NATIONAL
यह कैसी जासूसी है ?
- 10 जासूसी एजेन्सियां को जासूसी का अधिकार देने की घोषणा
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत सरकार अब किसी भी फोन, किसी भी ई मेल, किसी भी डाक-तार, किसी भी हिसाब-किताब या बैकिंग लेन-देन या किसी भी निजी संवाद की निजता या गोपनीयता में हस्तक्षेप कर सकेगी।
सरकार ने अपनी 10 जासूसी एजेन्सियां को यह अधिकार देने की घोषणा की है। उसका तर्क यह है कि यह इसलिए किया जा रहा है कि आतंकवादियों की गुप्त हरकतों को पकड़ा जा सके। इसमें शक नहीं कि सरकार की चिंता जायज़ है। यदि उनके फोन टेप किए जा सकें, उनके इंटरनेट संवादों पर नजर रखी जा सके, उनके लेन-देन को पकड़ा जा सके तो उन पर काबू पाना आसान होगा लेकिन इस सीमित लक्ष्य के लिए असीमित छूट लेना कहां तक उचित है ?
यदि देश के हर नागरिक को जासूसी चश्मे से देखा जाएगा तो उसकी निजता और उसकी इंसानियत खतरे में पड़ जाएगी। किसी जानवर और इंसान में यह निजता ही फर्क डालती है। जो काम जानवर करते हैं, वही काम इंसान भी करते हैं लेकिन उन्हें वे ढोल पीटकर नहीं करते। उन्हें उन कामों के लिए एकांत चाहिए। यह उनका मूल अधिकार है। यह उनकी मूल पहचान है।
सर्वोच्च न्यायालय इसे उनका मूल अधिकार मानता है। सरकार की इस नई घोषणा से इस मूल अधिकार का उल्लंघन होगा। आदमी और जानवर का फर्क मिट जाएगा। भारत सोवियत संघ या कम्युनिस्ट चीन या हिटलर की जर्मनी की तरह बन जाएगा। अभी तो सरकार के संयुक्त सचिव की अनुमति से व्यक्तियों की जासूसी होती है।
अभी भी हजारों फोन टेप किए जाते हैं और चिट्ठियां खोलकर पढ़ी जाती हैं लेकिन क्या अब करोड़ों लोगों के खिलाफ जासूसी का बाजार गर्म नहीं हो जाएगा ? इस प्रावधान का राजनीतिक दुरुपयोग अवश्यंभावी है। सरकार से हम अपेक्षा करते हैं कि वह अपराधियों की जासूसी जरुर करे लेकिन किसी की भी जासूसी के पहले कम से कम तीन अधिकारियों की अनुमति जरुर ली जाए।