UTTARAKHAND

पारंपरिक ज्ञान का भंडार है हमारे यहां परन्तु आमजन को नहीं पेटेंट संबंधित कानूनों की जानकारी : डॉ. विजय धस्माना

एसआरएचयू में बौद्धिक संपदा पर आयोजित हुई कार्यशाला

प्रतिभागियों ने जानी पेटेंट दाखिल करने की प्रक्रिया
पेटेंट लेने से होता है अपने अविष्कार पर अपना अधिकार

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
SRHU Vice-Chancellor Dr. Vijay Dhasmana said that we have a repository of traditional knowledge but the common man is not aware of the laws related to patents. He said about patents, copyrights, trademarks under intellectual property, that there is a need to be vigilant about these rights in view of the changes taking place at the global level.
देहरादून। स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) में यूकोस्ट के सहयोग से इंटेलैक्चुउल प्रोपर्टी राइट पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें प्रतिभागियों को बौद्धिक संपदा अधिकार और इसके महत्व के विषय में जानकारी दी गयी।
शनिवार को न्यू आडिटोरियम में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला का उद्धघाटन कुलपति डाॅ. विजय धस्माना व यूकोस्ट के महानिदेशक डाॅ. राजेन्द्र डोभाल ने दीप प्रज्जवलित कर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये SRHU कुलपति डाॅ. विजय धस्माना ने कहा कि हमारे यहां पारंपरिक ज्ञान का भंडार है परन्तु आमजन को पेटेंट संबंधित कानूनों की जानकारी नहीं है। उन्होंने बौद्धिक संपत्ति के अंतर्गत पेटेंट, काॅपीराइट, ट्रेड मार्क के बारे में कहा कि वैश्विक स्तर पर हो रहे बदलाव को देखते हुये इन अधिकारों के बारे में सजग रहने की जरूरत है।
The Chief Guest, Dr. Director General of Uttarakhand State Council for Science and Technology (UCOST). Rajendra Doval said that intellectual property is called a brainchild, it can only be used by innovators. Under it, any composition, music, literary work, art, discovery, or design created by a person or organization is called the intellectual property of that person or institution, and the rights received by the person or organization on these works are called intellectual property rights. He said that we apply for about 12500 patents in a year, which is very little.
मुख्य अतिथि उत्तराखंड स्टेट काउंसिल फाॅर साइंस एंड टेक्नाॅलोजी (यूकोस्ट) के महानिदेशक डाॅ. राजेन्द्र डोभाल ने कहा कि बौद्धिक संपदा को दिमागी उपज कहा जाता है, इसका उपयोग अविष्कारकर्ता ही कर सकता है। इसके अंतर्गत व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा सृजित कोई रचना, संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज अथवा डिजाइन होती है जो उस व्यक्ति अथवा संस्था की बौद्धिक संपदा कहलाती है और इन कृतियों पर व्यक्ति अथवा संस्था को प्राप्त अधिकार बौद्धिक संपदा अधिकार कहलाता है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक साल में करीब 12500 पेटेंट के लिए एप्लाई करते है जो कि बहुत कम है।
कार्यशाला में एसआरएचयू के वैज्ञानिक सलाहकार डाॅ. सीएस. नौटियाल ने शिक्षाविद्ों के लिए पेटेंट का महत्व, एमएसएमई भारत सरकार के सहायक निदेशक सतीश कुमार ने बौद्धिक संपदा अधिकार के लिए सरकार की ओर प्रोत्साहन नीति, योगेन्द्र सिंह ने काॅपीराईट एक्ट, इनोव इंटेलेक्ट की निदेशक पूजा कुमार ने पेटेंट दाखिल करने की भारतीय प्रक्रिया के विषय में प्रतिभागियों को जानकारी दी।
चेयरपर्सन डाॅ. विनीता कालरा ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य बौद्धिक संपदा के अधिकारों के सृजन को बढ़ावा देना है। कार्यशाला में मेडिकल, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, नर्सिंग, योग विज्ञान के डीन और फैकल्टी सहित शोध छात्र-छात्राएं शामिल हुये। इस अवसर पर प्रति कुलपति डाॅ. विजेन्द्र चैहान, रजिस्ट्रार विनीत मेहरोत्रा, डाॅ. प्रकाश केशवैया, डाॅ. डीसी धस्माना उपस्थित थे।

Related Articles

Back to top button
Translate »