-यात्रा के दौरान साधु संत व तीर्थयात्री पेड़ की छांव में करते हैं आराम
-यात्रा मार्ग की शोभा बढ़ाने वाले पीपड़ के पेड़ हो जायेंगे खत्म
-ऑल वेदर की भेंट चढ़े पेड़, पर्यावरणविद व स्थानीय जनता ने जताया दुख
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
रुद्रप्रयाग। बद्रीनाथ एवं केदारनाथ हाईवे को विकसित करने के लिए भगवान कृष्ण के प्रिय वृक्ष पीपल के पेड़ों की बलि दी जा रही है। अब तक अनगिनत पीपल के पेड़ों को काटा जा चुका है। चारधाम यात्रा के दौरान जिन पेड़ों के नीचे तीर्थयात्री और साधु-संत कुछ देर विश्राम कर आगे की यात्रा को निकलते थे, अब उन पेड़ों का अस्तित्व खत्म हो चुका है। आल वेदर रोड़ निर्माण से राष्ट्रीय राजमार्गों से सटे पीपल के पेड़ों को जड़ से ही समाप्त कर लिया गया है और अब तीर्थयात्रियों को पीपड़ के पेड़ों के दर्शन नहीं हो सकेंगे। पीपल के पेड़ों को काटे जाने पर पर्यावरणविद एवं स्थानीय जनता ने आपत्ति जताई है। उनकी माने तो यह धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ है, जिसका नुकसान भविष्य में झेलना पड़ सकता है।
हजारों सालों से तीर्थयात्रियों और साधु संतों को छाया देने वाले पीपल के वृक्ष चारधाम सड़क परियोजना की भेंट चढ़ चुके हैं। आल वेदर सड़क निर्माण में पीपल के पेड़ों का भारी दोहन किया गया है। यदि सरकार सही से नीति बनाती और पौराणिक मान्यताओं को समझती तो इन पेड़ों का संरक्षण किया जा सकता था, मगर ऐसा नहीं किया गया। पीपल के पेड़ों का अंधाधुंध कटान गया। पेड़ों के कटने के बाद अब पर्यावरणविद इसे धार्मिक ग्रंथों से जोड़कर देख रहे हैं। स्थानीय लोगों ने भी इसके लिए सरकार को कोसना शुरू कर दिया है। बद्रीनाथ एवं केदारनाथ हाईवे पर चारधाम विकास परियोजना के तहत आल वेदर रोड़ का कार्य चल रहा है। राजमार्ग के चौड़ीकरण में अनगिनत पीपल के पेड़ों का कटान अब तक हो चुका है।
बद्रीनाथ हाईवे पर गुलाबराय के आरटीओ कार्यालय के पास, तिलणी, सुमेरपुर, रतूड़ा व केदारनाथ हाईवे के सिल्ली, चन्द्रापुरी, कुंड, फाटा सहित अन्य जगहों पर हजारों सालों से पीपल के पेड़ यात्रा मार्ग की शोभा बढ़ा रहे थे, मगर अब इन पेड़ों का दोहन हो चुका है। ब्यास दीपक नौटियाल एवं बलवंत सिंह बुटोला ने कहा कि हिन्दू मान्यताओं में प्रकृति को अलौकिक दर्जा दिया गया है। यही वजह है कि किसी ना किसी रूप में झरने, पहाड़, नदियां, पेड-पौधे आदि वनस्पति को आस्था के केन्द्र में रखा जाता है। पेड़-पौधों की बात करें तो इन्हें विशेषतौर पूजनीय समझा जाता है, जैसे तुलसी के पत्तों को अत्याधिक पूजनीय मानकर उनका प्रयोग पवित्र कामों में किया जाता है।
शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं में पीपल के पेड़ को भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। इसे एक देव वृक्ष का स्थान देकर यह उल्लिखित है कि पीपल के वृक्ष के भीतर देवताओं का वास होता है। गीता में तो भगवान कृष्ण ने पीपल को स्वयं अपना ही स्वरूप बताया है। उन्होंने बताया कि स्कन्दपुराण में पीपल की विशेषता और उसके धार्मिक महत्व का उल्लेख करते हुए यह कहा गया है कि पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत देव निवास करते हैं। इस पेड़ को श्रद्धा से प्रणाम करने से सभी देवता प्रसन्न होते हैं। प्राचीन समय में ऋषि-मुनि पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ही तप या धार्मिक अनुष्ठान करते थे, इसके पीछे यह माना जाता है कि पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर यज्ञ या अनुष्ठान करने का फल अक्षय होता है।
अंतिम संस्कार के पश्चात अस्थियों को एक मटकी में एकत्रित कर लाल कपड़े में बांधने के पश्चात उस मटकी को पीपल के पेड़ से टांगने की प्रथा है। उन अस्थियों को घर नहीं लेकर जाया जाता, इसलिए उन्हें पेड़ से बांधा जाता है। इसीलिए यह धारणा बन गई कि मरने वाले की आत्मा पीपल के पेड़ में वास करने लगती है। बताया कि शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति पीपल के वृक्ष के नीचे शिवलिंग की स्थापना करता है और रोज वहां पूजा करता है तो उसके जीवन की सभी परेशानियां हल हो सकती हैं। आर्थिक समस्या बहुत जल्दी दूर होती है। पीपल के वृक्ष के नीचे हनुमान चालीसा का पाठ करना चमत्कारी लाभ प्रदान करता है।
पर्यावरणविद् देवराघवेन्द्र सिंह बद्री ने कहा कि पीपल के पेड़ से पर्यावरण को काफी लाभ पहुंचता है। यह पेड़ हजारों सालों तक जीवित रह सकता है। पीपल का पेड़ धार्मिकता से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज हमें पीपल के पेड़ों से हाथ धोना पड़ रहा है। इससे धार्मिक आस्थाना को भारी नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि पीपल के पेड़ों का कटान भविष्य के लिए सुखद संदेश नहीं है।