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केवल 35 फ़ीसदी फारेस्ट गॉर्ड ही जब हैं वन विभाग के पास, तो कैसे पूरी होगी जलते जंगलों से बचाने की आस

जंगलों में आग लगते ही वन महकमें को आती है फारेस्ट गार्ड की याद 

आखिर कैसे खाली पड़े 65 फीसदी पदों को भरा जाए इस पर गंभीरता से विचार करने को कोई भी तैयार नहीं

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने स्वीकारा कि है फारेस्ट गॉर्ड की है कमी 

उन्होंने देवभूमि मीडिया से कहा हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द फॉरेस्ट गार्ड भर्ती शुरू हो और उसके बाद ट्रेनिंग शुरू की जाए  ताकि वन विभाग में खाली पड़े पदों के सापेक्ष फारेस्ट गॉर्ड के पद भरे जा सकें। उन्होंने कहा जंगलों की आग को बुझाने के लिए अत्याधुनिक संसाधन और उपकरण की खरीद पर भी विचार चल रहा है। 

देहरादून : जब जंगलों में आग लगनी शुर होती है तब ही वन विभाग के रेंजर से लेकर डीएफओ और मंत्री तक को फारेस्ट गॉर्ड की याद आती है वह भी तब जब प्रदेश के वन विभाग के पास फारेस्ट गॉर्ड के केवल 35 फीसद पद पर ही लोग काम कर रहे हैं और 65 फीसदी पद खाली पड़े हुए हैं। ऐसे में कैसे जलते जंगलों में आग बुझाने की उम्मीद की जा सकती है। ऐसा नहीं कि केवल वनाग्नि काल में ही वन महकमे को फारेस्ट गॉर्ड की याद आती है याद तो विभाग को बरसातों में जब वृक्षारोपण किया जाना होता है तब भी आती है लेकिन आखिर कैसे खाली पड़े इन 65 फीसदी पदों को भरा जाए इस पर कोई भी गंभीरता से विचार करने को तैयार नहीं है। वह भी तब जब विभाग के पास पद खाली है कोई नए पद सृजित नहीं करवाने हैं खाली पदों के सापेक्ष ही भर्ती करनी है, लेकिन इस दिशा में कौन गंभीरता से सोचेगा यह सवाल खड़ा हो रहा है।  
गौरतलब हो कि उत्तराखंड के 39 वन प्रभागों, रिजर्व पार्क और अन्य संरक्षित क्षेत्रों में कुल 3,639 वन बीटें हैं। इनमें वर्तमान में केवल 1296 फॉरेस्ट गार्ड ही तैनात हैं। जबकि बाकी बीटें खाली पड़ी हुई हैं। शिक्षकों की तरह वन कर्मियों को भी सुगम स्थानों में नौकरी करनी है इनकी बला से पहाड़ के जंगल जलें या नहीं इनको कोई फर्क नहीं पड़ता। इस तरफ बात-बात पर राज्य के विकास के लिए बनाई जाने वाली सड़कों को लेकर न्यायालय में जाकर काम रुकवाले वाले कथित वन प्रेमी और NGO के लोग इस बात के लिए न्यायालय की तरफ रुख नहीं करते कि विभाग के पास पर्याप्त फारेस्ट गॉर्ड नहीं है और न्यायालय से सरकार को खाली पड़े इन पदों को भरने के लिए कोई जन हित याचिका ये क्यों नहीं लगाते यह सवाल भी आज खड़ा हो रहा है। मामले में  वन विभाग के अधिकारियों का नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर यह कहना है कि प्रदेश में 35 फीसद फारेस्ट गॉर्ड में से भी अधिकांश फॉरेस्ट गार्ड देहरादून, हरिद्वार, राजाजी नेशनल पार्क, हल्द्वानी, कार्बेट नेशनल पार्क और रामनगर में तैनात हैं जबकि पहाड़ों में इनकी संख्या मात्र 7 से 10  फ़ीसद ही होंगे।
सहायक वन कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष इंद्र मोहन कोठारी कहते हैं जब तक कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक कैसे वनों की रक्षा हो पाएगी और  कैसे कर्मचारी काम कर सकेंगे। उन्होंने बताया  कि वर्तमान में फारेस्ट गॉर्ड की कमी के चलते एक-एक फॉरेस्ट गार्ड के पास तीस से चालीस किलोमीटर का एरिया है। उसे पूरे जंगल की निगरानी भी करनी होती है। इतना ही नहीं कई फारेस्ट गॉर्ड के पास तो सौ किमी से ज्यादा वन की निगरानी का जिम्मा दिया गया है। यानि अधिकाँश फारेस्ट गॉर्ड के पास तीन से चार बीटें हैं जबकि एक फारेस्ट गॉर्ड के पास केवल एक ही या दो बीट होनी चाहिए उन्होंने कहा यह इस लिए भी है क्योंकि पिछले तीन साल से प्रदेश में फॉरेस्ट गार्ड की एक भी भर्ती भी नहीं हो पाई है।

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