अशिक्षा के अंधेरे को ज्ञान के प्रकाश से अलौकिक करने का काम कर रही समिति
- उत्तरांचल दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति मनेरी देती है निशुल्क शिक्षा
उत्तरकाशी । सीमांत जनपद उत्तराकाशी शिक्षा की दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। जिले की सुदूरवर्ती क्षेत्रों में अशिक्षा के अंधेरे को ज्ञान के प्रकाश से अलौकिक करने का काम उत्तरांचल दैवीय आपदा पीड़ित सहायता समिति मनेरी पिछले 24 साल से कर रही है। जनपद में इस समिति के 20 एकल विद्यालय चल रहे हैं। इनमें 360 बच्चे बुनियादी शिक्षा और संस्कारों का ज्ञान ले रहे हैं, जबकि उत्तरकाशी में तीन और रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी में एक आवासीय विद्यालय संचालित है। इसमें 205 छात्र पढ़ रहे हैं। सुदूरवर्ती क्षेत्रों के गरीब परिवारों के बच्चों को इन विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा दी जा रही है।
उत्तरांचल दैवीय आपदा पीडित सहायता समिति का गठन 26 वर्ष पहले 1991 में उत्तरकाशी में आए विनाशकारी भूकंप के कहर से पीडित हुए लोगों की सहायता के लिए हुआ था। इस समिति का गठन 80 के दशक में डीएवी देहरादून से सेवानिवृत हुए भूगोल के प्रोफेसर डॉ. नित्यानंद ने किया था तथा अपना ठिकाना उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर गंगोत्री की ओर मनेरी के पास बनाया और उसका नाम सेवा आश्रम रखा।
भूकंप पीड़ितों की सहायता के बाद जब डॉ. नित्यानंद ने उत्तरकाशी जनपद का भ्रमण किया तो उन्हें गांवों में शिक्षा की कमी खली। इसके लिए उन्होंने गंगा घाटी में 1993 में 20 एकल विद्यालयों की स्थापना की, जबकि उसी दौरान उत्तरकाशी के मनेरी, लक्षेश्वर तथा मोरी के नैटवाड़ में आवासीय विद्यालय की स्थापना की। केदारनाथ आपदा के बाद 2013 में रुद्रप्रयाग के गुप्तकाशी में भी एक आवासीय विद्यालय खोला गया। इस विद्यालय में आपदा प्रभावित परिवारों के 16 छात्र अध्ययनरत हैं। समिति सचिव मदन सिंह चैहान कहते हैं कि ये बच्चे कक्षा छह से लेकर 12 तक की कक्षाओं में पढ़ते हैं। फीस से लेकर खाने और रहने की व्यवस्था समिति करती है।
आवासीय और एकल स्कूलों की स्थापना करने वाले डॉ. नित्यानंद भले ही 8 जनवरी 2016 को इस दुनिया से चल बसे हैं। लेकिन आंधी के बीच अंधेरे को चीरने वाली उनकी प्रज्वलित की गई लौ का प्रकाश फैलता जा रहा है। इस तरह बनाए एकल विद्यालय उत्तरकाशी में एकल विद्यालय के निरीक्षक गजेन्द्र भट्ट कहते हैं कि एकल विद्यालय में एक ही शिक्षक रखा है, जिनको उत्तरांचल दैवीय आपदा पीडित सहायता समिति की ओर से मानदेय दिया जाता है।
यह विद्यालय हर रोज शाम के समय तीन घंटे चलता है। इस विद्यालय में वे बच्चे आते हैं जो गांव के आसपास के स्कूलों में अध्ययनरत हैं। स्कूल से छुट्टी होने के बाद ये बच्चे शाम के समय एकल विद्यालय में पहुंचते हैं। साथ ही वे बच्चे भी आते हैं जो किसी कारण स्कूल नहीं जा पाते। इन बच्चों को दो घंटे हिंदी, अंग्रेजी और गणित का प्रारंभिक ज्ञान दिया जाता है। साथ ही स्कूल से मिला गृह कार्य भी कराया जाता है। इसके अलावा एक घंटे बच्चे नैतिक शिक्षा का ज्ञान लेते हैं तथा तर्क शक्ति बढ़ाने और शारीरिक विकास के लिए कई खेल खेलते हैं। इन एकल विद्यालयों में सबसे दूर का विद्यालय स्याबा गांव में है। स्याबा गांव पहुंचने के लिए 7 किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है।