कौन है जो नहीं चाहता श्रीनगर में बना रहे NIT !

- NIT के पूर्व निदेशक थोराट क्यों नहीं चाहते थे श्रीनगर में NIT
- NIT श्रीनगर की कहानी और लोगों की जुबानी
- कौन कर रहा है वहां अध्ययनरत छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़
राजेन्द्र जोशी
श्रीनगर गढ़वाल में एक साथ 900 छात्रों का हॉस्टल खाली करना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है , इस मुद्दे के पीछे श्रीनगर से NIT को कहीं और ले जाने की साजिश की बू साफ़ तौर से आ रही है, देश के इस महत्वपूर्ण संस्थान में छात्र अध्ययन के लिए आये हुए हैं वह भी एक कठिन राष्ट्रीयस्तर की प्रतियोगिता को पार करके, उनका मकसद केवल अध्ययन करना है राजनीती तो उनको कोई मोहरा बनाकर कर रहा है। आखिर NIT की स्थापना से लेकर आज तक क्या -क्या घटनाएं और क्या-क्या षड्यंत्र NIT को श्रीनगर गढ़वाल से बाहर ले जाने के लिए हुए पढ़िए इस रिपोर्ट में ………
श्रीनगर में राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान जिसे एनआईटी कहा जाता है की स्थापना के लिए उत्तराखंड सरकार ने केन्द्र सरकार के कहने पर वर्ष 2008-09 में भूमि की तलाशी शुरू की गयी थी। तत्कालीन समय में समाजसेवी और उद्योगपति मोहन काला द्वारा श्रीनगर गढ़वाल के पास स्थित गाँव सुमाडी में भूमि कि तलाश शुरू की गयी और देश का एक बड़ा संस्थान गाँव में खुले इसके लिए गांव वालों को तैयार किया गया था क्योंकि यहाँ काफी जमीन गांव के लोगों द्वारा रोजगार कि तलाश में बाहर चले जाने के कारण बंजर और खाली थी। यहाँ ज़मीन NIT वालों ने 600 एकड़ ज़मीन चुनी थी, वही ज़मीन गांववालों NIT वालों को बिना शर्त दान कर दी थी । चयन की गयी इस ज़मीन का निरीक्षण तथा उद्घाटन तीन मुख्य मंत्रियों क्रमशः निशंक, विजय बहुगुणा, हरीश रावत और सतपाल महाराज द्वारा किया गया।समय-समय पर यहां तमाम IAS, PCS सभी अधिकारी भी भी आते रहे।
काबिलेगौर है कि NIT के निदेशक थोराट ने समय समय पर NIT पहाड़ में न बने काफ़ी अड़चनें डाली और लोकल लोगों ने थोरात से कई बार मुलाक़ात भी की पर वह नहीं चाहते थे NIT पहाड़ में बने। इस सम्बन्ध में समाजसेवी मोहन काला भी कई बार निदेशक थोराट से मिले और NIT कि स्थापना को लेकर उनकी उनसे NIT कई बार बहस भी हुई। NIT की पहाड़ में स्थापना को लेकर निदेशक थोराट का कहना था कि अगर NIT मैदान में होगी तो पहाड़ के विद्यार्थियों को मैदान के विद्यार्थियों से काफ़ी क़ुच्छ सीखने को मिलेगा। और मोहन काला का कहना था मैदान के विद्यार्थी अगर पहाड़ में आयेंगे तो मैदान और पहाड़ के विद्यार्थी एक दूसरे के पूरक बनेंगे और मैदान के विद्यार्थियों को काफ़ी कुछ पहाड़ से सीखने को मिलेगा जिस प्रकार आज HNB university के विद्यार्थीयों को जो कई प्रदेशों से श्रीनगर आये हैं एक दूसरे से सीखने को मिल रहा है।
लेकिन NIT श्रीनगर में न बन पाए इस पर निदेशक थोराट का यह भी कहना था कि पहाड़ में NIT भवन बनाना बहुत मुश्किल है। लेकिन तत्कालीन सरकारों और मोहन काला का कहना था जिस तरह पौड़ी, मसूरी, गुप्तकाशी, गोपेश्वर और कई अन्य शहर पहाड़ में भवन बनाकर बसे हैं। उखीमठ में तो भारत सेवा आश्रम का सात मंज़िला भवन है। इसके अलावा हमने पर्याप्त जगह दी है तो ऊँचे भवन बनाने की भी ज़रूरत नहीं है।लेकिन थोराट की जिद थी कि यह यहाँ न बन पाए ।
लेकिन सूत्रों का साफ़ कहना है और चर्चाएं भी आम हैं कि NIT के पूर्व निदेशक थोराट नहीं चाहते थे कि श्रीनगर में राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त NIT की स्थापना हो सूत्रों का यह भी कहना है थोराट का हरिद्वार के किसी भूमाफिया से भी संपर्क था जो NIT के लिए वहां भूमि खरीदकर NIT को हरिद्वार ले जाना चाहते हैं। अभी भी पद से हटने के बाद भी वे अपनी इस मुहीम में लगे हुए हैं जिसमें उत्तराखंड सरकार के नेता और अधिकारी शामिल बताये गए हैं।
