शामिल थे, को जरुर कांग्रेस में लाने में सफलता प्राप्त की।

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