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सवालों के घेरे में शासन स्तर से डाक्टरों के तबादले !

विभागीय सचिव कर रहे हैं अधिकारों का बेजा इस्तेमाल

महानिदेशक स्वास्थ्य के अधिकारों का खुद ही कर रहे इस्तेमाल

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

जौनसार बावर जनजाति कल्याण समिति के लोग सीएम से मिलेंगे

जनहित में तत्काल डॉक्टर का स्थानांतरण रोकने की मांग उठाई

जौनसार बावर जनजाति कल्याण समिति ने सीएचसी चकराता में तैनात सर्जन डॉ. नरेंद्र चौहान का स्थानांतरण जिला अस्पताल रुद्रप्रयाग किये जाने का विरोध किया है। समति ने कहा कि डॉ. चौहान का स्थानांतरण राजनीति से प्रेरित है। कहा कि चौहान के स्थानांतरण से क्षेत्र की जनता में आक्रोश है। जिसके खिलाफ एक प्रतिनिधिमंडल अनुसूचित जाति जनजाति आयोग और मुख्यमंत्री को मिलेगा।

समिति के महामंत्री मोहन सिंह चौहान ने कहा कि डॉ. नरेंद्र चौहान चकराता सीएचसी में तैनात हैं। चकराता पहले ही दुर्गम क्षेत्र है। इसके अलावा डॉ. चौहान चकराता के अलावा सीएचसी विकासनगर में भी संबद्ध होने के कारण दोनों अस्पतालों में लोगों को चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। क्षेत्र की ग्रामीण जनता को छोटे बड़े आपरेशन के लिए देहरादून के महंगे अस्पतालों में जाने के बजाय घर में सरकारी सेवा पर घर में ही उपचार मिलता है। समिति के महासचिव ने कहा कि चौहान का ट्रांसफर रुटीन ट्रांसफर नहीं है। बल्कि पूरे उत्तराखंड में अकेले उनके आदेश हुए हैं। कहा कि डा. चौहान को परेशान करने के लिए स्थानांतरण किया गया है। जिसका नुकसान जनता को उठाना पड रहा है। कहा कि समति इस सबंध में एसडीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन देगी। इसके अलावा सीएम और एससी/एसटी आयोग में भी डॉ. चौहान के उत्पीड़न किये जाने की शिकायत करेगी। कहा डॉ. चौहान का स्थानांतरण तत्काल प्रभाव से जनहित में रोका जाना चाहिए।

देहरादून। उत्तराखंड के स्वास्थ्य सचिव ने इस महकमे को अपनी खाला का घर सा बना लिया है। अब तक तो फोन पर ही तुगलकी फरमान ही चर्चा का विषय बनते रहे हैं। अब तो सचिव साहब ने महानिदेशक के अधिकारों का खुद ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इसी अंदाज में वो अब डाक्टरों का तबादला आदेश अपने स्तर से ही जारी करवा रहे हैं। 

पहाड़ों में डॉक्टरों की कमी के चलते उत्तराखंड का स्वास्थ महकमा इन दिनों बुरे दौर से गुजर रहा है। विभागीय सचिव इन महकमे को अपने खाला के घर के अंदाज में चला रहे हैं। कुछ समय पहले राज्यभर में जब डेंगू का प्रकोप फैला था उस दौरान भी सचिव साहब अपने एसी कमरे से बाहर निकले ही नहीं। पहाड़ पर डाक्टर व अन्य स्टाफ की बेहद कमी है। इसकी भी साहब को कोई परवाह नहीं है। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों की माँ बहनें खुले में प्रसव करवाने को मजबूर हैं क्योंकि या तो कहीं महिला डॉक्टर नहीं है और जहां तैनात है वहां डॉक्टर रहती ही नहीं। हां, अपने चहेतों की मनचाही पोस्टिंग के लिए झा साहब निचले स्तर के अफसरों को फरमान जारी करने में कभी पीछे नहीं रहते।

साहब की मनमानी का आलम यह है कि अब तो वे पहाड़ से डाक्टरों को सुगम में तबादले का आदेश भी अपने स्तर से ही करवा रहे हैं। सामान्य तौर पर यह काम स्वास्थ्य महानिदेशक का है। अभी हाल में ही साहब ने शासन स्तर से कई डाक्टरों के तबादला आदेश जारी करवाए हैं।

अहम बात यह भी है कि इनमें खास लोगों को पौड़ी जैसे दुर्गम स्थल ने महिला डाक्टर को देहरादून भेज दिया है। शासन को इस कटु सत्य की भी कोई परवाह नहीं है कि पर्वतीय इलाकों में प्रसव के दौरान कई महिलाओं की मृत्यु उपचार न मिलने की वजह से हो चुकी है। लेकिन सचिव अपने बेपरवाह अंदाज में ही काम कर रहे हैं।

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