उत्तराखंड कैबिनेट ने चारधाम श्राईन बोर्ड के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। अब उत्तराखंड चारधाम श्राईन बोर्ड प्रबंधन विधेयक 2019 को 4 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में लाया जाएगा। यहां से पारित होने पर अधिनियम बन जाएगा। इसके साथ ही चारधाम निधि का भी गठन किया जाएगा।
आइये समझते हैं कि आखिर चारधाम श्राईन बोर्ड बनाने की जरूरत क्यों हुई और इससे व्यवस्थाओं में क्या सुधार आएगा……
चारों धाम का होगा सुनियोजित और समन्वित प्रबंधन
वर्तमान में 1939 के ब्रिटिश कालीन अधिनियम के तहत बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, बदरीनाथ और केदारनाथ मंदिरों की व्यवस्था देखती है। जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री के लिए अलग से समिति हैं। ये समितियां केवल अपने-अपने मंदिरों तक सीमित हैं। इससे इनमें आपस में समन्वय का अभाव रहता है। चारों धाम के लिए सिंगल पाइन्ट व्यवस्था की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी। लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं को काफी परेशानी का सामना करना पङता है। एक छतरी के नीचे आने से चारों धाम के प्रबंधन में आपसी समन्वय बढ़ेगा और व्यवस्थाओं में सुधार होने से देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं को सहुलियत होगी।
परम्पराओं का सम्मान, हक हकूक रहेंगे सुरक्षित
श्राईन बोर्ड के गठन के प्रस्ताव से तीर्थ पुरोहितों व हक हकूक धारियों ने कुछ आशंकाएं जताई हैं। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इन आशंकाओं को निराधार बताते हुए स्पष्ट किया है कि सभी के हक हकूक पूरी तरह सुरक्षित रखे गए हैं। परम्पराओं का पूरा ध्यान रखा गया है। मंदिरों के रावल और पुजारियों की नियुक्ति पहले से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार ही की जाएगी। तीर्थ पुरोहितों के हितों को सुनिश्चित किया गया है। भावी पीढ़ी की सुविधाओं को भी संरक्षित किया जाएगा। बोर्ड में चारों धाम के पुजारियों का भी प्रतिनिधित्व होगा। सभी हक हकूक के संरक्षण के लिए बोर्ड में समिति गठित होगी।
80 साल पुरानी व्यवस्थाओं में वर्तमान जरूरतों के मुताबिक होगा सुधार
लगभग 80 साल पुराना 1939 का अधिनियम उस समय की परिस्थितियों के अनुसार बनाया गया था। 80 साल में चारधाम यात्रा का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। सरकार की कोशिशों से आधारभूत सुविधाओं में बहुत सुधार हुआ है। सङक व एयर कनेक्टीवीटी का विस्तार हुआ है। जल्द ही आल वेदर रोङ और ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मूर्त रूप ले लेगी। इन पर तेजी से काम चल रहा है। इस साल चारधाम के लिए रिकार्ड संख्या में 38 लाख श्रद्धालु आए। कुछ वर्षों में चारधाम आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 1 करोङ को पार कर सकती है। व्यवस्थाओं को भी उसी के अनुरूप किए जाने जरूरत है। 80 साल पुरानी व्यवस्थाओं को आज की जरूरतों के मुताबिक सुधारना होगा।
वैष्णो देवी की तर्ज पर बनाया जा रहा है श्राईन बोर्ड
चारों धाम की व्यवस्थाओं में सुधार की आवश्यकता महसूस करते हुए वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी की व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि 1986 में वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड के बनने के बाद वहां की यात्रा व्यवस्थाओं में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। राज्य सरकार व शासन स्तर पर काफी विचार विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि वैष्णो देवी और तिरुपति बालाजी की तर्ज पर यहाँ भी चारधाम श्राईन बोर्ड बनाया जाए। परंतु इसमें यहाँ की परम्पराओं का पूरा ध्यान रखा जाए।
चारधाम क्षेत्र के अन्य मंदिरों पर भी किया जाएगा फोकस
अभी सारा फोकस बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री पर ही रहता है। चारों धाम के निकटवर्ती मंदिरों के लिए भी व्यवस्था नहीं थी। श्रद्धालु केवल इन्हीं के दर्शन कर लौट आते हैं। आसपास के दूसरे मंदिरों में बहुत कम यात्री जाते हैं। श्राईन बोर्ड के अंतर्गत अन्य मंदिरों को लिए जाने से श्रद्धालुओं को वहां के पौराणिक महत्व के बारे में जानकारी मिलेगी। श्राईन बोर्ड द्वारा इन मंदिरों के प्रबंधन और व्यवस्थाओं में सुधार किया जाएगा।
निकटवर्ती स्थानों में बढेंगी पर्यटन गतिविधियां
बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के निकटवर्ती दूसरे मंदिरों की व्यवस्थाओं में सुधार और वहां के पौराणिक महत्व की जानकारी मिलने पर बङी संख्या में यात्री वहां भी जाएंगे। इससे पर्यटन संबंधी गतिविधियां बढेंगी। इससे लोगों के लिए आजीविका के अवसर बढेंगे और स्थानीय आर्थिकी विकसित होगी।
श्राईन बोर्ड से खुलेंगी रोजगार की राहें
चारधाम श्राईन बोर्ड के बनने के बाद चली आ रही सभी समितियां इसमें समाहित हो जाएंगी। समितियों के कर्मचारी पहले की भांति काम करते रहेंगे और वे बोर्ड के कर्मचारी माने जाएंगे। बोर्ड के काम का विस्तृत दायरा होने से नए पद सृजित किए जाएंगे। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे।
पौराणिक धरोहर का होगा समुचित संरक्षण
चारधाम श्राईन बोर्ड आर्थिक व तकनीकी तौर पर अधिक सक्षम होगा। बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ इसके अंतर्गत आने वाले सभी मंदिरों का ज्यादा अच्छे तरीके से रखरखाव होगा। पौराणिक महत्व के मंदिरों की धरोहर को संरक्षित किया जा सकेगा। इन धर्मस्थलों व मंदिरों का नियोजित विकास होगा। मंदिरों सहित निकटवर्ती क्षेत्रों के रखरखाव और विकास के लिए चारधाम निधि का गठन किया जाएगा।