2018 में दो-दो हाथ करने को तैयार त्रिवेंद्र सरकार
देहरादून। वर्ष 2017 उत्तराखंड की जनता के लिए जहाँ सामान्य रहा वहीँ कांग्रेस को चुनावी हार का सामना इसी साल करना पड़ा जबकि भाजपा को अप्रत्याशित जीत भी इसी साल मिलीऔर प्रदेश को त्रिवेन्द्र रावत मुख्यमंत्री के रूप में मिला। हालाँकि विपक्ष मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत धीरे चलने का आरोप लगा तो रहा है लेकिन उनके खिलाफ सूबे के पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह अभी तक भ्रष्टाचार के कोई भी आरोप नहीं लग पाए हैं। आर्थिक कमी के कारण प्रदेश की विकास योजनाओं पर जरूर फर्क पड़ रहा है लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह राजनितिक घोषणाओं से बचते जरूर नज़र आ रहे हैं। वहीँ जहाँ यह सूबा वर्ष 2017 जनवरी से मार्च तक विधानसभा चुनाव में रंगा था तो वहीँ दिसम्बर के आते आते सरकार और राजनीतिक दल एक बार फिर अप्रैल 2018 में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी में जुट गया है ।
वर्ष 2017 में देखा जाए तो प्रदेश में इस साल की सबसे महत्वपूर्ण और आश्चर्यजनक घटना भाजपा का सत्ता में वापसी रही है। राज्य के चुनावी इतिहास में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो जब किसी राजनीतिक दल को इतनी अपार सफलता मिली हो। जिन सीटों पर जीत का अंतर कुछ सैकड़ों या फिर उससे कम रहने का इतिहास रहा है, वहां 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों ने दस हजार या उससे अधिक वोटों से जीत हासिल की, जिसे विपक्ष और प्रदेश के चुनावी पंडित आजतक नहीं समझ पाए हैं कि आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे ।
बजट का कमी
त्रिवेंद्र सरकार को सबसे पहली जिस चुनौती से सामना करना पड़ा वह सरकार चलाने के लिए बजट की कमी रही। जिसका ठीकरा भाजपा ने हरीश रावत सरकार पर फोड़ा। बजट की कमी के कारण सरकार विकास के बड़े कार्यों से संबंधित फैसले लेने में आज भी असमर्थ दिख रही है। सरकार के अपने ही मंत्रियों और अधिकारियों का कहना है कि बजट की कमी के कारण मुख्यमंत्री स्वास्थ बीमा योजना और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए संचालित अन्य सामाजिक आर्थिक योजनाओं को निलंबित करना पड़ा है।
एनएच 74 घोटाले का जिन्न
अभी त्रिवेंद्र रावत सरकार अपने काम का बही खाता खोल ही रही थी की उसे पहले एनएच घोटाले में वादा करके भी सीबीआई जांच नहीं करा पाने के कारण विपक्ष की मार के साथ जनता के सामने शर्मसार होना पड़ा। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी का एनएच 74 घोटाले में लिप्त राष्ट्रीय राजमार्ग के अधिकारियों को बचाने के लिए प्रदेश सरकार को चेतावनी भरे पत्र ने त्रिवेंद्र सरकार की खूब किरकिरी करवाई।
6 किसानों ने की आत्महत्या
अभी एनएच घोटाले का मामला शांत भी नहीं हुआ था कि 6 किसानों द्वारा आत्महत्या करने के मामले ने सरकार को उलझा दिया। विपक्ष ने भी इस मौके का पूरा फायदा उठाया। कांग्रेस पार्टी ने सरकार और भाजपा दोनों के खिलाफ किसानों की आत्महत्या के मामले में मोर्चा खोल दिया तो वहीं दूसरी ओर सत्तारूढ़ दल को उसका किसानों के लोन माफी वाला चुनावी वादा याद दिलाकर रक्षात्मक मुद्रा में खड़ा कर दिया।
गैरसैंण राजधानी का छाया रहा मुद्दा
अपने नौ महीने के शासनकाल में गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के मुद्दे पर भी त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की काफी फजीहत हुई। त्रिवेंद्र सरकार गैरसैंण को राजधानी और भराणीसैंण में विधानसभा सत्र कराने की मांग को दरकिनार करने का भरसक प्रयास किया। सरकार को अघोशित ग्रीष्मकालीन राजधानी में 7 नवम्बर से विधानसभा का 6 दिवसीय शीतकालीन सत्र बुलाकर विवाद को अस्थायी विराम देना पड़ा। हालांकि यह सत्र अत्यधिक ठंड और संसाधनों की कमी के चलते दो दिन से ज्यादा नही चल सका।
जन सरोकार के फैसले में फेल
देखा जाए तो प्रदेश में वर्तमान भाजपा सरकार इस वर्ष आम जनता से जुड़े अहम विभाग जैसे स्वास्थ, कृषि, शिक्षा, उर्जा, खाद्य सुरक्षा एवं समाज के पिछड़े वर्गों के कल्याण से संबधित आजतक रुटीन और आम फैसलों के सिवाए कोई ठोस कार्यक्रम या योजना नहीं बना पायी है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री की सेना के रिटायर्ड डॉक्टरों को राज्य स्वास्थ सेवा में लेने की कवायद भी आजतक परवान नहीं चढ़ सकी।