ट्रांसजेंडरों ने मार्च निकालकर समलैंगिकता की ‘धारा 377- ए’ का किया विरोध
देहरादून में हर साल होगा ट्रांसजेंडरों का मार्च
उत्तराखंड में उठाएंगे ट्रांसजेंडर बोर्ड के गठन की मांग
देहरादून : समलैंगिकता की ‘धारा 377- ए’ के विरोध और अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए देहरादून में देशभर से आए समलैंगिकों ने मार्च निकाला। ढोल नगाड़ों की गूंज के बीच नाचते हुए ट्रांसजेंडरों के मार्च को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी।
दून में विभिन्न शहरों से आए ट्रांसजेंडर जुटे। एस्लेहाल पीएनबी के सामने उन्होंने मार्च निकालना शुरू किया। मार्च निकालने से पहले ट्रांसजेंडरों ने डांस शुरू कर दिया। बारिश के बीच ट्रांसजेंडर ढोल की थाप पर नाचते रहे। एक-दूसरे से मिलकर उन्होंने खुशी का इजहार किया।
चंडीगढ़ से आए ट्रांसजेंडर धनंजय मंगलामुखी ने फ्लैग ऑफ दिखाकर मार्च को रवाना किया। किसी भी तरह की विवाद की संभावना के चलते पुलिस भी मार्च के साथ-साथ चलती रही। एस्लेहाल से कनक चौक, विकासभवन चौक, संडे मार्केट, प्रेस क्लब होते हुए वापस एस्लेहॉल पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने अपने अधिकारों को भी जोरशोर से उठाया। इस मौके पर परियोजन कल्याण समिति के अध्यक्ष सागर डोगरा, सचिव हेमंत सिंह भंडारी, नवीन, नताशा, दिव्या, दिव्यानी, सेमी, रूसिमा आदि मौजूद थे।
मार्च में शामिल तेजस ने बताया कि समाज आज भी उन्हें पूरा सम्मान नहीं देता। यहां तक कि समलैंगिकता की ‘धारा 377- ए’ के तहत गैर कानूनी करार दिया गया है। मार्च निकालकर वह ‘धारा 377- ए’ का विरोध कर रहे थे। उनकी मांग थी कि इस धारा को खत्म कर उन्हें अपने तरीके से जीने का हक दिया जाए। इससे पहले देश के कई बड़े शहरों में वह इस तरह का मार्च निकाल चुके हैं।
उत्तराखंड में पहली बार ट्रांसजेंडरों ने मार्च निकाला है। लेकिन अब उनका इरादा हर साल इस तरह का आयोजन करने का है। उनका कहना है कि इस आयोजन में देहरादून के साथ ही हरिद्वार, रुड़की, सहारनपुर के अलावा चंडीगढ़ व दिल्ली से भी ट्रांसजेंडर लोग शामिल हुए।
आने वाले समय में ट्रांसजेंडर उत्तराखंड में ट्रांसजेंडर बोर्ड के गठन की मांग उठाएंगे। ट्रांसजेंडर तेजस का कहना है कि उनका प्रतिनिधिमंडल कुछ समय बाद मुख्यमंत्री से मिलेगा। इससे पहले वह चाहते हैं कि समलैंगिक समुदाय के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने में सरकार भी पहल करे। उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंटर हर कदम पर भेदभाव का शिकार होते हैं। उन्हें शिक्षा से लेकर नौकरी तक, हर मोर्चे पर भेदभाव सहना पड़ता है।