उत्तराखंड में शिवप्रकाश की अनदेखी नहीं की जा सकती!
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही पार्टी व सरकार से संबंधित फैसलों को लेने में भाजपा आलाकमान किंकर्तव्यविमूढ़ रहा है ।
स्व.नित्यानंद स्वामी जी को प्रथम मुख्यमंत्री बनाने से शुरू हुआ ये सिलसिला आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है।
परन्तु लगता है इस बार उत्तराखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को लेकर अमित शाह के निर्देशन में आलाकमान पुरानी गलतियों से सबक लेकर अगले चुनावों से पहले ही संगठन की चूलें कसने का मन बना चुका है।
अभी तक अध्यक्ष पद को लेकर जो भी दावेदार आगे आ रहे हैं उनको लेकर कहीं भी खुलेआम खेमेबंदी शुरू नहीं हुई है ,इसका एक कारण जहां अमित शाह की पारखी व सशक्त नजरें हैं वहीं दूसरा कारण ये लग रहा है कि अध्यक्ष पद के लिए अभी तक जो भी नाम आगे आए हैं वे संघ व भाजपा की अंदुरिनी कार्यप्रणाली से वाकिफ हैं।
चार- पांच नाम जो वर्तमान में चल रहे हैं उनमें से चाहे उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत हों, निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट हों या विगत वर्षों में उत्तराखंड में भाजपा के लिए संगठन शिल्पी का कार्य करते रहे कैलाश पंत हों या उत्तराखंड भाजपा के लोकप्रिय विधायक व पार्टी के उपाध्यक्ष पुष्कर सिंह धामी हों, कोई भी खुलकर अपनी दावेदारी के बारे में बात नहीं कर रहा है।
परन्तु असली खेल पर्दे के पीछे ही चला जाने वाला है क्योंकि उत्तराखंड प्रदेश हमेशा से ही भाजपा के राष्ट्रीय सह संघटन मंत्री शिवप्रकाश की कर्मस्थली रही है और अभी भी अन्य जिम्मेदारियों के बावजूद वे उत्तराखंड भाजपा के मामलों में ही सबसे अधिक रुचि रखते हैं।
उनकी पसंद शुरू से ही अजय भट्ट ,अजय टम्टा, मदन कौशिक,केदार जोशी,रघुनाथ सिंह चौहान आदि नेता रहे हैं और उनको लगता है वर्तमान संघठन मंत्री भी अंत में उन्हीं की बात का समर्थन करेंगे(वैसे इसके आसार कम ही हैं क्योंकि वर्तमान संघटन मंत्री ना काहू से दोस्ती ,ना काहू से बैर सिद्धांत को अपनाकर ही अभी तक चल रहे हैं) परन्तु इस बार शिवप्रकाश खेमे के लिए दिक्कत ये है कि शिवप्रकाश के पसंदीदा नेताओं को आलाकमान पहले से ही बहुत सी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दे चुका है और इस कारण अबकी बार वो संगठन कौशल के धनी अन्य कार्यकर्ताओं की अनदेखी नहीं करना चाहता।
परन्तु प्रकाश पंत की मृत्यु के पश्चात अजय भट्ट अपने को भाजपा में ब्राह्मणों के एकमात्र नेता के रूप में स्थापित करने में लगे हुए हैं और इसके लिए पुनः इस बार भी अध्यक्ष पद को लपकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं परन्तु इस बार साफ छवि व संघ पृष्टभूमि से आए हुए जुझारू नेता कैलाश पंत के रूप में एक मजबूत दावेदार उनके सामने है।
धन सिंह रावत की दावेदारी भी मजबूत मानी जा सकती है क्योंकि उनकी छवि सबको साधने में समर्थ व्यक्ति के रूप में रही है।
नतीजा जो भी हो उत्तराखंड में शिवप्रकाश की अनदेखी नहीं की जा सकती और नया अध्यक्ष उन्हीं के प्रत्यक्ष या परोक्ष आशीर्वाद से ही बनेगा ,इतना तय जान पड़ता है।
देखते हैं अंत में उत्तराखंड में हरीश रावत द्वारा फिर से सक्रिय होने के बाद पुनः जिंदा हुई कांग्रेस से अगले चुनावों में दो दो हाथ करने के लिए भाजपा कोई मजबूत दांव खेलती है या फिर पुनः पूर्व में की गई गलतियों को दोहराने का कार्य करती है,जो भी हो लड़ाई निर्णायक दौर में पहुंच गई है।