- – इण्डोनेशिया से दून लौटने पर निशंक का हुआ स्वागत
देहरादून । पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड, सभापति सरकारी आश्वासन समिति एवं सांसद संसदीय क्षेत्र हरिद्वार अपनी तीन दिवसीय इण्डोनेशिया यात्रा का समापन कर देहरादून पहुँचे। हवाई अड्डे पर डॉ0 निशंक का जोरदार स्वागत किया गया। ज्ञातव्य है कि डॉ0 निशंक ने भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर इण्डोनेशिया में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की इण्डोनेशिया यात्रा की 90वीं वर्षगांठ पर आयोजित अतंरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लिया।
डॉ0 निशंक ने इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में सेमिनार का उद्घाटन किया तथा अपना उद्बोधन दिया। इस अवसर पर डॉ0 निशंक को इण्डोनेशिया सरकार द्वारा उनके साहित्य सृजन, स्पर्श गंगा अभियान और हिमालय संरक्षण के लिए किए गए असाधारण कार्यों के लिए सम्मानित किया गया। डॉ0 निशंक को यह सम्मान इण्डोनेशिया सरकार ने प्रदान किया।
इस अवसर पर इण्डोनेशिया में भारत के राजदूत श्री रिजाली विलयर, सर्जनवीयता विश्वविद्यालय के अध्यक्ष ए.डी. स्वासो तथा संस्कृति एवं शिक्षा मंत्रालय के महानिदेशक फरीद सुर्यूकुसुम ने डॉ0 निशंक के साहित्य सृजन पर अपने विचार रखे। इससे पूर्व सर्जनवीयता विश्वविद्यालय ने डॉ0 निशंक को सम्मानित किया तत्पश्चात डॉ0 निशंक ने विश्वविद्यालय में सैकड़ों छात्र-छात्राओं के मध्य भारतीय संस्कृति एवं चिन्तन पर व्याख्यान दिया गया। तत्पश्चात हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए उन्हें सम्मान प्रदान किया गया।
विश्वविद्यालय ने हिन्दी की सभी विधाओं में डॉ0 निशंक की 60 से अधिक किताबों के माध्यम से की गई साहित्य सेवा की सराहना की। डॉ0 निशंक ने अपने उद्घाटन भाषण में इण्डोनेशिया और भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को जीवन की राह दिखाती है। उन्होंने कहा भारत एवं इण्डोनेशिया जुड़वा भाई हैं, जो सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े हैं। डॉ0 निशंक ने गुरुदेव रवीन्द्र और श्री देवनतारा का स्मरण करते हुए कहा कि दोनों मनीषियों ने विश्वविद्यालयों की स्थापना कर अपने देश के सामाजिक आर्थिक जीवन में नए युग का सूत्रपात किया।
डॉ0 निशंक ने बताया कि 1927 में गुरुदेव रवीन्द्र ने अपनी इण्डोनेशिया यात्रा के दौरान महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री देवनतारा एवं श्री सुकर्णों के साथ मिलकर इण्डोनेशिया में स्वतंत्रता की अलख जगाई। स्वाधीनता के पश्चात श्री सुकर्णों वहाँ के प्रथम राष्ट्रपति बने तथा श्री देवनतारा वहाँ के प्रथम शिक्षा मंत्री बने, जिन्हें वहाँ शिक्षापिता के नाम से जाना जाता है। डॉ0 निशंक ने बताया कि इण्डोनेशिया भगवान राम, गीता, महाभारत के आदर्शों को मानता है और इन महान ग्रंथों का प्रभाव साधारण जन जीवन पर दिखाई देता है।
डॉ0 निशंक ने कहा कि इण्डोनेशिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम समुदाय से होने पश्चात भी वह भारतीय संस्कृति की अनुयायी है। यहाँ तक कि उनकी विमान सेवा भी गरूड़ के नाम से है, उनकी कैरेंसी में गणेश जी के चित्र हैं तथा विश्वविद्यालयों में ब्रह्मा की मूर्ति स्थापित हैं। वहाँ हर वर्ष बड़े स्तर पर रामायण एवं रामलीला का आयोजन किया जाता है। त्रिनिदाद, टोबेगो, इण्डोनेशिया, मलेशिया, फिजी, म्यामार, थाईलैंड, जापान, मारिशस, मालद्वीप, सेचेल्स, गीनिया, वर्मा, भूटान, नेपाल, भारत सभी हिन्दुस्तान की संस्कृति से ओतप्रोत है।
इस अवसर पर डॉ0 रमेश पोखरियाल की लघु कहानियों के संकलन का विमोचन भी किया गया। डॉ0 निशंक ने इस अवसर पर गज्जा माडा विश्वविद्यालय के शीर्ष अधिकारियों से बातचीत भी की। डॉ0 निशंक की किताबों को स्थानीय भाषा में अनुवाद कर पाठ्यक्रमों में पढ़ाने पर सहमति भी बनी। ज्ञातव्य है इससे पूर्व डॉ0 निशंक को साहित्य के लिए जापान, युगांडा, मॉरिशस, जर्मनी, स्पेन, थाईलैंड में सम्मान मिल चुका है और इनकी किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।
डॉ0 निशंक के आग्रह पर गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती उत्तराखण्ड के जनपद नैनीताल के रामगढ़ में भी मनायी जायेगी। इस अवसर पर डॉ0 निशंक ने बताया कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने महान ग्रंथ गीतांजली की रचना रामगढ़ में ही की थी। जिसे नोबेल पुरस्कार भी मिला है। यह वही स्थान है जहाँ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के मन में विश्व शांति की लौ जगी जिसकी अलख उन्होंने पूरे विश्व में जगायी। इसलिए उस स्थान पर इस कार्यक्रम का आयोजन होना पूरे विश्व के लिए प्रेरणाप्रद है।
डॉ0 निशंक ने इण्डोनेशिया में सातवीं और नवीं शताब्दी में बने बरबदूर मन्दिर एवं प्रबानन मन्दिर में अद्भुत स्थापत्य कला को जो कि मध्यकालीन इतिहास के सात अजूबों में से एक है। बौद्ध, हिन्दू धर्म को समर्पित ये मन्दिर जहाँ यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल है। डॉ0 निशंक ने प्रबानन शिव मन्दिर में रामायण नृत्य नाटिका को भी देखा अत्यन्त प्राचीन और सुदंर ये मन्दिर भगवान शिव देवी दुर्गा, भगवान बुद्ध को समर्पित है।
स्मरण हो कि डॉ0 निशंक को श्रीलंका, मॉरिशस, जर्मनी, जापान, दुबई, दक्षिण अफ्रीका, थाइलैण्ड, युगाण्डा, नेपाल, इण्डोनेशिया सहित लगभग एक दर्जन देशों में उन्हें उनके साहित्य सृजन के लिए सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में उनके साहित्य पर शोध चल रहे हैं, कई प्रांतों के पाठ्यक्रम में उनकी पुस्तकों को पढ़ाया जा रहा है।