हर चेहरे पर नज़र आ रहे हैं निश्चिंतता के भाव
आतंकी खौफ कुछ हद तक है पर जल्दी ही आमजन मजबूती से खड़े हैं इसके खिलाफ
धारा 370 की समाप्ति के एक महीने बाद पिछले महीने लगभग बीस दिन श्रीनगर में बिताने का अवसर मिला। मन में उत्सुकता बनी हुई थी कुछ संशय भी था। डल झील में हाऊसबोट व शिकारा वाले उदास तो जरूर दिखे पर कबाब की महक और उनके स्थानीय दीवाने कोई कमी महसूस नहीं होने देते।
हंसा दत्त लोहानी
दिल्ली में हड्डियों को गला देने वाली उमस भरी गर्मी पड़ रही थी, हवाई अड्डे पर विमान में बैठने से पहले व्हाट्सएप द्वारा यार दोस्तों को बता दिया कि फोन बंद रहेगा। उचित समय पर विमान ने दिल्ली से उड़ान भरी और उत्तर की ओर चोंच घुमाई। जल्दी ही हरियाणा-पंजाब के समतल मैदानों पर फैली गर्द की श्यामलता के पार स्वच्छ व हरे जंगलों से भरे पीर पंजाल के पहाड़ दिखने लगे, बनिहाल दर्रा निकला और दूर तक फैली रंगों से सराबोर कश्मीर घाटी उबर आई।
सूर्य की रोशनी में चांदी सी चमकते झेलम के घुमाव, सेब बागानों के हरे भरे झुरमुट, खेतों में पकती सुनहली फसलें बिछे कालीन सी नजर आ रहीं थीं। जैसे जैसे विमान नीचे आ रहा था, दृश्य और भी मनोरम होता गया। ऐसा लगा प्रकृति सर्दी के आरंभ से पहले अपने सब रंग और भंडार लुटा देना चाह रही है। फूलों व वृक्षों के बीच बने चमकीले लाल पीले रंगों वाले कश्मीरी घर व भवन भी नजर आने लगे, कुछ हट कर ऊंची चारदिवारी से घिरे पर करीने से लगी गाडिय़ों व अन्य साजो सामान वाले फौजी ठिकाने थे। विमान के नीचे आने से आकार में बढ़ते इन नजारों को आंखों में समेटने की जद्दोजहद में श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतर आए।
हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही स्वच्छ शीतल हवा के झोंके ने चेहरे पर हल्का “फू” किया और कश्मीरी नैसर्गिकता का तुरंत अनुभव आरंभ हुआ। लंबा कुर्ता पहने कई कश्मीरी जहाज में आने वाले जींस पहने रिश्तेदारों को माथा चूमकर गले लगा रहे थे। एक सज्जन अपनी बेटी के साथ खड़े दिखे, विमान में मेरे बाजू में बैठा नौजवान उनकी ओर बढ़ा और अपने पिता के गले लग गया, दोनों की आंखों में खुशी के आंसू झलकने लगे, कुछ देर बिना बोले दोनों यूँ ही रहे फिर बहन को बांहो में भर जोर से चिपका लिया। चार पांच महिलाएं सफेद सलवार कमीज पहने सफेद दुपट्टे से सिर ढक कर एक साथ खड़ी थीं, दुपट्टे से घिरे संगमरमर जैसे साफ चेहरों से हटने को आंखों ने इंकार कर दिया, बहुत मनाने के बाद नजरें हिली तो उनकी लाल एड़ियां दिखीं लगा कि अंगुली से छूने भर पर ही रक्त का प्रपात फूट पड़ेगा। गाड़ी आगे बढ़ रही थी और मैं हवाई अड्डे की चारदीवारी से बाहर निकला।
चारों ओर से घिरे अभेद्य किले के समान किसी फौजी इलाके में मुझे रहने का स्थान मिला, परंतु अब घाटी बांह खोले पुकार रही थी। कुछेक ने कहा अभी बाहर मत निकलना, पर उत्साह ने हिलोरें मारनी आरंभ कर दी, शाम होते होते मुझसे रहा नहीं गया और श्रीनगर घूमने निकल पड़ा। बाहर रोजमर्रा की जिंदगी अपने शवाब पर थी। सड़क पर टहलते बुजुर्ग व सिर ढकी महिलाएं, दुकानों के आगे गपियाते अधेड़, बाइक और स्कूटी में फर्राटा भरते जवान लड़के लड़कियाँ और गलियों के कोनों में अठखेलियां करता बचपन जैसा किसी भी सामाजिक परिवेश में नजर आता है।
