एनएच घोटाले पर फिर सन्नाटा !
योगेश भट्ट
उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाला अब ‘रहस्य’ बनता जा रहा है। इस मामले में सीबीआई जांच का कोई अता पता नहीं। सरकार और विपक्ष दोनो खामोश हैं। आश्चर्य यह है कि सरकार जो जांच करा रही है उसमें अभी तक ‘बड़े’ बेपर्दा नहीं हुए हैं। इस बीच मामले का खुलासा करने वाले कमिश्नर का तबादला भी कर दिया गया है।
घोटाले से जुड़ा हर दस्तावेज अभिलेख सुरक्षित है, यह कह पाना भी मुश्किल है । अब तो वक्त के साथ मामले की जांच पर रहस्य और भी गहराता जा रहा है। बकौल सरकार 300 करोड़ रूपये से ऊपर के राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाले की जांच के लिए सीबीआई अपनी सहमति दे चुकी है। सरकार का यह बयान एक महीने पहले विधानसभा सत्र के दौरान आ चुका है । खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उस वक्त बताया कि सीबीआई की सैद्धांतिक सहमति के बाद अब पीएमओ की मंजूरी का इंतजार है। लेकिन एक महीना बीतने के बाद भी मामले की सीबीआई जांच काई कोई अता पता नहीं है। अब तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों जगह इस मसले पर सन्नाटा पसरता जा रहा है।
दूसरी ओर इसी मामले की राज्य सरकार द्वारा अपने स्तर पर जो एसआईटी जांच की जा रही थी, उसकी तेजी भी ‘ठंडी’ पड़ती जा रही है। इस सब के चलते एक बार फिर एनएच घोटाले की जांच सवालों के घेरे में है। दरअसल किसी भी मामले की सीबीआई जांच की एक निश्चित प्रक्रिया है, जिसके पूरा होने के बाद ही जांच शुरू हो सकती है। राज्य कोई इसकी विधिवत सूचना दी जाती है। एनएच घोटाले को लेकर शुरूआत में सरकार ने सीबीआई जांच की घोषणा तो की, लेकिन तीन माह बाद भी जांच शुरू नहीं हो पाई।
इस बीच केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने जरूर सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाया, जिसके बाद विपक्ष ने इसे मुद्दा भी बनाया। इसके चलते त्रिवेंद्र सरकार को काफी असहज भी होना पड़ा। संभवत: यह भी बड़ा कारण रहा कि सरकार को विधानसभा सत्र के दौरान यह बयान देना पड़ा कि सीबीआई मामले की जांच के लिए तैयार हो चुकी है। तब खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा था कि सीबीआई की सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद जांच से जुड़ी फाइल प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दी गई है, जहां से हरी झंडी मिलने के बाद जांच शुरू हो जाएगी।
मुख्यमंत्री के बयान पर यकीन करें तो पीएमओ की मंजूरी के बाद सीबीआई जांच का नोटिफिकेशन होना था, जिसकी राज्य सरकार को विधिवत सूचना मिलनी थी, लेकिन एक महीने से ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी ऐसा नहीं हो सका है। आखिर इसका कारण क्या है? केंद्र की मोदी सरकार के बारे में तो कहा जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय फैसले लेने में देरी नहीं करता है। यदि यह बात सच है, तो फिर इस मामले में देरी क्यों? कहीं यह देरी एक बार फिर से इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने का संकेत तो नहीं? ये देरी या रुकावट कहीं गडकरी के एतराज का नतीजा तो नहीं ।
दरअसल ये मसला बेहद संवेदनशील है। इस घोटाले की जद में अभी तक छोटे कर्मचारी और मंझोले अफसर तो आए हैं, मगर बड़े अफसरों और सफेदपोशों तक अभी जांच की आंच नहीं पहुंची है। शुरूआत से ही माना जा रहा है कि यदि राज्य से बाहर की एजेंसी से जांच हुई तो नौकरशाही से लेकर सरकार में शामिल कई दिग्गज इसकी जद में आएंगे। ऐसे में संभावना यह भी जतायी जा रही है कि कहीं सीबीआई जांच का ऐलान शिगूफा मात्र तो नहीं? वाकई ऐसा है तो फिर जीरो टालरेंस के दावे का क्या ?