देहरादून । राज्य की 69 सीटों पर हुए मतदान में पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा कुल मिलाकर गिरावट दर्ज की गई, लेकिन 16 सीटें ऐसी भी हैं जिन पर 2012 के मुकाबले मतदान प्रतिशत में इजाफा हुआ है। एक ओर जहां राज्य में मतदान कम होने से तमाम राजनीतिक दलों में खलबली मची है, वहीं इस सीटों पर बढ़े मतदान से किसे फायदा होगा, यह सवाल भी उठ रहा है। इन सीटों पर गौर करें तो 2012 इनमें से सात-सात सीटों पर कांग्र्रेस और भाजपा ने और दो पर बसपा ने जीत दर्ज की थी। वहीं, उप चुनाव में एक सीट पर कांग्रेस ने बसपा को हराकर जीत दर्ज की।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मतदान में वृद्धि वाली 16 सीटों में से सात गढ़वाल और नौ कुमाऊं से हैं। इनमें 11 सीटें मैदानी और 5 सीटें पर्वतीय क्षेत्र की हैं। 2017 विधान सभा चुनाव में राज्य की 69 सीटों में से 53 पर मत प्रतिशत में कमी आई है। ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। वहीं, इन 16 सीटों का विश्लेषण करें तो अधिकांश पर प्रत्याशी दूसरे दलों के खेमे में हैं या बगावत की स्थिति में हैं। एक सीट पर मुख्यमंत्री खुद मैदान में हैं तो एक सीट पर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। कुल मिलाकर ये बढ़ा हुआ मतदान एंटी इनकंबेंसी से प्रभावित हुआ तो इसका नुकसान पार्टियों को होगा या प्रत्याशियों को, स्पष्ट नहीं। कारण, पार्टियां बदल गईं, लेकिन प्रत्याशी पुराने हैं।
केदारनाथ सीट पर जीतने वाली कांग्रेस की शैलारानी रावत अब भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। बीएचईएल रानीपुर सीट से भाजपा के आदेश चैहान जीते थे और अब वे ही मैदान में हैं। ज्वालापुर सीट पर भाजपा ने मौजूदा विधायक के बजाय सुरेश राठौर को मैदान में उतारा है, हालांकि विधायक चंद्रशेखर ने बगावत नहीं की। भगवानपुर सीट 2012 में बसपा के सुरेंद्र राकेश के पास थी, उप चुनाव में उनकी पत्नी ममता राकेश ने कांग्र्रेस के निशान पर यहां जीत दर्ज की। अब उनके देवर सुबोध राकेश भाजपा से उनके सामने हैं। झबरेड़ा सीट बसपा के हरिदास के पास थी, वे अब कांगेस में शामिल हो गए हैं। हालांकि, कांग्रेस ने उन पर दांव नहीं खेला। पिरान कलियर से कांग्रेस के विधायक फुरकान ही मैदान में हैं, लेकिन बसपा से निष्कासित शहजाद उनकी परेशानी बढ़ा रहे हैं।
हरिद्वार ग्र्रामीण सीट पर भाजपा से स्वामी यतीश्वरानंद विधायक हैं और इस बार उनका मुकाबला मुख्यमंत्री हरीश रावत से है। कुमाऊं मंडल की बात करें तो यहां कपकोट सीट पर मतदान में इजाफा हुआ है। अभी तक यह सीट कांग्रेस के पास है। काशीपुर, नानकमत्ता, खटीमा और लोहाघाट सीट भाजपा, चंपावत, नैनीताल और जसपुर सीट कांग्रेस के पास हैं। सितारगंज सीट से कांग्र्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा 2012 में जीते थे। अब वे भाजपा में हैं और उनके पुत्र सौरभ इस सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं। सभी प्रत्याशी बढ़े मतदान को अपने हक में मानकर चल रहे हैं। कांग्रेस इसे विकास के नाम मतदान मान रही है, वहीं भाजपा का दावा एंटी इनकंबेंसी का है। अब यह देखना रोचक होगा कि 11 मार्च को ये सीटें किसके खाते में जाती हैं।