POLITICS

उत्तराखंड भाजपा अध्यक्ष का तिलिस्म

 भाजपा नेतृत्व ले चुका है मुख्यमंत्री, संगठन मंत्री व संघ की राय

देवमीडिया ब्यूरो

देहरादून : भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद की खोज देश में CAA और NRC के शोर तले परवान नहीं चढ़ पा रही है। परन्तु इस पद को पाने के लिए राजनीति अपने चरम पर पहुंच गई है और अलग अलग खेमे अपनी अपनी जीत की व्याख्या कर रहे हैं। वैसे मुख्यमंत्री, संगठन मंत्री व संघ की राय आला नेतृत्व पहले ही ले चुका है परन्तु फिर भी सभी नेता अपने अपने गणित पर विश्वास कर रहे हैं।

जैसे ही आला नेतृत्व से ये साफ़ हो गया कि , वो इस बार केवल प्रतिभा,क्षमता व समर्पण को भविष्य की चासनी में गर्म करके ही प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाह रहा है तभी से ही क्षेत्र व जाति की राजनीति करने वाले नेताओं की सांसे थम सी गई हैं।

इस बार वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी व जनरल भुवन चंद्र खंडूरी के खेमे मैदान से नदारद हैं पर अन्य खेमे अभी भी अखाड़े में खम ठोक रहे हैं। जहां भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश का खेमा अजय भट्ट ,अजय टम्टा, मदन कौशिक, केदार जोशी व कुछ अन्य नेताओं की उम्मीदवारी आगे बढ़ा रहा है वहीं निशंक खेमा बंशीधर भगत ,नवीन दुमका व बलराज पासी की उम्मीदवारी को आगे बढ़ा रहा है।

इस सबके बीच राज्य सरकार में मंत्री धन सिंह रावत, संघ से भाजपा में आए कैलाश पंत, कार्यकारी अध्यक्ष नरेश बंसल , विधायक पुष्कर सिंह धामी डार्क हॉर्स बने हुए हैं।

जहां धन सिंह रावत राजनीति के एक चतुर खिलाड़ी माने जाते हैं और अब उन्हें धनबल से भी कम नहीं आंका जा सकता वहीं बंसल राजनीतिक धरातल पर अपनी कमजोरी को संगठन में अपने कमजोर अनुभव व पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल से नजदीकी द्वारा पाटने की कोशिश कर रहे हैं।

इनके अलावा विधायक पुष्कर सिंह धामी की उम्मीदवारी भविष्य के चुनावों को दृष्टिगत रखने के साथ साथ मैदानी – पहाड़ी क्षेत्रों की गणित के लिहाज से मजबूत नज़र आ रही है पर इस बार अपने राजनीतिक गुरु रहे कोश्यारी का प्रदेश की राजनीति से दूर होना उनके लिए परेशानी पैदा कर रहा है।

कुमाऊं के ब्राह्मण नेता व संगठन कौशल में माहिर कैलाश पंत भी आरएसएस व पुराने नेताओं की पसंद बने हुए हैं परन्तु हमेशा से ही अपनी भविष्य की राजनीति को ध्यान में रखते हुए निवर्तमान अध्यक्ष अजय भट्ट का उनके नाम के लिए वीटो करना उनके लिए नकारत्मक साबित हो रहा है।

अजय टम्टा को लेकर भी काफी कयास चल रहे हैं क्योंकि शिवप्रकाश से नजदीकी का लाभ रघुनाथ सिंह चौहान के अलावा जिस नेता को सबसे अधिक विगत में मिला है, वे अजय टम्टा ही हैं ,पर उन्हें भी केंद्र में मंत्री पद ना देने की भरपाई पार्टी ने भारतीय खाद्य निगम के चेयरमैन जैसा महत्वपूर्ण पद देकर पहले ही कर ली है।

परन्तु यदि अध्यक्ष पद पर उम्मीदवार के चयन में कुमाऊं से ब्राह्मण नेता की उम्मीदवारी को ही अन्तिम कसौटी माना जाएगा तो अजय भट्ट,बंशीधर भगत, कैलाश पंत ,केदार जोशी व नवीन दुमका की उम्मीदवारी महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे में राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री और प्रदेश की राजनीति में अत्यधिक दखल रखने वाले शिवप्रकाश की पसंद अजय भट्ट व केदार जोशी हो सकते हैं।

परन्तु संगठन की दृष्टि से अजय भट्ट से भाजपा के सामान्य कार्यकर्ता का नाराज होना और केदार जोशी का धरातल पर मजबूत ना होना शिवप्रकाश की गणित को बिगाड़ रहा है और यदि बंशीधर भगत और कैलाश पंत की उम्मीदवारी की बात करें तो जहां एक और बंशीधर भगत की उम्मीदवारी में उम्र व स्वास्थ आड़े आ रहा है वहीं कैलाश पंत का चुनावी राजनीति से विगत में दूर रहना एक अड़चन है।

परन्तु इस बार राजनीतिक कसौटी पर जो सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है वो उत्तराखंड की राजनीति में हमेशा से हावी रही ठाकुर व ब्राह्मण राजनीति का परवान नहीं चढ़ पाना साबित हो रहा है ।

क्योंकि ठाकुर और ब्राह्मण वर्ग को पार्टी ने समान रूप से पहले ही साध रखा है। क्योंकि जहां इस बार त्रिवेंद्र सिंह रावत के रूप में मुख्यमंत्री ठाकुर वर्ग से है वहीं ब्राह्मण नेता रमेश पोखरियाल निशंक को केंद्र में महत्वपूर्ण मंत्रालय पहले ही दिया जा चुका है,साथ ही साथ ठाकुर बहुल नैनीताल सीट से अजय भट्ट को लोकसभा व अनिल बलूनी को राज्य सभा भेजने के साथ – साथ मदन कौशिक,अरविंद पाण्डेय और सुबोध उनियाल के रूप में तीन कैबिनेट मंत्री ब्राह्मण वर्ग से देकर पार्टी ने ये सिद्घ कर दिया है कि वो इस पुराने मुद्दे को पुनः उछलने देने की गलती नहीं करेगी। परन्तु अभी भी कुमाऊं व गढ़वाल की क्षेत्र आधारित राजनीति की महत्ता अपनी जगह बनी हुई है।

ज्यों ज्यों उत्तराखंड में ठंड बढ़ रही है अध्यक्ष पद की रेस की गर्मी भी त्यों त्यों अपने पूरे शबाब पर है अब देखना है सबके बीच उत्तराखंड में बीजेपी की राजनीति का पारा किसकी उम्मीदवारी पर आकर रुकता है और उत्तराखंड भाजपा अध्यक्ष का तिलिस्म कौन तोड़ता है।

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