कमजोर नीव: डगमगाता भविष्य – आधुनिक भागदौड़ में खोखली होती युवा पीढ़ी

प्रियंका ध्यानी कि कलम से
देहरादून ।
इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी में, जहाँ लोगों को दो पल बैठने की भी फुर्सत नहीं, वहीं आज की पीढ़ी अपनी ज़िंदगी के फैसले चंद सेकंड में ले रही है। जितनी आधुनिक दुनिया बनती जा रही है, उतना ही इंसान खोखला होते चला जा रहा है। इस व्यस्त दुनिया में किसी के पास समय नहीं है कि वह किसी की तकलीफ़ सुने या उसका उपाय निकाले। सब भाग रहे हैं, मानो जैसे कोई रेस लगी हो।
क्या हासिल हो रहा है?
इस अंधी दौड़ का अंतिम परिणाम क्या है? ऐसी पीढ़ी जो चंद मूर्खों की बातों से, उनके तानों से हताश होकर अपनी जान गँवा दे! आज 10 साल का बच्चा भी आत्महत्या करने से नहीं कतरा रहा—क्यों? आजकल के बच्चे अपने माँ-बाप की ज़रा-सी सख़्ताई से भी परेशान होकर अपना जीवन गँवा दे रहे हैं। बीते कुछ दिनों में ऐसी बहुत सी घटनाएँ सामने आई हैं। क्या अब ज़िंदगी का मोल नहीं रहा? यह कैसा कमजोर ढाँचा खड़ा हो रहा है हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए? भविष्य में कभी देश पर हमला हुआ, तो यह पीढ़ी तो पहले ही घुटने टेक देगी। हम इस मुद्दे को गहराई से क्यों नहीं समझ रहे?
शिक्षा और संस्कार की प्राथमिकता
राजनीति से बड़ा शिक्षा और संस्कार है, जिससे इस नए समाज की नीव रखी जाएगी।
बच्चों के अंदर सही और गलत की समझ होनी चाहिए।
सिर्फ किताबी ज्ञान होना सही नहीं है, सामाजिक ज्ञान को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
शिक्षा मंत्रालय को इस पर ठोस कदम उठाने चाहिए। हमारे एजुकेशन सिस्टम में परिवर्तन करने चाहिए।
बचपन से बच्चों को मजबूत और बुराई से लड़ने की सीख देनी चाहिए।
शिक्षित होने के साथ-साथ उनका मनोबल बढ़े उस पर भी ध्यान देना चाहिए।
बच्चों में हार स्वीकारने की क्षमता होनी चाहिए।
स्कूल और माता-पिता की भूमिका
स्कूलों में सुधार के लिए
प्राइवेट हो या सरकारी स्कूल, काउंसलर का होना अनिवार्य किया जाए। जो समय-समय पर बच्चों से बात कर उनका मार्गदर्शन करे।
जहाँ शिक्षक कोर्स पूरा करने की होड़ में हैं, वहीं काउंसलर बच्चे के दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े इसका ध्यान रख सकता है।
आजकल के माँ-बाप से भी यह निवेदन है कि:
उनका भी यह फर्ज़ बनता है कि बच्चों को पर्याप्त समय दिया जाए।
जिससे बच्चे निशंकोच होकर दिल की बात बता सकें और कोई भी हानि होने से पहले उसका समाधान निकाला जा सके।
यह समय है कि हम अपनी बुनियाद को पहचानें और उसे मजबूत करें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी एक सुरक्षित और मजबूत भविष्य बना सके, न कि डगमगाता हुआ।



