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अध्यादेश के कवच को जंग तैयार………

मुख्य सचिव डॉ.एसएस संधु की अध्यक्षता में यह राय बन चुकी है  बता  दे की के उच्च न्यायालय खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुग्रह याचिका दाखिल की जाएगी। तो  इससे पहले सरकार सुप्रीम अदालत से अतीत में हुए उन बड़े फैसलों की नजीरें जुटा रही है।माना जा रहा है. कि मुख्यमंत्री की सहमति मिलने के साथ ही आने वाले दिनों में प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में अध्यादेश के प्रस्ताव को मंजूरी के लिए लाया जाएगा।

अधिनियम इसलिए जरूरी

 बता दे की राज्य की महिलाओं के लिए वर्ष 2001 में और 24 जुलाई 2006 को तत्कालीन सरकारों ने अलग-अलग शासनादेशों से 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का प्रावधान किया।   तो उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर क्षैतिज आरक्षण के जीओ पर रोक लगा दी।  तो सरकार से जुड़े न्याय और विधि से जुड़े जानकारों का मानना है कि अदालत से अमान्य कर दिए गए शासनादेशों के आधार पर सर्वोच्च अदालत में पैरवी करना सिर्फ डंडे के सहारे युद्ध लड़ना सरीखा होगा।  तो यही वजह है कि सबसे पहले सरकार अध्यादेश ला रही है।

ड्राफ्ट में ये संभव

  • यह 18 जुलाई 2001 से प्रभावी होगा।

  • यह कानून उन सभी महिलाओं को संरक्षण प्रदान करेगा, जो क्षैतिज आरक्षण के लाभ से सरकारी सेवा में हैं।

  • इसके दायरे में ऐसी महिलाएं होंगी, जो भारत की नागरिक हैं और जिनका डोमिसाइल उत्तराखंड का है।

  • ऐसी महिलाएं, जिन्होंने 20 नवंबर 2001 से जारी शासनादेश के तहत डोमिसाइल प्राप्त किया है।

  • डोमिसाइल प्रमाण पत्र तहसीलदार रैंक से नीचे का अफसर जारी नहीं कर सकेगा।

सुप्रीम कोर्ट

  • उत्तरप्रदेश बनाम ओपी टंडन मामले में 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल दाखिले में पर्वतीय और उत्तराखंड क्षेत्र के लोगों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण मान्य किया था।

  • डीपी जोशी बनाम मध्य भारत मामले में 1955 में सुप्रीम कोर्ट की सांविधानिक पीठ ने फैसला दिया था कि अधिवास (डोमिसाइल) आधारित आरक्षण अनुच्छेद 15 का उल्लंघन नहीं करता, क्योंकि जन्म स्थान और निवास स्थान में अंतर है।

  • हरियाणा राज्य ने डोमिसाइल के आधार पर निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों को 70 प्रतिशत नौकरियां देने का कानून बनाया। इस पर एक याचिका में उच्च न्यायालय ने रोक लगाई, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे मान्य किया।

  • उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियां असामान्य हैं। राज्य सरकार को महिलाओं और बच्चों के संरक्षण के लिए कानून बनाने का सांविधानिक अधिकार है।

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