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दुनियाभर में मछलियों की खपत बहुत तेजी से बढ़ी

खाद्य और कृषि संगठन ने अपनी रिपोर्ट में ये तथ्य पेश करते हुए टिकाई मत्स्य प्रबन्धन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया

विश्वभर में मछलियों की खपत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष बढ़कर साढ़े 20 किलोग्राम हो गई है, जिसके  2030 तक प्रति व्यक्ति एक किलोग्राम तक वृद्धि के आसार

वर्ष 2030 में दुनियाभर में कुल मछली उत्पादन 20 करोड़ 40 लाख टन तक बढ़ जाएगा, जो कि वर्तमान की तुलना में लगभग 15 प्रतिशत ज़्यादा होगा

दुनिया भर में इन्सानों के भोजन में मछलियों की खपत वर्ष 2018 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गई थी और आने वाले दशक के दौरान इसमें और भी ज़्यादा वृद्धि होने का अनुमान है। खाद्य और कृषि संगठन ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में ये तथ्य पेश करते हुए टिकाई मत्स्य प्रबन्धन की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. इसे सोफ़िया रिपोर्ट कहा जाता है।
विश्व में मछलियों व जल कृषि की स्थिति पर ताज़ा जानकारी देने वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 में दुनियाभर में कुल मछली उत्पादन 20 करोड़ 40 लाख टन तक बढ़ जाएगा, जोकि मौजूदा समय की तुलना में लगभग 15 प्रतिशत ज़्यादा होगा।
जल कृषि या मछली पालन भी मौजूदा 82 टन के स्तर को पार कर जाएगा, जोकि एक नया रिकॉर्ड होगा। 
संयुक्त राष्ट्र समाचार में प्रकाशित रिपोर्ट  के अनुसार खाद्य व कृषि संगठन के महानिदेशक क्यू डोन्गयू का कहना है, “मछलियों और उनके उत्पादों को पृथ्वी पर ना केवल सबसे स्वस्थ खाद्य पदार्थों में गिना जाता है, बल्कि ये भी समझा जाता है कि प्राकृतिक पर्यावरण पर उनका सबसे कम असर पड़ता है।” 

सोफ़िया रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में मछलियों और मछलियों से बने उत्पादों में रूचि कम होने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। 
विश्वभर में मछलियों की खपत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष बढ़कर साढ़े 20 किलोग्राम हो गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक प्रति व्यक्ति एक किलोग्राम तक की वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि अगर मछली शिकार व मछली पालन में टिकाऊ प्रबन्धन तरीक़े नहीं अपनाए गए तो खाद्य सुरक्षा व आजीविकाएँ दोनों ही ख़तरे में पड़ जाएँगी।
खाद्य व कृषि संगठन में मछली शिकार व जल कृषि विभाग के निदेशक मैनुअल बैरान्ज का कहना है, “विभिन्न साझेदारों के योगदान व बेहतरी देखकर प्रभावी प्रबन्धन की अहमियत साबित होती है, जिसके ज़रिए जैविक सततता को हासिल करके उसे बरक़रार भी रखा जा सकता है।”
उन्होंने कहा कि इससे ये ज़रूरत भी उजागर होती है कि जहाँ मछली प्रबन्धन प्रणालियाँ कमज़ोर हालत में हैं, वहाँ उन्हें मज़बूत बनाए जाने की सख़्त ज़रूरत है।
“बेशक, हम ये भी समझते हैं कि सततता ख़ासतौर से उन स्थानों पर हासिल करना बहुत कठिन है जहाँ भूखमरी, ग़रीबी और संघर्ष मौजूद हैं, लेकिन टिकाऊ समाधानों के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है।”
सोफ़िया रिपोर्ट में वैसे तो जो आँकड़े दिए गए हैं, वो कोविड-19 महामारी शुरू होने से पहले के हैं, लेकिन खाद्य व कृषि संगठन इन आँकड़ों का इस्तेमाल एक ऐसे सेक्टर को समर्थन व सहायता देने के लिए कर रहा है जो कोविड-19 महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में शामिल है।
खाद्य व कृषि संगठन का कहना है कि दुनियाभर में प्रतिबन्धों व श्रमिकों की कमी के कारण मछली शिकार सम्बन्धी गतिविधियों में साढ़े छह प्रतिशत तक की कमी आई है।
भूमध्य सागर व काले सागर के कुछ हिस्सों में लगभग 90 प्रतिशत छोटे मछली किसानों को अपना काम रोकना पड़ा है क्योंकि वो अपने मछली शिकारों को बेचने में नाकाम हैं।
जल कृषि उत्पादों का निर्यात भी अन्तरराष्ट्रीय परिवहन में व्यवधान के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ है, साथ ही पर्यटन व रेस्रां उद्योग जगत तक मछली उत्पाद पहुँचाने के चैनल भी कम हो गए हैं।
खुदरा बिक्री तो स्थिर रही है, या फिर डिब्बा बन्द मछली, मसाला मिली या फिर धुएँ वाले स्वाद वाली मछली, जिन उत्पादों को ज़्यादा समय तक भण्डार में रखा जा सकता है, उनकी खपत महामारी के दौरान बढ़ी है। 

devbhoomimedia

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