हर चेहरे पर निश्चिंत भाव, बच्चों का कलरव हो या अधेड़ों की बातचीत सब ओर उन्मुक्त माहोल प्रतीत हुआ। कारण, मुझे लगा, हर सौ मीटर पर एक बंदूकधारी फौजी। फौज ने कश्मीर को न सिर्फ सुरक्षा दी है बल्कि ऐसे माहौल में जहां बाहरी पर्यटक के आभाव में कश्मीरी दुकानदारों का सामान खरीदते, राशन फौजी ही लेते हैं। मैने सुना है कि कश्मीर की हर दस रुपये की आमदनी में सात रुपये फौज और तीन रूपए बाहरी पर्यटक के होते हैं। अब अगर कोई यह कहे कि कश्मीरी पर्यटन के आभाव में पैसा नहीं कमा रहे हैं तो यह आंशिक सत्य है क्योंकि राशन व आम जरूरत के अलावा फौज ने कश्मीरी भवन व आवास अपनी रिहायश के लिए किराए पर उठाए हैं। कुछ कश्मीरी लोग नहीं कमा पा रहे हैं तो उनसे कहीं ज्यादा फौज से कमाई कर रहे हैं।
मन में डर को दबाए लाल चौक होते हुए मैं डल झील पर पहुंचा, यहाँ जिस ओर देखो वही दृश्य अद्भुत, अलौकिक लगता है, किसी ने सच ही कहा है कि कश्मीर दुनिया का स्वर्ग है। डल झील में हाऊसबोट व शिकारा वाले उदास तो जरूर दिखे पर कबाब की महक और उनके स्थानीय दीवाने कोई कमी महसूस नहीं होने देते। प्रेमी युगल एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले डल से भी अधिक गहराई नापते मिले। छुपते सूर्य की किरणें पहाडों को छकाती चोरी से डल में खेलने पहुंच जाती हैं, अकेलेपन की गहरी निश्वास छोड़ते भारी मन से ड्राइवर से “वापस मुड़” कहना बहुत कठिन प्रतीत हुआ।
फिर तो यह नशा सा हो गया, हर रोज उन्मत्त सा पहुंच जाता, कभी पर्वतों से, झील में उनकी तैरती परछाईं से या डल में स्वयं को अर्पित करते सूर्य को निहारना एक कर्तव्य ही बन गया। आंख-मिचौनी खेलती किरणें, वो पर्वत, चिनार-पोपलर जो वसुधा के ऊपर होते हैं पर डल में एक बतख की दौड़, बहती बयार या फिर किसी शिकारा की पतवार के प्यार से ही तरंगित होकर अपने को समर्पित कर देते हैं, यह डल झील का रोमांच व वैभव है।
अब मैं रोज जाता, कबाब की गंध और डल की अदब का दीवाना जो हो चला था। अभी कश्मीर में पर्यटन कम है पर लोगों पर सुकून का जलवा आकर्षण बना हुआ है, आज उनकी चाल में बेफिक्री है। फौज भी बहुत मेहनत कर रही है, बारह घंटे तक मुस्तैदी, वहीं खाना वहीं चाय। दफ्तर हों या कोर्ट, गवर्नर सहाब ने काम में कोई ढील नहीं दी है। मेरे एक मित्र जज हैं, जिला व हाई कोर्ट में उनसे मुलाकात होती रही, स्कूटर पर सवार वकील एक से दूसरे न्यायालय की फांक छान रहे हैं, जम्मू से आए वकील श्रीनगर में मुकदमे लड़ते देखे।
कश्मीर का स्वर्णिम अवसर है, हर कश्मीरी सुख की अभिलाषा रखता है, अपने बच्चों की स्कूली व सामाजिक तरक्की की चाह में है। सारी अवाम इस समय साथ है, मोबाइल व इंटरनेट का आभाव जन वैसी ही उम्मीद से झेल रहा है जैसे नोटबंदी के दौरान लाइन। कश्मीरी को भविष्य की कल्पना में सब मंजूर है। अब्दुल्लाओं की नजरबंदी पर आम जन बहुत प्रसन्न है, दशकों बाद कश्मीर की बदहाली का कारण सभी को समझ आता है, पहले भी आता होगा पर अब अभिव्यक्ति में छूट है।
जब तक मैं वहां रहा, सुबह शाम व्यापार बहुत सुचारु दिखा, हां, आतंकी खौफ कुछ हद तक है पर जल्दी ही आमजन मजबूती से इसके खिलाफ भी उमड़ॆंगे। हर कश्मीरी अमन की आस में है, प्रस्तुत समय इसी उम्मीद में बिताने को तैयार हैं।
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