देवभूमि मीडिया ब्यूरो
राजेन्द्र जोशी
वह बेहद दर्द में था लेकिन उसने आह तक नही भरी ….क्योंकि उसने औरों को खुशियां बांटने का संकल्प जो ले लिया था । इसलिए वह अब पीछे नहीं हटना चाहता था । बेहद तकलीफ को सहने के बाबजूद भी वह अपने लक्ष्य से भटका नहीं और एक बार फिर उसने हमेशा की तरह अपने आयोजन को सफल कर जन-जन के दिल मे जगह बना ली है । मैं आज उससे मिला मैंने उसे उसके सफल आयोजन की बधाई दी शाबासी भी दी उसने मुस्कराते हुए धन्यबाद सहित आभार व्यक्त भी किया । तभी साथ में कुछ लोगों मुझे बताया कि इनको तो दूसरा जन्म मिला है ।
यहां मैं बात कर रहा हूँ युवा समाजसेवी रचनात्मक पत्रकार भाई शशि भूषण मैठाणी पारस की । आप सभी जानते हैं कि इन्होंने हाल ही मैं 15 अक्टूबर के दिन देहरादून में यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड सेरेमनी का भव्य आयोजन किया था । जिसे जन जन ने सराहा है । मुझे आज ही मालूम हुआ कि इतना विशाल राष्ट्रीय स्तर का आयोजन करने वाला यह सख्स बीते एक माह से बेहद कष्ट में है । मैठाणी को 16 सितंबर की रात 12 बजे उनके मित्र रमेश पेटवाल को CMI में एडमिट करना पड़ा था । उसके बाद फिर आयोजन से महज कुछ ही दिन पहले इनकी तकलीफ ज्यादा बढ़ी तब वरिष्ठ पत्रकार अरुण शर्मा व अन्य साथियों में राकेश बिजल्वाण, अरुण चमोली व सुशांत द्वारा फिर से रात में शशि को अस्पताल में एडमिट किया गया था लेकिन चंद दिन बाद राष्ट्रीय सम्मान समारोह की जिम्मेदारी खुद के पास होने के कारण शशि अस्पताल से घर आने की जिद्द पर अड़ गए ।
आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस बीच शशि को ऐसी तकलीफ रही कि उनकी यूरीन (पेशाब) तीन दिन तक रुकी रही जिसके बाद पत्रकार अरुण शर्मा के झिड़कने पर इन्हें तुरन्त अस्पताल ले जाया गया क्योंकि यह 15 अक्टूबर आयोजन के बाद ही अब अपना ईलाज करना चाहते थे तो इसलिए इस गंभीर समस्या को छुपाए बैठे थे । अस्पताल में शशि को तुरंत कैथेटर (यूरीन बैग) लगाना पड़ा । ताज्जुब तो इस बात का रहा कि शशि उसी हाल में अस्पताल में एडमिट होने के बजाय कई मीटिंगों के अलावा सम्मान समारोह की भव्य तैयारियों में जुटे रहे ।
उनके कुछ करीबियों को जब पता चला तो उन्होंने शशि की तब कुछ फोटो भी क्लिक की थी लेकिन शशि ने सबसे कहा कि कोई भी इस तरह की फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड नहीं करेगा । तस्वीर में आप साफ साफ देख सकते हैं कि शशि ने अपने डबल बेड को ही अपने कार्यालय की शक्ल दे डाली कम्प्यूटर से लेकर प्रिंटर तक सब बिस्तर पर सजा लिए और साथ में लगा रहा यूरीन बैग । हालांकि आज अब हम जरूर शशि भूषण की उस तस्वीर को यहां सार्वजनिक करेंगे वह इसलिए कि, हर किसी को यह मालूम होना चाहिए कि ऊंचा लक्ष्य बिना किसी जूनून के हासिल नहीं किया जा सकता है । शशि की तस्वीर इस बात की तस्दीक करती है । और इसे ही कहते हैं जीवट पुरुष की जिजीविषा । परन्तु स्वास्थ्य के प्रति ऐसी लापरवाही के लिए मैं शशि की सराहना भी नहीं करूंगा ।
