AGRICULTURE

वैज्ञानिकों ने विकसित किया ज्यादा जायकेदार और रसीला अंगूर

अंगूर उत्‍पाद के मामले भारत का दुनिया में 12 वां स्‍थान
भारत में मात्र डेढ़ फीसदी अंगूर ही उपयोग होता है वाइन बनाने में
देश में अंगूर की 81.22 प्रतिशत खेती अकेले महाराष्‍ट्र में होती है

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नई दिल्ली। पुणे के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्‍वायत्‍त संस्‍थान आघारकर अनुसंधान संस्‍थान ने अंगूर की नई किस्म विकसित की है, जो फंफूदरोधी होने के साथ ही अधिक पैदावार वाली और रस से भरपूर है। यह जूस, जैम और रेड वाइन बनाने में बेहद उपयोगी है। किसान इसे लेकर बेहद उत्‍साहित हैं। अंगूर की यह संकर प्रजाति एआरआई -516 दो विभिन्‍न किस्‍मों अमरीकी काटावाबा तथा विटिस विनिफेरा को मिलाकर विकसित की गई है। यह बीज रहित भी है।

अच्‍छी पैदावार देने वाली अंगूर की यह किस्‍म महाराष्‍ट्र एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन साइंस(एमएसी)–एआरआई की कृषि वैज्ञानिक डॉ.सुजाता तेताली ने विकसित की है। यह किस्‍म 110 -120 दिन में पककर तैयार हो जाती है और घने गुच्‍छेदार होती है। महाराष्‍ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, पंजाब और पश्चिम बंगाल की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल है।

एमएसीएस-एआरआई फलों पर अनुसंधान के अखिल भारतीय कार्यक्रम के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान के साथ जुड़ा है। इस कार्यक्रम के तहत उसने अंगूर की कई संकर किस्‍में विकसित की हैं। ये किस्‍में रोगरोधी होने के साथ ही बीज रहित और बीज वाली दोनों तरह की हैं।

अंगूर उत्‍पाद के मामले भारत का दुनिया में 12 वां स्‍थान है। देश में अंगूर के कुल उत्‍पादन का 78 प्रतिशत सीधे खाने में इस्‍तेमाल हो जाता है जबकि 17-20 प्रतिशत का किशमिश बनाने में,डेढ़ प्रतिशत का शराब बनाने में तथा 0.5 प्रतिशत का इस्‍तेमाल जूस बनाने में होता है। देश में अंगूर की 81.22 प्रतिशत खेती अकेले महाराष्‍ट्र में होती है। यहां अंगूर की जो किस्‍में उगाई जाती हैं वे ज्‍यादातर रोग रोधी और गुणवत्‍ता के लिहाज से भी उत्तम हैं।

अंगूर की नयी किस्‍म एआरआई-516 अपने लाजवाब जायके के लिए बहुत पसंद की जाती है। उत्‍पादन लागत कम होने और ज्‍यादा पैदावार होने के कारण किसान इसकी खेती को लेकर बेहद उत्‍साहित हैं और इसलिए इसका रकबा लगातार बढ़ते हुए 100 एकड़ तक हो चुका है।

devbhoomimedia

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