मामले में समाजसेवी मोहन काला का कहना है कि हमारा गाँव आठ सौ साल से भी पुराना है और वहाँ मज़बूत मकान हैं। कुछ भवन तो एक सौ साल से भी पुराने हैं। और यह भी सत्य है कि अभी तक प्रभु के आशीर्वाद से कभी किसी भी प्रकार की अब तक के इतिहास में आपदा भी नहीं आयी। लेकेन श्रीनगर में NIT NIT की स्थापना न हो पाए इस जिद पर अड़े निदेशक थोराट का यह भी कहना था कि सुमाडी में NIT वाली जगह पर चीड के पेड़ हैं जिन्हें काटना नामुमकिन है।तो उन्होंने निदेशक से पेड़ काटने के बारे में जो भी पत्र व्यवहार फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट से हुए उसकी जानकारी ली और उपरोक्त विषयों की जानकारी माननीय पौड़ी के सांसद खण्डूरी जी को दी और उनसे सरकार की तरफ़ से पेड़ काटने के लिये सहायता माँगी जो उन्होंने तुरन्त स्वीकार कर ली।वहीँ पहाड़ के मित्र साथियों ने पौड़ी के DFO तथा तत्कालीन वन विभाग के चीफ़ सेक्रेटेरी और वन प्रमुख चँदोला से बात कर लिखित निवेदन स्वरूप पेड़ काटने की स्वीकृती फ़ॉरेस्ट डिपार्टमेंट से प्राप्त की और 2015 के दिसम्बर महीने में वन विभाग ने यहाँ के लगभग 1200 पेड़ काटे।
उन्होंने बताया इसी दौरान पेड़ काटने की प्रक्रिया सम्बंधित वे NIT डिरेक्टर से मिले the थे और पेड़ काटने के बाद उनका कहना था कि मैं तो NIT यहाँ नहीं चाहता था पर अब पेड़ कट चुके हैं तो NIT सुमाडी ही बनेगा। NIT विभाग ने पेड़ काटने के पैसे भी दिये और लिखित रूप में यह भी लिखा कि वह किसी अन्य जगह पर दोगुने पेड़ लगायेंगे। उन्होंने बताया वन क्षतिपूर्ति की एवज में कहीं पेड़ लगाये भी गए हैं या नहीं इसकी जानकारी नहीं कि दोगुने पेड़ NIT द्वारा पेड़ काटने के बाद लगाये कि नहीं। वहीँ इसके बाद सरकार ने किसी एजेंसी को ठेका देकर इस ज़मीन पर मज़बूत लोहे की बाउंड्री भी बनायी है और जिसपर अभी तक लगभग 12 करोड़ रुपये ख़र्च हो चुके हैं।
श्री काला ने बताया कि उनकी मुलाक़ात आज के NIT के डिरेक्टर प्रो. श्याम लाल सोनी से दो बार हो चुकी है वे चाहते हैं NIT पहाड़ में ही बने और उन्हीं के काल में बने। उनका कहना था कि सरकार के पास पैसों की कोई कमी नहीं है उन्होंने बताया पर अब मुझे लगता है वह भी राजनीति के शिकार हो चुके हैं और आजकल किसी बुरी बीमारी से पीड़ित हैं और गुडगाँव के किसी अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ ले रहे हैं।
समाज सेवी मोहन काला का कहना है कि वे NIT के विद्यार्थियों के सम्पर्क में कई बरसों हैं और NIT की छात्रा मीणा जिसका गंभीर ऐक्सिडेंट हुआ था और मैं उस दुर्घटना के बाद उस छात्रा से ऋषिकेश AIIMS में भी मिलने गया था, और कुछ NIT के छात्रों को भी मिला और सभी का कहना था हमें पहाड़ में NIT लगने और यहाँ अध्ययन करने में कोई परेशानी नहीं है पर NIT से उन्हें सुविधाएँ मिलनी चाहिये।
कुल मिलाकर श्रीनगर के NIT प्रकरण में कहीं कुछ ऐसा है जो वहां अध्ययनरत छात्रों को बहलाकर NIT का माहौल ख़राब कर NIT को श्रीनगर से कहीं मैदानी इलाके में स्थापित करवाना चाहते हैं जिसका श्रीनगर वासियों सहित समूचे पर्वतीय प्रदेश के नेताओं और जनता को विरोध कर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए कि NIT श्रीनगर में ही बने और जल्दी बने ।पहाड़ में NIT बनेगा तो हज़ारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार मिलेगा और पहाड़ के लोगों के लिये सही माने में एक बहुत बड़ा आय का साधन भी यह होगा। NIT बनने के बाद कई बेहतरीन स्कूल बनेंगे, दुकानें खुलेंगी, उद्योग लगेंगे और पूरे श्रीनगर और आस पास का बड़ा क्षेत्र का विकास होगा।
मामले में समाज सेवी मोहन काला का साफ़ कहना है कि मेरी नज़रों में NIT पहाड़ के लिए उद्योग है और इतना बड़ा हज़ारों करोड़ों का निवेश भविष्य में पहाड़ में कभी नहीं आयेगा। और NIT न बनने की चूक पहाड़ के लोगों के भविष्य के लिए बहुत दुखदायी होगी। उन्होंनेकहा अब कुछ लोग और अधिकारियों, नेताओं का यह भी कहना था कि ज़मीन कई जगह ढलान वाली है।जो किसी तर्क किसी के गले नहीं उतरता जबकि देश में पहाड़ के कई प्रदेशों में ढलानदार भूमि पर बहुत अच्छे संस्थान चल रहे हैं ।