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तीर्थयात्रियों की सुध कौन ले…….

दाता राम चमोली 

भले ही कोई व्यावसायिक संस्थान उत्तराखण्ड के किसी मंत्री को एक माह के भीतर ही अवार्ड दे दे। लेकिन यात्रा की व्यवस्थाएं तभी बेहतर मानी जाएंगी जब तीर्थ यात्री इनसे संतुष्ट हों। वापसी के वक्त उनसे फीडबैक लेकर इसका पता लगाया जा सकता है।

उत्तराखण्ड में आम श्रद्धालु बड़े उत्साह से तीर्थाटन के लिए आते हैं, लेकिन लचर व्यवस्थाओं के चलते इतने दुखी हो जाते हैं कि शायद ही दोबारा यहां आने की सोचें। ठीक है कि साधन संपन्न लोग तमाम व्यवस्थाएं खरीद लेंगे। लेकिन तीर्थाटन अकेले उनसे नहीं चल पाएगा। आम श्रद्धालुओं को बेहतर व्यवस्थाएं उपलब्ध नहीं कराई गईं तो साल दर साल वापसी में वे जो संदेश लेकर जाते रहेंगे उसका भविष्य में बहुत बड़ा नुकसान होगा। आज सोचने का विषय है कि जब दिल्ली में पनिक्कर ट्रेवल्स जैसी निजी सेवाओं पर श्रद्धालु निरंतर भरोसा करते आ रहे हैं, तो उत्तराखण्ड सरकार की एजेंसियां ऐसा क्यों नहीं कर पाईं? क्यों ये एजेंसियां दिल्ली से यात्रा की बुकिंग में उत्साह नहीं दिखा पाती हैं? तीर्थयात्रियों को बेहतर व्यवस्थाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार चाहे तो कुछ इन सुझावों पर भी विचार कर सकती है।

1- तीर्थ यात्रा के बेहतर संचालन के लिए महामहिम राज्यपाल की अध्यक्षता में एक बोर्ड बनाया जा सकता है। इसमें राज्य के कोई सक्षम आईएएस अधिकारी, डीआईजी स्तर के एक पुलिस अधिकारी और स्वास्थ्य विभाग से सीएमओ स्तर के दो अधिकारी भी लिए जाएं। आपदा प्रबंधन, मौसम और खाद्य निरीक्षण विभाग के सक्षम अधिकारी भी इसमें हों। सरकार अलग से यात्रा महकमा भी बना सकती है।

2- जब कैलाश मानसरोवर यात्रियों को बेहतर सुविधाएं मिल सकती हैं तो चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को क्यों नहीं अच्छा और सस्ता भोजन दिया जा सकता है? फूड इंस्पेक्टर यात्रा मार्गों पर मिलने वाले खान-पान की जांच क्यों नहीं करते?

3- यात्रा मार्गों पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम से लैस मोबाइल एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए। हरिद्वार में तीर्थयात्रियों की स्वास्थ्य जांच हो। यात्रा मार्गों में हर दस किमी पर एक फस्ट एड सेंटर और ऊंचाई वाले क्षेत्रों (हाई एल्टीट्यूड) में विशेषज्ञ डाॅक्टर और आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं मिलें।

4- यात्रा के दौरान 15-20 दिन के लिए तीर्थयात्रियों का सामूहिक बीमा करवाया जाए। हरिद्वार में कोई भी इंश्योरेस कंपनी 15-20 रुपए पर यह काम कर सकती है। इसका यह भी फायदा होगा कि सरकार को तीर्थयात्रियों का रिकाॅर्ड रखने की अलग से व्यवस्था नहीं करनी पड़ेगी।

5- यात्रा मार्गों पर 24 घंटे कंट्रोल रूम हों। जहां पर मौसम, स्वास्थ्य आदि की जानकारियां मिल सकें। टोल फ्री एक नंबर पर आॅनलाइन शिकायत की सुविधा यात्रियों को मिले।

6- यात्रा के लिए अलग से ऐसी पुलिस गठित की जा सकती है जो अातिथ्य सत्कार के गुणों से प्रशिक्षित हो। इस पुलिस के जो सिपाही हों वे स्थानीय हों। उन्हें स्थानीय इको सिस्टम और परंपराओं की जानकारी हो।

7- आपदा या अन्य विपरीत परिस्थितियों में एनसीसी कैडेट्स और एनएसएस वोलेंटियर्स की मदद ली जा सकती है। इसके एवज में उन्हें कुछ परिश्रमिक और सर्टिफिकेट दिए जाएं।

8- यात्रा मार्गों पर पुलिस की सघन पेट्रोलिंग हो। हर 25 किमी पर पेट्रोलिंग सेंटर बने। एक पेट्रोलिंग वाहन मार्ग पर ऊपर जाए तो दूसरा नीचे की दिशा में आए। शाम को 7 बजे बाद और सुबह 5 बजे से पहले कोई वाहन यात्रा मार्ग पर न चले। ड्राइवर की जगह-जगह आधुनिक इलेक्ट्राॅनिक मशीनों से जांच हो।

9-गंगा और सहायक नदियों का पानी प्रदूषित होने पर लोग बोतलबंद पानी पीना पसंद करते हैं। सरकार व्यवस्था करे कि उत्तराखण्ड में 5 रुपए से अधिक के रेट पर पानी की बोतल न बिके।

10- यात्रा सीजन में यात्रा मार्गों पर देखभाल के लिए सरकार का कोई न कोई मंत्री अवश्य नियुक्त किया जाए। अगर 11 मंत्रियों में से एक-एक मंत्री को बारी-बारी से दस दिन के लिए नियुक्त किया जाता है कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

11-वैष्णो देवी में एमएमटीसी और एसटीसी के सहयोग से चढ़ावे के आभूषणों से चांदी के सिक्के बनते हैं। श्रद्धालु इन्हें बड़ी श्रद्धा से स्मृति के तौर पर ले जाते हैं। उत्तराखण्ड के मंदिर क्या सिर्फ आभूषणों की चोरी के लिए सुर्खियों में रहेंगे?

12- यात्रा मार्गों पर राज्य के स्थानीय शिल्पकारों के उत्पाद प्रदर्शित किए जाएं ताकि राज्य की शिल्पकला को भी पुनर्जीवन मिल सके।

13- किसी स्वतंत्र एजेंसी के जरिए तीर्थयात्रियों से वापसी में फीडबैक लिया जाए कि यात्रा मार्गों पर सुविधाएं कैसी लगीं और इसमें क्या सुधार हो।

सरकार को गंभीरता से सोचना होगा कि बाबा काली कमली वाले से लेकर सुधांशु महाराज तक बहुत से ऐसे लोग और निजी संस्थाएं हैं जिन्होंने अच्छी व्यवस्थाएं देने में श्रद्धालुओं का दिल जीता। ऐसे में सरकार क्यों नहीं बेहतर कर सकती है? आज जरूरत सिर्फ यह नहीं है कि एक माह के भीतर ही कोई व्यावसायिक संस्थान सरकार के किसी मंत्री को अवार्ड दे जाए, बल्कि असली सवाल यह है कि देवभूमि में आकर यहां की व्यवस्थाओं को लेकर तीर्थयात्री क्या संदेश लेकर गए?

devbhoomimedia

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