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परचून दुकानदार का बेटा रामनाथ कोव‍िंद बना वकील से राष्ट्रपति

के.आर.नारायणन  देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे। रामनाथ कोविंद होंगे अब देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति 

नयी दिल्ली : रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति होंगे। उन्होंने गुरुवार (20 जुलाई) कांग्रेस समेत 17 दलों की उम्मीदवार मीरा कुमार को हराकर चुनाव जीता। एक अक्टूबर 1945 को कानपुर देहात के पाराउख गांव में जन्मे कोविंद देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे। कोविंद के पिता मैकूलाल पाराउख गांव के चौधरी थे। कोविंद के भाई प्यारेलाल के अनुसार उनके पिता मैकूलाल वैद्य भी थे और गांव में किराने और कपड़े की दुकान चलाते थे। प्यारेलाल कहते हैं, “हम एक सामान्य मध्यमवर्गीय जीवन जीते थे। कोई संकट नहीं था। सभी पांच भाइयों और दो बहनों को शिक्षा मिली। एक भाई मध्य प्रदेश में अकाउंट अफसर के पद से रिटायर हुए हैं। एक और भाई सरकारी स्कूल में टीचर हैं। रामनाथ वकील बन गए। बाकी भाई अपना कारोबार करते हैं।”

कोविंद की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूल में हुई। कानपुर देहात के खानपुर टाउन से उन्होंने 12वीं की पढ़ाई करके वो उच्च शिक्षा के लिए कानपुर चले गए। कानपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने वाणिज्य और विधि (लॉ) की पढ़ाई की। प्यारेलाल के अनुसार कोविंद बचपन से ही “मेधावी” छात्र थे। वकालत की पढ़ाई करने के बाद कोविंद लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा की तैयारी के लिए दिल्ली चले गए। दिल्ली में ही वो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने लगे। कोविंद साल 1977 से 1979 तक केंद्र सरकार की तरफ से दिल्ली हाईकोर्ट में वकील थे।

जब केंद्र में जनता पार्टी की मोरारजी देसाई सरकार बनी तो कोविंद पीएम के निजी सचिव बने। जनता पार्टी से भारतीय जनसंघ के धड़े ने अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया था। जनता सरकार के गिर जाने के बाद 1980 से 1983 तक वो सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से स्टैंडिंग काउंसिल रहे। उन्होंने 1993 तक दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कुल 16 सालों तक प्रैक्टिस की है। दिल्ली प्रवास के दौरान ही 1990 के दशक में उनकी मुलाकात उज्जैन के रहने वाले जन संघ के नेता हुकुम चंद से हुई थी जिनकी वजह से वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बीजेपी से जुड़ गए।

रामनाथ कोविंद सक्रिय रूप से राजनीति में तब आए जब 1991 में बीजेपी ने उन्हें घाटमपुर लोक सभा से पार्टी का टिकट दिया लेकिन वो चुनाव हार गए। सांसद बनने में कोविंद भले ही विफल रहे हों लेकिन पार्टी के अंदर उनका कद साल दर साल बढ़ता गया। वो बीजेपी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष, महामंत्री और प्रवक्ता पद पर रहे। प्यारेलाल कहते हैं, “वो समर्पित बीजेपी नेता हैं। हमने कभी नहीं सोचा था कि वो इस ऊंचाई तक पहुंचेंगे। पूरे परिवार को उन पर गर्व है।” साल 1994 में बीजेपी ने उन्हें पहली राज्य सभा का सांसद बनाया। पार्टी उन्हें पहला कार्यकाल खत्म होने पर दोबारा राज्य सभा भेजा और साल 2006 वो उच्च सदन के सांसद रहे। साल 2007 में कोविंद ने भोगनीपुर विधान सभा सीट से भी चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनने के बाद आठ अगस्त 2015 को उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। बीजेपी और एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के बाद 20 जून 2017 को उन्होंने राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। एक सामान्य दलित परिवार से देश के शीर्ष पद की दौड़ में कोविंद अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर पहुंचे हैं। उनके भतीजे दीपक ने इंडियन एक्सप्रेस से बताया था, “हमने राम नाथ चाचा से कई बार कहा कि हमें बेहतर नौकरी दिला दो लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जैसे मैंने स्वयं सफलता पाई, वैसे तुम लोग भी मेहनत करो।” दीपक सरकारी स्कूल में टीचर हैं।

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