आज मैं जिस सख्स की बात करने जा रहा हूँ वह अब किसी परिचय का मोहताज तो है नहीं । कम उम्र में बड़े-बड़े काम कर समाज का ‘पारस’ बना जो, वह है शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ यहां पर बताना चाहूंगा कि शशि भूषण मैठाणी को लोग पारस के नाम से भी जानते हैं और उन्हें इस नाम से 10 नवम्बर 1995 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा अलंकृत किया गया था । और तब पारस नाम भी उनकी एक पहचान का हिस्सा बन गया ।
शशि ‘पारस’ उत्तराखंड में चमोली जिले के मैठाणा के रहने वाले हैं । पेशे से पत्रकार शशि की पहचान पहले एक बेहत्तरीन कलाकार की है । इनकी बनाई हुई कलाकृतियां आज भी बहुत ऊंचे दामों पर बिकती है खासकर राईस आर्ट में शशि को महारत हासिल है । इनकी बनाई हुई एक कलाकृति दिल्ली के एक व्यापारी द्वारा 1 लाख 10 रुपये में खरीदी गई थी जिसे मीडिया में खूब सुर्खियां भी मिली थी । शशि ने महज 16 साल की उम्र से ही स्कूलों में पढ़ाना शुरू कर दिया था । राज्य सरकार के विशेष आमंत्रण पर वर्ष 1992 से वर्ष 2000 तक इन्होंने अभिभाजित उत्तर प्रदेश के 28 गवर्मेंट गर्ल्स इण्टर कॉलेजों में छात्राओं को क्रिएटिब आर्ट एंड सोशल डेवलेपमेंट की कक्षाएं पढ़ानी शुरू की थी । और तब से ही यह समाज में रचनात्मक कार्य करने वाली प्रतिभाओं की खोज में निकल पड़े थे ।
वर्ष 1995 में पौड़ी नगर से ‘कला प्रदर्शन – प्रतिभा दर्शन’ नाम से एक बैनर बनाया जिसके अधीन अनेकों आयोजन कर प्रतिभाओं को मंच दिया और उन्हें सम्मानित भी किया । वर्ष 2008 से शशि पारस ने यूथ आइकॉन रचनात्मक मीडिया के बैनर तले अपने अगले पड़ाव का सफर आरम्भ किया । वर्ष 2009-10 से देशभर की प्रतिभाओं व रचनात्मक लोगों की खोज के साथ यूथ आइकॉन नेशनल मीडिया अवार्ड सेरेमनी का आयोजन होने लगा जिसके अब तक 6 चरण भव्य रूप से सफल हो चुके हैं ।
बताते चलें कि यूथ आइकॉन आज देशभर में चर्चित व लोकप्रिय सम्मान में शुमार है । यूथ आइकॉन उत्तराखंड से दिया जाने वाला एकमात्र राष्ट्रीय सम्मान बन गया है जो समाजसेवी पत्रकार शशि पारस के खाते में एक और शानदार उपलब्धि जुड़ गई है । अब हर वर्ष देशभर से कला, बॉलीवुड, मनोरंजन, शिक्षा, साहित्य , संस्कृति, पर्यावरण, पत्रकारिता, समाजसेवा, अन्वेषण, आदि विभिन्न क्षेत्रों में विशेष में कार्य करने वाले लोग बड़ी संख्या में शशि पारस के बुलावे पर हर वर्ष देहरादून पहुंचते हैं ।
जाहिर सी बात है इस तरह के भव्य व रचनात्मक कार्य से प्रदेश की शान में चार चांद भी लगते हैं और देवभूमि की पहचान और सबल रूप से देश और दुनियां के सामने बनती है । उत्तराखंड राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस तरह से बेहद ईमानदारी से रचनात्मक अभियानों को आगे बढ़ाने वाले लोगों को सम्मान दे व उन्हें ताकत दे ।
