मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ने केंद्र सरकार के समक्ष रखा था सीमांत क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर सड़क के चौड़ीकरण का तर्क
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : आल वेदर रोड को केवल उत्तराखंड के चार धामों को जोड़ने वाले कथित पर्यावरणविदों को तब झटका लगा जब इस महत्वाकांक्षी रोड परियोजना का मामला उच्चाधिकार प्राप्त समिति को दे दिया गया। मिली जानकारी के मुताबिक दो हफ्ते के अंदर रक्षा मंत्रालय की याचिका पर अब रिपोर्ट को हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाना है। रक्षा मंत्रालय की याचिका में ऑलवेदर रोड की चौड़ाई साढ़े पांच के बजाय सात मीटर रखने का आग्रह किया गया है। हालांकि सड़क परिवहन मंत्रालय के वर्ष 2018 के सर्कुलर के अनुसार पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क की चौड़ाई अधिकतम 5.50 मीटर रखने का है। लेकिन उत्तराखंड में बनाई जा रही आल वेदर सड़कें केवल यात्रा या पर्यटन के लिए ही नहीं बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है लिहाज़ा सड़क परिवहन मंत्रालय को भी अपने सर्कुलर में HPC की स्वीकृति के बाद बदलाव लाना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्रालय ने इन सड़कों को देश की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया है और यह बात इसलिए भी सही है कि जहाँ दुश्मन देश चीन भारत-चीन बॉर्डर पर तिब्बत के भीतर से हमारे देश की उत्तरपूर्वी राज्यों से लेकर कश्मीर तक सड़क का जाल बिछा चुका है। वहीं भारत अभी तक ऐसे सीमा तक सड़क पहुंचाने की कवायद तो कर रहा है लेकिन कथित पर्यावरणविदों के कारण देश की सुरक्षा से जुड़ी सड़कों के निर्माण में व्यवधान आ रहा है।
गौरतलब हो कि भारत सरकार के सड़कपरिवहन मंत्रालय ने ऋषिकेश से गंगोत्री, बदरीनाथ और नीति घाटी सहित कुमायूं मंडल से सीमा तक सड़क को आल वेदर रोड नाम देते हुए इसके निर्माण का बीड़ा उठाया। इसके पीछे केंद्र और राज्य सरकार की मंशा बहुत ही साफ़ थी कि चारों धामों को जोड़ने वाली सड़क अच्छी होगी तो उत्तराखंड में पर्यटन व्यवसाय के साथ ही धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा लेकिन इन सडकों के बनने से देश की सीमा तक भी आसानी से पहुंचा जा सकेगा।
हालांकि यह बात न तो उत्तराखंड सरकार ही सुप्रीम कोर्ट को समझा पाई और न केंद्र सरकार का सड़क परिवहन मंत्रालय ही समझा पाया। जबकि उत्तराखंड में इस सड़क के निर्माण के लिए बीते चार वर्षों से नेशनल हाईवे ऑथोर्टी ने सड़क की चौड़ाई साढ़े 11 मीटर के हिसाब से जहाँ सड़क की जड़ में आ रहे पेड़ों का कटान वन विभाग से स्वीकृति लेकर और सड़क के किनारे की सम्पतियों का मुआवजा तक आवंटित कर दिया था। लेकिन इसी बीच उत्तराखंड के विकास कार्यों में हमेशा आड़े वाले कथित पर्यावरणविदों ने सड़क की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट में सड़क की व्याख्या ठीक से न करते हुए प्राप्त कर ली। हालांकि उस दौरान न तो केंद्र सरकार ही और न राज्य सरकार ही सुप्रीम कोर्ट में सड़क के बनाये जाने का उद्देश्य ठीक से नहीं रख पाए लिहाज़ा सुप्रीम कोर्ट ने भी सड़क की चौड़ाई कम करने के आदेश पारित कर दिए।
लेकिन अब इस मामले पर जहाँ रक्षा मंत्रालय जागा है वहीँ राज्य सरकार भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है क्योकि अब तक केवल सड़क मंत्रालय ही इस सड़क की पैरवी करता चला आया था लेकिन वह भी सुप्रीम कोर्ट को सड़क की उपयोगिता ठीक से नहीं समझा पाया था। मामले में अब तीनों के जागने के बाद उम्मीद बढ़ गयी है कि जिस आल वेदर रोड को केवल चार धाम यात्रा से अब तक जोड़कर देखा जा रहा था वह देश की सुरक्षा के लिए कितनी मुफीद होगी यह तर्क सड़क मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखेंगे और सुप्रीम कोर्ट को यह समझा पाने में सफल होंगे कि यह केवल सड़क नहीं रक्षा के लिए भी बहुत जरूरी है।
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