यहां पर यह बात मैं इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि जब मैंने आज एक मुलाकात के दौरान शशि भूषण मैठाणी पारस से बात की तो उन्होंने मुझे बहुत सी चौंकाने वाली बातें बताई , शशि ने बताया कि बहुत से लोगों को लगता है कि मैठाणी द्वारा संचालित यूथ आइकॉन , रंगोली आंदोलन, उत्सव ध्वनि या फिर KppD किसी NGO का हिस्सा हैं , जबकि सच्चाई यह है कि मैने आज तक अपना कोई भी अभियान रजिस्टर्ड नहीं किया है और न ही किसी प्रकार से सरकारी अनुदान लेता हूँ ।
बातचीत में शशि ने बताया कि वर्ष 1996 में वह देहरादून में NGO रजिस्टर्ड करने आए थे लेकिन तब उस कार्यालय में उनसे पूरे 5 हजार रुपये रिश्वत मांगी गई तो उन्होंने तब अपने सभी दस्तावेज फाड़ दिए थे और तभी संकल्प लिया कि वह कभी भी अपने अभियानों को NGO की शक्ल नहीं देंगे और जन सहभागिता से ही अपने रचनात्मक सोच को धरातल पर उतारेंगे । शशि पारस कहते हैं कि कुछेक लोग अज्ञानतावश उल-जलूल बातें करते हैं जबकि उन्हें किसी के भी जीवन की गहराइयों व उनके संघर्षों के बारे में कुछ अता पता ही नहीं होता है ।
लेकिन शशि कहते हैं कि बेशक जबसे उन्होंने यूथ आइकॉन नेशनल अवार्ड आरम्भ किया तब से लगातार जब-जब भी कार्यक्रम होता है तो राज्य सरकार मेरे लिखित अनुरोध पर दो दिन के लिए तीन से पांच गाड़ियां व बीजापुर में तीन से पांच कमरे बाहरी राज्यों से आने वाले अतिथियों के लिए जरूर करती है।इसके अलावा मैने न कभी सरकार से आर्थिक मदद मांगी और न ही किसी भी सरकार ने कोई घोषणा की जबकि बचकानी व हास्यास्पद अफवाहें जोरदार होती हैं ।
शशि आगे कहते हैं कि उन्हें इस बात से कभी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कौन क्या बोल रहा है । समाज मे जिनका कोई योगदान नहीं होता है वही लोग समाज मे योगदान देने वालों के बारे में कुछ न कुछ बोलते रहते हैं । बे-फिजूल लोगों की कुंठित आलोचनाएं भी मुझे बहुत कुछ सिखा जाती है । शशि कहते हैं मैं आज जितना भी अपना काम व नाम बनाने में सफलता पाता हूँ तो उसमें मेरे आलोचकों का सबसे बड़ा योगदान मैं मानता हूं, इसलिए आलोचनाएं कभी न रुके ऐसी मैं हमेशा कामना भी करता हूँ ।
बाकी भारी संख्या में वो लोग भी हैं जो मेरे अभियान को आगे बढ़ाने में बढ़-चढ़कर सामने आते हैं और तन मन धन से सहयोग करते हैं वरना ऐसे विशाल आयोजन कोई कितने बार अकेले के दम पर कर सकेगा । आज यह काम मेरा अकेले का कम और टीम का ज्यादा है ।
बहरहाल आज उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से दिया जाने वाला यूथ आइकॉन अवार्ड न सिर्फ प्रदेश में बल्कि अब पूरे हिंदुस्तान में चर्चित हो रहा है ऐसे में हम सभी राज्य वाशियों को शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ की इस रचनात्मक सोच को आगे बढ़ाने में बढ़-चढ़कर आगे आना होगा । खासकर उत्तराखंड सरकार को ऐसी प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने में जरा सी भी हिचक नहीं करनी चाहिए । ”देवभूमि मीडिया” को शशि भूषण मैठाणी ‘पारस’ और उनके संघर्षो पर गर्व है ।